शहरनामा:::: सुपौल :::

तुम्हारे वोट से जीते नहीं हैं

नौकरी के बाद राजनीति का धुन सवार हुआ, किस्मत ने साथ दिया और बड़ों के आशीर्वाद से कुछ दिनों के लिए ही सही वे सदन पहुंच गए। अगले चुनाव में इन्हें झटका लग गया। अब वे अगले की काट खोजने लगे। इसी चक्कर में वे बाबा के ही सफल दरबारी बन गए। बाबा भी इस कुनबे से किसी चेहरे की तलाश में थे सो अपना शागिर्द बना लिया। माननीय इस बार बड़े सदन पहुंच गए। सब कुछ मजे में था लेकिन इस कोरोना ने तो परेशान कर दिया। एक तो माननीय खुद दिल्ली में फंसे बैठे हैं उपर से जनता अपने घर पहुंचाने के लिए परेशान करने लगी। फोन कॉल भी किया और उसे वायरल भी कर दिया। माननीय करते भी क्या! बाबा से सारा गुर सीख पाए नहीं थे सो जनता से दो टूक कह दिया- एक तो तुम्हारे वोट से जीते नहीं, दूसरे आगे भी मत देना वोट।
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सोना तो पड़ेगा ही
आदमी हैं तो उसकी कुछ प्राकृतिक जरूरतें हैं। जैसे भूख लगनी है वैसे ही नींद भी आना है। इसलिए सोना तो पड़ेगा ही। लेकिन, ये जनाब सोने के चक्कर में फंस गए। लॉकडाउन में बैरियर पर ड्यूटी लगी थी। सब उनके हिसाब से चल रहा था। सख्ती भी, नरमी भी। बड़े साहब को तरह-तरह की सूचनाएं भी प्राप्त हो रही थी। बड़े साहब ने अपने अधीनस्थ पदाधिकारियों को ड्यूटी पर तैनात पदाधिकारियों पर नजर बनाए रखने के लिए सचेत किया। वैसे, साहब को अपने सिस्टम का सारा खेल-वेल पता है ही, पर सोचा देखें कुछ बदला है क्या! सादे लिबास में निकले। गाड़ी भी अपनी नहीं ली। बैरियर पर साहब लोग कर्मियों के साथ सोते हुए धरा गए। जगाए गए, दांत निपोर दिया। कोई और होता तो गाल बजा देते, पर बड़े साहब ने खुद पकड़ लिया! तो..? तो क्या.. स्पॉट पर थे न.. थोड़ी बदनामी ही न हुई.. बस्स..!
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पान खोजे भैया हमार
लॉकडाउन ने घर में क्या बैठाया सारा अनमना भी खतम कर दिया है। मदिरा तो पहले ही सरकार ने बंद करा दिया अब लॉकडाउन में पानो पर आफत हो गया है। पुड़िया में तो आग लगी है। पांच गुना तक दाम बढ़ा दिया है। लेकिन जो मजा पान में है वह और किसी में कहा। बहुत दिनों के बाद सड़क पर सीना चौड़ा कर चलते दिखे भैया यह ज्ञान दे रहे थे। लॉकडाउन में आवश्यक सामानों की खरीदारी के लिए तनिक छूट क्या मिली गली-कूची में घूम-घूमकर पान की गुमटी खोज रहे हैं कि कहीं कोई खुली मिल जाए! निराशा हाथ लगी। वैसे, लॉकडाउन में उन्होंने अपनी व्यवस्था भी बना ली है। अपना पनेरी पान लगाकर कुछ-कुछ अंतराल पर पहुंचा देता है। भैया भी इस विकट परिस्थिति में उसका कोई हिसाब-किताब नहीं करते। उसे एक अच्छी रकम थमा देते हैं। उसका भी काम चल जाता है और भैया का भी।
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काटे नहीं कटती दिन व रात
लॉकडाउन में तो दिन व रात काटना मुश्किल हो रहा है लोगों को। एक बंधा-बंधाया रूटीन था। जीवन का अपना आनंद। सब कुछ इत्मीनान से चल रहा था, लेकिन इस लॉकडाउन ने तो पूरी दिनचर्या पर ही लॉक लगा दिया है। ये बड़े-बड़े लोगों की महफिल की बात है। पद भी बड़ा और कद भी बड़ा। सुबह जगे अपनी नित्यक्रिया के बाद कुछ खेल-वेल हुआ, जिले व शहर की आवोहवा लगी, सूत्रों से कुछ जानकारी मिली, कुछ उस पर काम हुआ। पूरा दिन अपने कामों में बीता और शाम हुआ, फिर कुछ खेल-वेल। लेकिन फिलहाल तो इस पर रोक लग गई है, सरकार का नियम कानून है, उसका अनुपालन भी तो जरूरी है सो कहीं निकलना भी मुश्किल हो रहा है। वैसे अच्छी सेहत के लिए भी कुछ इधर-उधर भी तो जरूरी है। लेकिन अभी तो परेशानी बढ़ गई। अब लोग कहने लगे हैं काटे नहीं कटती दिन व रात।
Posted By: Jagran
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