हिस्सा नहीं मिला तो भड़कीं मैडम
एक दो दिन नहीं, एक माह से अधिक समय से बाजार बंद है। ऐसे में एक बड़े व्यवसायियों ने कमाने का नया तरीका ढूंढ़ा। दो वर्दी वाले साहब को गुलाबी-गुलाबी नोट का टुकड़ा देकर पटा लिया। एक वर्दी वाले साहब ने थोड़ा ज्यादा माल लिया यह बोलकर कि वे बड़े पद पर हैं और बहुत दिनों से हाथ सूखा हुआ ही है। फिर सब कुछ सेट होने के बाद अंदर-अंदर दुकान सुबह खुलने लगी और बिजनेस तो मानों उड़ान भरने लगी। इसका पता एक वर्दी वाले मैडम को लगी आगबबूला हो गई। फिर क्या था अपनी हिस्सेदारी के लिए पहले लगुआ-भगुआ से खबर भेजी। आकर सब सेट करने का प्रस्ताव दिया। लेकिन, अन्य साहबों को सेट कर चुके व्यवसायियों ने भाव ही नहीं दिया। इससे मैडम गुस्से में आ गई और आकर एक-दो को रंगेहाथ पकड़ लिया। फिर क्या! दोनों वर्दी वाले ने किसी तरह समझौता कराकर मामला सेट किया।
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अब वे डरे हुए हैं
नेताजी को समाज में रौब दिखाने और चमचों से वाहवाही लूटने की आदत हो गई है। अभी कंटेनमेंट जोन बना तो उनका मन थोड़ा रौब दिखाने को मन मचल रहा था। उनके घर के आगे से नगर के चुने हुए जनप्रतिनिधि व एक नया ज्वाइन किए वर्दी वाले क्षेत्र का जायजा लेते गुजर रहे थे। नेताजी की बांझें खिल गई। हाफ पैंट में ही लटक गए उनके पीछे। वे जिस घर के आगे से निकलते वहां से जोर से आवाज लगाते- किसी को कोई दिक्कत तो नहीं? वे चेहर चमकाने का मौका था। चेहरा पहचानने में कोई चूक न हो, इसके लिए मास्क भी नहीं लगाया था। इतना तक तो ठीक था, लेकिन जब यह फोटो सोशल साइट्स पर वायरल हुआ तो उनका चेहरा देखते ही बन रहा था। अब तो वर्दीवाले साहब भी डरे हैं कि उनके साथ बिना मास्क लगाकर घूमने पर उनपर भी न कार्रवाई हो जाए!
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सपना ही टूट गया
जिले के बड़े साहब एड़ी-चोटी एक किए थे। जिले में कोई भी कोराना पॉजिटिव नहीं निकले, इसके लिए बहुत मेहनत कर रहे थे। जब कोई संदिग्ध मामला भी आता था तो साहब एकदम से चुप हो जाते थे। लेकिन अंदर ही अंदर उस संदिग्ध को ठीक कराने में लग जाते। गर्म पानी पिलवाते, देसी नुस्खे अपनाते। मन ही मन पुरस्कार पाने का सपना देख रहे थे। इस बीच दूसरे जिले से आए एक वर्दीधारी ने सब मटियामेट कर दिया। इतने दिनों तक ठीक रहा था और अब जब कुछ समय बाद पुरस्कार लेने वालों में नाम आता तो सब किए-धरे पर पानी फिर गया। अब तो साहब को सपने में भी वहीं नजर आ रहा है। लगातार चिंतित हैं कि कहीं दूसरे जिले से भी ज्यादा संख्या उनके जिले में ही न बढ़ जाए! ऐसा हुआ तो परेशानी बढ़ेगी, क्योंकि उनका रिश्ता सफेद कोट वाले से भी ठीक नहीं है।
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लगता है हाय लग गई
कंटेनमेंट जोन बनने तक तो साहब की खूब मस्ती थी। दिन भर रौब दिखाने का मौका मिलता था। शाम तक पॉकेट भी गरम हो जाता था। लेकिन, शहर में जिस दिन से कोरोना पॉजिटिव केस मिला है चौराहे से वर्दी वाले साहब की ड्यूटी ही बदल गई है। अब कंटेनमेंट जोन में साहब को दिन भी चाय-पानी पर भी आफत है। उनकी ऊपरी कमाई तो अभी पूरी तरह से बंद हो गई है। पहले जिस चौक पर ड्यूटी थी वहां एक दुकान वाले से सेटिग कर ली थी। उसे आधा शटर खोलकर दिनभर लस्सी और मिठाई बेचने की छूट दे रखी थी। इसके बदले में दिन में उन्हें मलाई मारकर दो-चार कप चाय भी मिल जाता था। लेकिन कंटेनमेंट जोन हो जाने से उनका पूरा दिन सूखा चला जाता है। अब तो कहते हैं- चौक पर जो कान पकड़ कर उठक-बैठक बच्चों का कराया न, उसी की हाय लग गई।
Posted By: Jagran
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