-पुनर्वास की व्यवस्था के बाद भी जमीन के कारण तटबंध के अंदर रहते हैं लोग
-इनकी जीविका का साधन है खेती, पानी के अभाव में सूख रही है धान की फसल
--------------------------------------- जागरण संवाददाता, सुपौल : कोसी को जब दो तटबंधों के बीच बांधा गया तो इस बीच की आबादी विस्थापित किया गया। लोगों को बास के लिए तटबंध के बाहर सरकार द्वारा जमीन मुहैया कराई गई जिसमें लोगों को घर बनाकर रहना था। जो इस भूभाग में रहते थे ऐसे लोगों की जमीन तटबंध के अंदर थी सो लोग अपनी जमीन का मोह नहीं छोड़ पा रहे थे। इसलिए काफी संख्या में लोग तटबंध के अंदर ही रह गए। कोसी की बाढ़ और कटाव को झेलते हुए लोग यहीं रहे। इसका कारण था खेती अच्छी होती थी जो इनकी जीविका का साधन था। इस साल वर्षा नहीं होने से कोसी तटबंध के अंदर खेतों में पानी नहीं है जिससे फसल सूखने लगी है। किसानों को फसल की सिचाई करने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। किसान कहते हैं कि हालात यह है कि किसानों का अब खेती से मोह भंग होता जा रहा है। अब यह कहा जा सकता है कि जिस जमीन का मोह कोसी नहीं छुड़ा सकी वह काम मानसून कर रहा है।
कोसी जब उन्मुक्त बहती थी तो यह बड़े भूभाग में बाढ़ लाती थी, बाढ़ हर साल आती है। इसे नियंत्रित करने के लिए कोसी को दो तटबंधों के बीच बांधा गया। इसकी चौड़ाई 15 किलोमीटर है। इस चौड़ाई में कोसी को बहने के लिए छोड़ दिया गया। इस बीच में बसे लोगों के लिए तटबंध के बाहर पुनर्वास की व्यवस्था की गई। इस व्यवस्था के बाद भी काफी संख्या में लोग अपनी जमीन का मोह नहीं छोड़ पाए जो तटबंध के अंदर रह गए। कोसी की बाढ़ हर साल आती थी जिसमें फसल बर्बाद होती, लेकिन इसके बाद भी कोसी के द्वारा लाए गाद से खेत उपजाऊ हो जाती और लगी फसल बाढ़ के कारण ना भी हो लेकिन अगली फसल की पैदावार बंपर होती थी। बाढ़-कटाव की तबाही झेलते लोग यहीं रहकर खेती करने लगे। अब स्थिति यह है कि कोसी तटबंध के अंदर इस साल दो से तीन बार मात्र उफनाई। खेत सूखने लगे हैं, पानी के अभाव में फसल की हालत खराब है। सरायगढ़ भपटियाही प्रखंड के ढोली, बलथरबा आदि गांव के किसानों ने बताया कि धान की रोपनी का समय खत्म होनेवाला है लेकिन पानी के अभाव में रोपनी नहीं हो पा रही है। पूर्व में जो धान लगाए गए थे वह पानी के अभाव में सूख रहे हैं।