Bihar News: पूनम के प्रयास से बदली एक छोटे से गांव की किस्मत, 'मशरूम कलस्टर' की मिलेगी पहचान



सुनील कुमार, सुपौल: बिहार के सुपौल जिले में करीब 15 वर्ष पूर्व जब पूनम देवी की शादी बसंतपुर प्रखंड के विशनपुर चौधरी टोले में हुई थी तो लोगों को यह पता नहीं था कि कभी इनके कार्य से इस परिवार का नाम रोशन होगा। आरंभ काल में तो वह भी अन्य महिलाओं की तरह चौखट के अंदर समय गुजार रही थी। उनका अधिकांश समय घर के काम में ही बीत जाता था। कुछ दिनों बाद इन्होंने खेती में हाथ आजमाना शुरू किया।

इसके बाद मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण लिया और एक दिन ऐसा आया कि मशरूम महिला के नाम से प्रसिद्ध हो गई। आज वह खुद तो मशरूम उत्पादन कर ही रही हैं साथ-साथ गांव की अन्य महिलाओं को भी इसके लिए प्रेरित कर रही हैं। वह गांव की अन्य महिलाओं को कृषि विज्ञान केंद्र राघोपुर तक प्रशिक्षण को लेकर जाती हैं, जहां उन्हें प्रशिक्षण दिलाकर मशरूम उत्पादन को ले प्रेरित करती हैं।
देखादेखी गांव की कई अन्य महिलाएं भी अब मशरूम उत्पादन कर स्वावलंबन की राह चल पड़ी हैं। कृषि विज्ञान केंद्र राघोपुर के कृषि विज्ञानी डा. मनोज कुमार बताते हैं कि पूनम देवी के प्रयास से करीब डेढ़ दर्जन महिलाएं मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण ले चुकी है। आने वाले दिनों में यह छोटा सा टोला मशरूम कलस्टर के रूप में प्रसिद्ध होगा।

मशरूम महिला के नाम से विख्यात पूनम बताती हैं कि उन्होंने इंटर तक की पढ़ाई की है। उनकी शादी एक किसान परिवार में हुई। पति की नौकरी नहीं लगी तो वे खेती करने लगे। खेती से किसी तरह परिवार तो चल जाता था परंतु अन्य जरूरतों के लिए उन्हें आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता था। इधर गांव की रीति-रिवाज ऐसे थे कि वह कृषि कार्य में पति का भरपूर सहयोग भी नहीं कर पाती थीं। एक दिन पति ने बताया कि कृषि विज्ञान केंद्र और परियोजना आत्मा के माध्यम से महिलाओं को मशरूम खेती का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। जिद कर पति को खुद के प्रशिक्षण के लिए तैयार किया। इसमें उन्हें पता चला कि मशरूम उगाना बहुत आसान है। प्रशिक्षण बाद उन्होंने खेती की शुरुआत की।

पूनम शुरुआती दौर में तो घर में थैले में ही ओस्टर्ड मशरूम की खेती की। उनके इस जज्बे को देखते हुए सरकार ने हाल ही में मशरूम उत्पादन के लिए उन्हें दो लाख रुपये का अनुदान दिया है। इस राशि से वह एक बड़ा घर बनाकर मशरूम का उत्पादन कर रही हैं। फिलहाल, मशरूम को वे पति के माध्यम से बाजारों में बेचती हैं।
इससे प्रतिमाह 20 से 25 हजार रुपये की कमाई होती है। उत्पादन के अनुसार खपत नहीं होने पर मशरूम का सुखौता बना लेती हैं। इससे एक तो मशरूम बर्बाद नहीं होता और इसका बाजार मूल्य भी अधिक मिलता है। लोग इसका उपयोग उपचार, अचार, पकोड़ा आदि में करते हैं। वह बताती हैं कि नेपाल के बाजारों में सुखौता की काफी डिमांड है।

पूनम बताती हैं कि उनका सपना मशरूम उत्पादन को बड़ा बनाना है। वह गांव की कई महिलाओं को इसका प्रशिक्षण भी दिलवा चुकी हैं। आने वाले दिनों में मशरूम को सामूहिक खेती का रूप दिया जाएगा ताकि गांव की अन्य महिलाएं भी इस खेती से जुड़कर स्वावलंबन की ओर बढ़ सकें। उन्होंने बताया कि कृषि विज्ञान केंद्र राघोपुर द्वारा समय-समय पर तकनीकी जानकारी उपलब्ध कराई जाती है, जिससे काफी मदद मिलती है।


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