बदकिस्मती का ताला नहीं कोई खोलने वाला

-जिले में नहीं है कोई उद्योग संचालित निकट भविष्य में उम्मीद भी कम

-उद्योग-धंधे के अभाव में 30-40 फीसद आबादी कर जाती है पलायन
-लॉकडाउन में अन्य राज्यों से प्रवासी लौट रहे घर
- उद्योग-धंधों का अकाल बनेगा परेशानी का सबब, अपना हाथ होगा जगन्नाथ
जागरण संवाददाता, सुपौल: जिले में न तो कोई उद्योग संचालित है और ना ही निकट भविष्य में इसकी कोई उम्मीद है। उद्योग-धंधे के अभाव में हर साल 30-40 फीसद आबादी पलायन कर जाने के लिए मजबूर होती है। लॉकडाउन में बाहर भी उद्योग-धंधों के बंद हो जाने के कारण अन्य राज्यों से प्रवासी लौटकर घरों को आ रहे हैं। अब उद्योग-धंधों का अभाव परेशानी का सबब बनेगा और अपना हाथ ही जगन्नाथ होगा। लॉकडाउन 4 में भले ही उद्योगों के ताले खोले जाने की संभावना हो लेकिन यहां बदकिस्मती के ताले को खोलने वाला कोई नहीं है ।
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एक तो कोसी नदी जब नेपाल से भारत में प्रवेश करती है तो दुर्भाग्यवश प्रवेशद्वार सुपौल ही बनता है। प्रलय के मुहाने पर बसे इस जिले को कोसी अपने हिसाब से दहाती-भसाती रही है। नतीजा है कि कोसी के पानी में गरीबी की फसल खूब लहलहाती है। जिस समय कोसी को बांधा गया उस समय भी विकास के खूब कसीदे गढ़े गए और सब्जबाग लगाए गये लेकिन कोसी से निकाली गई नहरों के आखिरी छोर तक पानी नहीं पहुंच सका। अब तो विभिन्न स्थानों पर नहरों का अस्तित्व भी समाप्त हो गया। किसानों को इसका कितना मिला यह तो किसान ही जानते हैं। यह अलग बात है कि जिन खेतों की सिचाई नहर से नहीं होती है उसे भी कागज पर नहर से सिचित घोषित कर दिया जाता है। खेती ही यहां लोगों के आजीविका का साधन है। अपनी किस्मत और मेहनत के बूते किसान अन्न उपजाते हैं। यहां याद करना जरूरी होगा कि 18अगस्त 2008 को कुसहा में तटबंध को तोड़कर कोसी जब उन्मुक्त हुई तो जलप्रलय मच गया था। सरकार को राष्ट्रीय आपदा घोषित करनी पड़ी थी ।आपदा की उस घड़ी में भी लंबी-चौडी घोषणाएं हुई थी। कोसी को पहले से बेहतर बनाने के दावे हुए थे। मगर सब ढाक के तीन पात हुए। गरीबी में जीते लोगों की गरीबी और बढ़ी पलायन की रफ्तार में और तेजी आ गयी । राष्ट्रीय आपदा को झेले लोग रोजगार के लिए घरों से भागे अब वैश्विक आपदा ने वापस ला पटका है। फिलहाल क्वारंटाइन में हैं। यहां से निकलने के बाद किस्मत को कोसने के लिए पूरी जिदगी पडी हैं । खेती में हाथ आजमाने के सिवा कोई चारा नहीं है और खेती के लिए ना समुचित प्रबंध है और ना ही कृषि आधारित उद्योग की कोई व्यवस्था।
Posted By: Jagran
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