चेहरे पर तनाव, आंखों में बेबसी और दिल में घर पहुंचने की ललक

गोपालगंज : चेहरे पर तनाव, आंखों में बेबसी और दिल में घरों तक पहुंचने की लाचारी पाले ये मजदूर आठ दिनों से पैदल यात्रा कर रहे हैं। गुड़गांव व नोएडा में काम करने वाले ये प्रवासी लॉक डाउन के बाद मिली छूट का फायदा उठाकर अपने घरों को लौटने को मजबूर है। दिहाड़ी मजदूर संकट की इस घड़ी में अपने घर को जाने के लिए सबसे ज्यादा परेशान हैं। परिवार व बच्चों के बीच रहने की जिद उन्हें सैकड़ों किलोमीटर तक पैदल चलने को विवश कर दिया है।

लगातार आठ दिन से पैदल चल रहे सुपौल व अररिया जिले के ये मजदूर भूखे-प्यासे सर पर सामानों को बोझ लेकर एक जिले से दूसरे जिले तक पहुंच रहे हैं। सोमवार को राष्ट्रीय उच्च पथ संख्या 28 पर बथना कुटी के समीप पैदल आते दिखे। गुड़गांव व नोएडा से पलायन करने को मजबूर इन मजदूरों पर पुलिस-प्रशासन की सख्ती का खौफ कम, घरों तक पहुंचने की बेबसी अधिक झलकती दिखी। दरअसल कोरोना वायरस के प्रकोप के पहले वे दूसरे प्रांत में दैनिक मजदूरी का कार्य करते थे। लॉकडाउन में काम बंद होने के बाद इनके समक्ष आíथक संकट प्रारंभ हुआ। जहां मजदूर काम करते थे वहां के संवेदक ने काम देने से मना कर दिया। ऐसे में इनके समक्ष घर लौटने के सिवाय दूसरा कोई उपाय नहीं था। लिहाजा वे लोग घर वापसी कर रहे हैं। एक दर्जन मजदूरों के जत्था में शामिल राजू मंडल ,सुरेश महतो, देव प्रसाद, तूफानी पटेल आदि ने बताया कि ठेकेदार ने मदद करना बंद कर दिया। लिहाजा पैसे के लाले पड़ गए। ऐसे में घर जाने के सिवाए कोई उपाय नहीं है। मीलों का सफर पैदल चलने को मजबूर दर्जनभर मजदूर बथना कुटी के समीप कड़ाके की धूप में सड़क से भूखे प्यासे गुजर रहे थे। इन्हें पता नहीं कि वे कब अपने घर पहुंचेंगे। फिर भी अपने मंजिल की ओर आगे बढ़ते जा रहे थे। इनके चेहरे पर दिख रही बेबसी उनकी कहानी बताने के लिए पर्याप्त दिखी। बहारहाल पैदल यूपी व बिहार की सीमा पर बलथरी चेकपोस्ट पहुंचने के बाद उनकी स्क्रीनिग का कार्य हुआ और प्रशासनिक स्तर पर इन्हें अररिया व सुपौल जाने के लिए वाहन उपलब्ध कराया गया।
बिहार के बॉर्डर पर कोरोना जंग लड़ रही एएनएम नीतू यह भी पढ़ें
Posted By: Jagran
डाउनलोड करें जागरण एप और न्यूज़ जगत की सभी खबरों के साथ पायें जॉब अलर्ट, जोक्स, शायरी, रेडियो और अन्य सर्विस

अन्य समाचार