गदहे को अलाव व गरीबों को कफन मयस्सर नहीं

नवादा। गदहे अलाव ताप रहे हैं तो जान गंवाने वालों को दो गज कफन तक मयस्सर नहीं हो रही है। इसे समय का चक्र कहें या फिर सिस्टम की लाचारी, लेकिन है बिल्कुल सच के करीब। हालांकि सच का सामना करने की बजाय जिम्मेवार लोग कुछ अलग कहानी गढ़ लेते हैं। पिछले एक पखवारे से जिले में भीषण शीतलहरी के बीच सांय-सांय करती पछुआ बयार ने कई लोगों को लील लिया। सिस्टम कह रही है, कोई नहीं मरा। आलम ये कि इस हाड़कंपाती ठंड में शहरी क्षेत्रों में वैसे स्थानों पर भी अलाव जलाए गए जहां लाभ लेने वाले लोग नहीं थे तो गदहे और आवारा पशु गरमाहट का आनंद लेते दिखे। वहीं ठंड में असमय अपनों को छोड़ जाने वालों को अंतिम संस्कार के लिए 100 किलो लकड़ी और दो गज कफन तक देने के लिए खजाना खाली होने का बहाना बनाया गया।

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अक्ल के दुश्मन
- इन दिनों देश में एक नए कानून पर जबरदस्त सियासी गरमाहट बनी है। जगह-जगह फसाद हो रहे हैं। इसमें कुछ काबिल लोग सुर्खियां बटोरने के लिए इधर का उधर कर सोशल साइट पर तस्वीर व वीडियो पोस्ट कर दे रहे हैं। ऐसा ही एक पोस्ट पड़ोसी राज्य के मुखिया के राजपाट से जोड़ते हुए डाला गया। जिसमें वर्दी वाले हाथ गरम करते हुए दिखे थे। वीडियो क्लीप के बारे में बताया गया था कि बाबा काशी की नगरी का फुटेज है। वीडियो की ताकीद की जाने लगी तो वह अपने शहर नवादा का निकला। बंदी की आड़ में हो रहे उपद्रव के दौरान वर्दी वालों की जोर-आजमाइश का वह क्लीप था। अब इसे क्या कहें..।
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कशमकश में नेताजी
- कुछ साल पहले माननीय भूतपूर्व हो गए। राजनीति जिदा रखने के लिए जुगत लगाया और अपने दल के जिला प्रमुख बन गए। समय मजे में कट रहा था। फिर मैदान सजने की फिर बारी आई तो अचानक कानून के लपेटे में आ गए। मजबूरी में दल के प्रमुख का पद भी छोड़ना पड़ा। यहां तक तो उन्होंने सह लिया। लेकिन, अब ज्यादा परेशान हैं। इसकी वजह भी है। खुद की बजाय मैडम को आगे कर राजनीत करने की दिल से इच्छा पाल रखे हैं, लेकिन घुर विरोधी दूसरी मैडम पहले से वहां विराजमान हैं। वह भी गठबंधन की ही हैं। ऐसे में नेताजी भविष्य तय करने को लेकर कशमकश में हैं।
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और अंत में..
काली कोट वाले संघ का कार्यकाल पूरा हो गया था। चुनाव टलता जा रहा था। जो पहले से काबिज थे काम-काज देख रहे थे। प्रतिद्वंद्वी लंबे समय तक इंतजार के मूड में नहीं थे। जुगत लगाया और उपर से लेटर ले आए। परेशानी थी सत्ता हस्तांतरण की। पद धारियों तक चिट्ठी पहुंचने के पूर्व ही सोशल साइट पर आदेश वायल हो चुका था। गतिरोध बढ़ता कि चिट्ठी भी आ गई। पद धारियों को संघे शक्ति कलियुगे का पाठ पढ़ाया गया। बात समझ में आ गई और बिना हिल-हुज्जत के सत्ता हस्तांतरण हो गया। नए सेक्रेटरी खुश हैं। दरअसल कई बार वे अखाड़े के पहलवान बने थे, हर बार दाव खाली चला जाता था। इस बार बिना अखाड़े में उतरे ही मैदान मार ले गए थे।
Posted By: Jagran
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