जयपुर। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच कांग्रेस आलाकमान के द्वारा दखलअंदाजी करने के बाद सब कुछ सामान्य होने का दावा किया जा रहा है।
पिछले दिनों विधानसभा में भी अशोक गहलोत सरकार के द्वारा विश्वास मत हासिल किया जा चुका है। जिसकी उम्मीद थी कि भाजपा इस विश्वास मत को हारेगी, वही हुआ और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष व बगावत करने के कारण अपने साथी अन्य 18 विधायकों के साथ करीब 30 दिन तक दिल्ली में रहने वाले सचिन पायलट के खेमे के द्वारा भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार को खुला समर्थन दिया गया।
हालांकि विधानसभा में जिस तरह का नजारा सामने आया, उसके बाद भी इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और टोंक विधायक सचिन पायलट के बीच रिश्ते अभी तक सामान्य नहीं हो पाए हैं।
जबकि राज्यसभा सांसद और कांग्रेस संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल के द्वारा दोनों नेताओं को मुख्यमंत्री आवास में मिलाया और पत्रकारों के सामने दोनों ने हाथ मिलाकर यह दिखाने का प्रयास किया कि कांग्रेस में अब सबकुछ सामान्य हो चुका है।
किंतु इसके बावजूद जिस तरह से विधानसभा के भीतर नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया, उप नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र सिंह राठौड़ और भाजपा के अध्यक्ष सतीश पूनिया के द्वारा सरकार पर हमला किया गया और उसके बाद आखिर में विश्वास प्रस्ताव के जवाब में बोलते हुए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के द्वारा विपक्ष पर निशाना लगाकर सचिन पायलट पर हमला किया गया, उसे कहा जा सकता है कि अब भी दोनों नेताओं के बीच रिश्ते सामान्य होने में लंबा समय लगेगा।
यह बात सही है कि कांग्रेस आलाकमान के द्वारा एक 3 सदस्य कमेटी का गठन कर सचिन पायलट समेत सभी बागी विधायकों की शिकायतों को गंभीरता से लेने और राज्य सरकार द्वारा उनका तुरंत प्रभाव से समाधान करने का वादा किया गया है, लेकिन जिस तरह से विधानसभा के भीतर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के अलावा सरकार के मंत्री और यहां तक कि निर्दलीय विधायक संयम लोढ़ा के द्वारा सचिन पायलट समेत सभी विधायकों के ऊपर परोक्ष रूप से व्यंग किए गए, उससे जाहिर होता है कि कांग्रेस पार्टी में अभी सब कुछ ठीक नहीं हुआ है।
कांग्रेस पार्टी में दो गुट अभी भी स्पष्ट तौर पर दिखाई दे रहे हैं। भले ही विधानसभा सत्र शुरू होने से पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट का मधुर मिलन हुआ हो, लेकिन उसके तुरंत बाद जिस तरह से अशोक गहलोत के खेमे ने माने जाने वाले सभी विधायक होटल में चले गए और सचिन पायलट के साथ ही विधायक अपने अपने आवास पर, उससे भी जाहिर होता है कि कांग्रेस में एकता कम, बल्कि एकता दिखाने का काम ज्यादा किया जा रहा है।
इसी दरमियान जिस तरह से अशोक गहलोत ने सचिन पायलट समेत तमाम विधायकों के सामने दावा किया कि अगर यह लोग भी नहीं आते तो भी विधानसभा में उनकी सरकार बहुमत साबित कर सकती थी, लेकिन इनके आने से ज्यादा खुशी हुई है।
इससे भी यह जाहिर होता है कि अशोक गहलोत को सचिन पायलट और उनके साथी विधायकों के वापस लौटने की कोई ज्यादा खुशी नहीं है।
बहरहाल दोनों तरफ से चुप्पी साध ली गई है और कांग्रेस आलाकमान के द्वारा गठित की जाने वाली कमेटी के सदस्यों और उनके द्वारा शिकायतों को सुनने के बाद सरकार से उन की क्रियान्वित होने का इंतजार किया जा रहा है, लेकिन इसके साथ ही राजनीतिक हलकों में चर्चा यह भी है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को जहां सचिन पायलट पर भरोसा नहीं है, वहीं पायलट की शिकायतों का निवारण नहीं होने पर एक बार फिर से वह बगावत कर सकते हैं।
हालांकि इस बार सचिन पायलट की बगावत 19 या 20 विधायकों के साथ नहीं होगी, बल्कि दावा किया जा रहा है कि विधायकों की संख्या 40 से लेकर 50 हो सकती है।
भविष्य के गर्भ में काफी कुछ छिपा हुआ है और यदि सचिन पायलट फिर से बगावत करते हैं तो यह निश्चित रूप से माना जाएगा कि अशोक गहलोत की सरकार को इस बार कोई भी बचा नहीं पाएगा।