स्त्री पुरूष के मध्य 'प्रेम' या पवित्र प्रेम' क्या है? अक्सर प्रेमी-प्रेमिका कहते हैं कि उनका प्रेम 'पवित्र प्रेम' है। इस संदर्भ में एक चिंतक का कथन है-पवित्र प्रेम सिर्फ दो शब्द भर हैं, भावना नहीं क्योंकि किसी स्त्री और पुरूष के मध्य पनपा प्रेम एक लक्ष्य भर है एक दूसरे को पाने का अर्थात शादी कर लेने का। प्रेम का पहिया शादी होते ही रूक जाता है।
हम यदि प्रेम पर गौर करें तो पाएंगे कि चिंतक का कथन ठीक है। यदि प्रेमी प्रेमिका की शादी नहीं हो पाती और वे अलग-अलग हो जाते हैं तो एक दूसरे के प्रति प्रेम खत्म हो जाता है। प्रेमिका किसी और की संगिनी बन जाती है और प्रेमी किसी और का साथी। आगे चलकर इन दोनों को कभी आती है तो सिर्फ याद भर आती है जबकि इन्होंने वास्तव में प्रेम किया हो तो न मिलने पर भी ताउम्र दोनों को एक दूसरे की न सिर्फ याद रहनी चाहिए थी बल्कि एक दूसरे के प्रति चिंता होनी चाहिए और एक दूसरे का शुभचिंतक रहना चाहिए-जैसे हम भाई, बहन, मां-बाप, बीवी बच्चों का सदा भला चाहते हैं-उन्हें प्रेम करते हैं पर बिछुड़े प्रेमी-प्रेमिका ऐसा नहीं करते।
यदि प्रेमी-प्रेमिका की शादी हो जाती है तो शादी के कुछ दिनों बाद दोनों में चिक-चिक शुरू हो जाती है। जो शरारतें, जो गलतियां शादी से पहले हंसकर टाल दी जाती हैं, वे शादी के बाद बड़ी कमियां बन जाती हैं। बात-बात पर नोक-झोंक होती है। विशेष रूप से पुरूष छोटी-छोटी भूलों पर उखड़ जाते हैं। फिर बात-बात में ऐसी बातें होती हैं कि तुमसे शादी करके मैंने बड़ी भूल की, तुम्हें समझने में भूल हो गई आदि-आदि।
यूं तो शादी के बाद परिस्थितियां कुछ ऐसी बदलती हैं कि बहुत कुछ गड़बड़ा जाता है। पहले देखे सपने हवा हो जाते हैं। शादी से पहले कुंवारे प्रेमिका-प्रेमी को शादी के बाद घर-गृहस्थी चलाने के आकलन मामूली होते हैं और जब शादी के बाद 'सब-कुछ अपने ऊपर' आ जाता है तो माथा घूम जाता है।
आर्थिक समस्याएं आदमी के अंदर चिड़चिड़ापन ला देती हैं। तब साथी की जरा-जरा सी भूलें बड़ी और नाकाबिले बरदाश्त लगती हैं। दोनों ने चूंकि प्रेम विवाह किया होता है तो कोई भी अपने आपको दूसरे के सामने कमजोर साबित नहीं करना चाहता और भरपूर मुकाबला करता है आरोप-प्रत्यारोप के इस दौर में। तब शादी से पूर्व अपने प्रेम में फिर उन्हें गलतियां नजर आती हैं। ऐसा कम से कम 95 प्रतिशत प्रेमी-प्रेमिकाओं के मामले में होता है।
ऐसा कम होता है कि किसी जोड़े का प्रेम जीवन पर्यन्त बना रहे। ऐसा एक उदाहरण दुनिया बदलने वाले ब्लादीमीर इल्यीच उल्यानोव लेनिन का है। उनका क्रूप्सकाया के साथ प्रेम आजीवन कायम रहा। शायद ही दोनों में कभी झगड़ा हुआ हो भी पर वे लेनिन को आजीवन प्रेम करती रही। लेनिन 20-20 घंटे तक काम करते रहे और क्र प्सकाया उनकी सहायता और देखभाल करती रही। दोनों ने कभी विधिवत शादी नहीं की और आजीवन जीवन साथी की तरह रहे।
इसी तरह का एक प्रेम चैकोस्लोवाकिया के क्रांतिकारी जूलियस फ्यूचिक और उनकी पत्नी के मध्य रहा। उनकी पत्नी पति की हत्या के बाद भी उन्हें प्रेम करती रही। कुछ पत्नियों या पतियों के द्वारा एक की मृत्यु के बाद सालों उसकी लाश सुरक्षित रखने के तमाम मामले सामने आए हैं।
यह दुनिया प्रेम के अद्भुत उदाहरणों से भरी हुई है पर आज अधिकांश मामलों मे हम पाते हैं कि प्रेम एक दूसरे को पाने भर का माध्यम रह गया है। प्रेम एक लक्ष्य बन गया है जबकि प्रेम तो एक सतत प्रक्रि या है जो हमेशा चलती रहनी चाहिए। उसका कोई पड़ाव या निश्चित मंजिल नहीं है।
होना यह चाहिए कि शादी के बाद 'पूर्व' बन चुके यह प्रेमिका और प्रेमी अपने को अब पति-पत्नी ही नहीं, प्रेमी-प्रेमिका भी मानें। यहां 'पूर्व' की भावना ही नहीं आनी चाहिए। एक दूसरे पर भरोसा, एक दूसरे की भूलों को नजर अंदाज करना, हर कार्य पर विस्तृत विचार विमर्श और सहमति हो।
भूलें पत्नी से होती हैं तो पति से भी। भूलेंं सामान्य मानवीय स्वभाव है। ऐसा कोई नहीं जिससे कोई भूल न होती हो। ऐसे में एक दूसरे को दोषी ठहरा कर तनाव पैदा करना निरी मूर्खता है। समझदार लोग समस्याओं का हल सूझ-बूझ से करते हैं, झगड़े से नहीं। झगड़ा यूं भी किसी समस्या का हल नहीं है। तो क्या आप अच्छा प्रेमी या प्रेमिका बने रहने को खुद को तैयार करेंगे?
- अयोध्या प्रसाद 'भारती'