Bihar Padma Award: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बिहारशरीफ के बुनकर कपिल देव को पद्म श्री से किया सम्‍मानि‍त



हरनौत (नालंदा), जागरण टीम: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बुधवार की शाम नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन के दरबार हाल में बावन बूटी साड़ी के बुनकर बिहार शरीफ के बसवन बिगहा निवासी कपिल देव प्रसाद को देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म श्री से सम्मानित किया।




राष्ट्रपति ने कपिल देव प्रसाद का अभिवादन स्वीकार किया और इनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की। सम्मानित होने के बाद कपिल देव ने दैनिक जागरण को मोबाइल फोन पर बताया कि यह उपलब्धि न सिर्फ नालंदा, बल्कि बिहार के लिए और बिहार के बुनकरों के लिए है।




सम्मान समारोह में कपिल देव की पत्नी लाखो देवी तथा उनके इकलौते पुत्र सुरजदेव कुमार भी साथ थे। तीनों के आने-जाने और रहने तथा भोजन का प्रबंध गृह मंत्रालय द्वारा कराया गया। वे आज गुरुवार को नई दिल्ली से बिहार शरीफ के लिए प्रस्थान कर जाएंगे।
कपिल देव प्रसाद तांती मात्र सातवीं पास हैं। कपिल की इस उपलब्धि से बावन बूटी डिजाइन की राष्ट्रव्यापी पहचान और प्रतिष्ठा बढ़ गई है।
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कपिल देव ने पद्म श्री उपेंद्र महारथी का वह सपना पूरा कर दिखाया है, जिसके लिए वे लगातार दस वर्षों तक बसवन बिगहा में कपिल के पिता हरि प्रसाद तांती को नई डिजाइन सि‍खाते रहे और बुनकरों को मार्गदर्शन करते रहे।



बिहार में नालंदा जिला मुख्यालय बिहार शरीफ से सटे पूरब बसवन बिगहा में कपिल देव प्रसाद का जन्म पांच अगस्त 1955 को हुआ था। इनकी माता जी का नाम फुलेश्वरी देवी था। 
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इन्होंने दस साल की अवस्था से ही हैंडलूम की साड़ी में बावन बूटी डालनी शुरू कर दी थी। पांच साल में हुनर में निखार आ गया, जिससे इनके  बुनी हुई साड़ि‍यां अधिक पसंद की जाने लगी और इनकी चर्चा बुनकर समाज में होने लगी।


कपिल के तप का ही प्रतिफल है कि नालंदा मेड बावन बूटी साड़ियों की पहचान जल्द ही देश भर में होगी। इस साड़ी की जीआई टैंगिंग की प्रक्रिया चल रही है।
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जीआई टैग मिलते ही यह नालन्दा की धरोहर बन जाएगी। राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) ने जीआई टैग के लिए साढ़े आठ महीने पहले आवेदन पत्र प्रस्तुत किया है। 




इसी आधार पर हाल ही में बनारस में उत्तर भारत के राज्यों के जीआई उत्पादों के महोत्सव में बावन बूटी साड़ियों के स्‍टॉल लगाने की अनुमति मिली थी।



जम्मू में भी कपिल देव प्रसाद की साड़ी की बिक्री की जा चुकी है। पटना सहित अन्य शहरों में भी इस साड़ी का स्‍टॉल लगता रहा है।



इसकी कीमत की शुरुआत 1500 रुपए से होती है। इनके कारखाना में आठ हजार रुपए तक कि साड़ि‍यां उपलब्ध है। 




बावन बूटी साड़ियां बुनने का इतिहास चार सौ साल से अधिक पुराना है। बुनकर कपिल देव प्रसाद ने बताया कि हमारे पुरखों ने इस डिजाइन की शुरुआत की थी। कालांतर में बुनकर समाज में कपड़ा बुनने की रुचि में कमी आई थी। 

कपिल देव प्रसाद ने पिता से सुनी बातों को स्मरण कर बताया कि उड़ीसा के शिल्पकार डिजायनर पद्म श्री उपेंद्र महारथी साल 1950 में आए थे।



उन्होंने नए डिजाइन प्रस्तुत कर लगातार 1960 तक बुनकरों को प्रोत्साहित किया। उनकी पुत्री भी इसे लेकर लगातार प्रोत्साहन देती रहीं। उनके प्रयास से फिर बावन बूटी साड़ियां बुनी जाने लगी और उन्‍होंने भी पुश्‍तैनी हुनर में हाथ बंटाने लगे।       
कपिल देव बताते हैं कि बाबन बूटी साड़ी का नामाकरण प्लेन साड़ी में बावन बूटी देने से पड़ा। बताया कि पहले प्लेन साड़ियां बनती थीं, उनमें बूटी का डिजाइन देने की शुरुआत बसवन बिगहा से हुई और इस तरह 52 बूटी डालकर साड़ियां बनने लगीं।




एक साड़ी बुनने में एक बुनकर को सप्ताह भर लग रहा है। यह अन्य साड़ियों से विशिष्ट है, क्योंकि यह शुद्ध सूती धागे से निर्मित होती है। कपिल की पत्नी लाखो देवी बसवन बिगहा प्राथमिक बुनकर समिति की अध्यक्ष हैं। इनके एक मात्र पुत्र सूर्य देव कुमार भी बुनकर हैं।


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