लखीसराय से शहरनामा :::

कोरोना ने बढ़ा दी बड़े साहब की चिता

अपने जिले के बड़े साहब हैं बड़े सीधे। कुछ देर पास बैठते ही दिल की बात कहने से वे चूकते नहीं हैं। सरकारी नौकरी के अंतिम पड़ाव में वे कामकाज की बाकी जिदगी आराम से काटने के मूड में थे लेकिन कोरोना ने उनकी चिता बढ़ा दी है। उनकी दिनचर्या इस कारण गड़बड़ हो गई है और इस कारण स्वास्थ्य भी सही नहीं रह रहा है। हर मामले में समय के पाबंद और तय समय के अनुसार ही अपनी दिनचर्या में रहने वाले बड़े साहब का सब असमय हो गया है। लेट से जागने, समय पर नाश्ता, फिर कार्यालय, दोपहर का भोजन और उसके बाद कुछ देर आराम करने की व्यवस्था को कोरोना की नजर ही लग गई। कब, किधर, कहां निकलना पड़ जाए इसको लेकर तनाव और बाहर से आवास आने पर कोरोना जैसी महामारी संग लाने के भय के बीच बड़े साहब का टेंशन दूर नहीं हो रहा।
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लॉकडाउन के बाद आना
कोरोना और इस कारण लॉकडाउन ने कामचोरों की जिदगी को बेहतर माहौल दिया है। इसके बहाने उन्हें दूसरा कोई काम करना नहीं है। बहाना बनाना भी आसान है कि लॉकडाउन का पालन कराना आसान है क्या? जिले की सीमांत वाले थाने के थानेदार साहब का अंदाज भी कुछ इसी तरह का है। शादी की नीयत से अपहरण, सात निश्चय योजना में काम में रुकावट, मारपीट जैसी घटनाओं का आवेदन उन्हें स्वीकार तक नहीं है। यदि मारपीट में जख्म हो गया तो अस्पताल भेजने और केस दर्ज करने की मजबूरी होती है, वरना अन्य किसी तरह का आवेदन लेने से वे इन दिनों इन्कार कर जाते हैं कि लॉकडाउन है। पहले ही काम का बहुत प्रेशर है, ये सब क्या लेकर थाने आ जाते हो? गजब है उनकी माया की शक्ति। वरीय अधिकारी को भी अपने मोहपाश में बांध लेते हैं। क्षेत्र की जनता करे तो क्या करे! झेलना मजबूरी है।
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महंगी पड़ गई सिंघमई
नया नवेला लड़का जब किसी जिम्मेदार ओहदे को प्राप्त करता है तो कुछ दिनों तक उसे लगता है कि उसे ईश्वर ने सारी शक्ति दे रखी है। वह जो चाहेगा वो करने का पॉवर उसके पास है। लेकिन जब एक बार ठेंस लग जाती है तो उसे समझ में आ जाती है कि वह पब्लिक सर्वेंट से अधिक कुछ नहीं है। जिस दिन भी पब्लिक चाह लेगी ओहदा और शान मिट्टी में मिल जाएगा। पड़ोसी जिले से आया नया नवेला खाकी वर्दी वाला भाई भी कुछ अंदाज में हिदी सिनेमा का सिघम बनने का ख्वाब पाल रखा था। उसे नहीं पता कि कानून सबके लिए बराबर है। उसकी बार-बार की गलतियों को उनके कप्तान बहुत दिनों तक दबा तो सकते नहीं थे। सत्ता तक पहुंच रखने वाले परिवार से पंगा लेना उसे महंगा पड़ गया। यदि बात आगे नहीं रुकी तो बड़ी कार्रवाई से सिघम साहब बच नहीं सकते हैं।
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गरीबी में दारू बनाएगी अमीर
बिहार में दारू यानी शराब की बिक्री प्रतिबंधित है, लेकिन जिले का कोई ऐसा कोना नहीं जहां यह उपलब्ध नहीं होती है। कोरोना के लॉकडाउन में जहां पूरे देश में दारू की दुकानें बंद थी फिर भी अपने जिले में इसकी आपूर्ति सामान्य दिनों की तरह रही। अलग बात है कि कीमत में काफी उछाल रहा। अब जब देश की आर्थिक स्थिति सुधारने को राज्य सरकारों की अपील पर दारू की दुकानें खोल दी गई तो बिहार के लोगों के मुंह से लार टपकना तो लाजिमी है। सोशल मीडिया के माध्यम से बिहार की आर्थिक व्यवस्था सुधारने के लिए दारू बिक्री करने की मांग की जा रही है। उधर बैक डोर से होम डिलीवरी दारू पीने के शौकीन लोगों में खुशियां चौगुनी है। अब उन्हें थोड़ी आर्थिक राहत के साथ आसानी से दारू मिल जाया करेगी। कीमत में कमी होने की उम्मीद के बीच महुआ दारू से मुक्ति भी मिलेगी।
Posted By: Jagran
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