ढैंचा पर भी लगा लॉकडाउन, विभाग को अभी तक प्राप्त नहीं हुआ लक्ष्य

-कोट

अभी तक कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं किया गया है और न ही किसी अनुदान की घोषणा की गई है। किसान खुद की लाभ लेने के लिए ढैंचा की खेती कर सकते हैं।
-प्रवीण कुमार झा
जिला कृषि पदाधिकारी
जागरण संवाददाता, सुपौल: वैश्विक महामारी ने खेतों की सेहत पर भी
प्रतिकूल असर डाला है। संक्रमण की रोकथाम को ले जारी लॉकडाउन ने खेतों के लिए हरी चादर के रूप में विख्यात ढैंचा पर भी लॉकडाउन लगा दिया है। मई माह चल रहा है, परंतु अभी तक विभाग को ढैंचा का न लक्ष्य प्राप्त हुआ है और न ही अनुदान की राशि। दरअसल पहले खरीफ और बाद में रबी की फसलों की पैदावार से खेतों का दम निकल चुका होता है। इन दोनों फसलों को लेकर किसानों द्वारा रासायनिक खादों के प्रयोग से खेत कराह रहा होता है। ऐसे में खेतों का नया मौसम शुरू होने से पहले खेतों को भी पोषक तत्व की जरूरत होती है। इसको पूरा करने के लिए हर साल रबी और खरीफ के बीच मिलने वाले समय में किसान कृषि विभाग की मदद से ढैंचा की खेती करते हैं। यह खेती रबी की थकावट दूर करने के लिए ढैंचा का हरी चादर ओढ़ खरीफ के लिए तैयार हो जाता है। ढैंचा की खेती से मिट्टी को नई ताकत और ताजगी मिलती है। हर साल किसानों को ढैंचा पर सरकार से अनुदान मिलता है। परंतु इस साल कोरोना संकट अभी तक जिले को ना तो कोई लक्ष्य निर्धारित है और ना ही अनुदान की घोषणा की गई है। हरी चादर के नाम से विख्यात ढैंचा की खेती से मिट्टी के पोषक व जैविक तत्व में वृद्धि होती है। ढैंचा का पौधा जब बड़ा हो जाता है तो हरे पौधे को ही मिट्टी में जोत कर मिला दिया जाता है। उनमें प्रचुर मात्रा में यूरिया रहने के कारण मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है।
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वैज्ञानिकों की राय
राघोपुर कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक डॉ मनोज कुमार के अनुसार
ढैंचा खेती को मिट्टी के लिए योगासन काल भी कहा जाता है। जब खेत रबी
फसलों से टूट चुका होता है तो फिर ढैंचा की खेती मिट्टी को राहत पहुंचाता
है। वैज्ञानिक के अनुसार हरी खाद के रूप में प्रसिद्ध ढैंचा के तना और
पतियों में प्रचुर मात्रा में यूरिया होता है। इसे प्राकृतिक यूरिया भी
कहा जाता है। इससे खेतों की मिट्टी को प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व मिलता
है। जिससे खेती की पैदावार क्षमता बढ़ जाती है। इसके लिए रबी फसल के कटने के बाद खेत की जुताई किए बिना ही एक चीरा लगाते हुए 10 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से बुवाई कर सकते हैं। वैज्ञानिक के अनुसार ढैंचा का पौधा खेत में करने से खेतों में कार्बनिक पदार्थों के साथ ही उर्वरा की मात्रा में भी काफी वृद्धि हो जाती है। इसकी खेती से 15 से 18 किलोग्राम नाइट्रोजन खेत को मिलता है। जो 35 से 40 किलोग्राम यूरिया के बराबर होता है।
कैसे करें खेती
कृषि वैज्ञानिक डॉ मनोज कुमार के अनुसार खेत में ढैंचा की बुवाई के एक
माह बाद उसके पौधे दो से ढाई फीट हो जाता है। जब खेत की जुताई कर सारे पौधे को किसी एक दिशा में मिट्टी में पलट दिया जाता है तो ढैंचा की हरे
पौधे खेत की मिट्टी में दबकर दो से 3 दिनों में सड़ने लगती है। उसके
सड़ने से इसमें मौजूद तमाम पोषक तत्व उसी खेत की मिट्टी में एकत्र हो
जाता है। जिससे आगामी खरीफ की खेती के दौरान पौधे को भरपूर मात्रा में
पोषक तत्व मिलता है।
Posted By: Jagran
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