शहरनामा:::: सुपौल :::

काम का सेहरा लेना ही पड़ा

अब सोशल क्रांति का दौर है। जो करते हैं वह दिखाना जरूरी है। नेतागिरी में बने रहना है तो हर काम का सेहरा लेना ही पड़ता है। बाबा पहले इसपर भरोसा नहीं करते थे। वे हमेशा कहते थे कि जनता ने काम के लिए चुना है। अपना काम करते रहिए, जनता सब देख रही है। इसलिए वे कभी यह बताते भी नहीं थे किसी को कि फलां काम उनके सौजन्य से ही हुआ है। बस दरबार के लोगों को ही पता रहता था कि सारी व्यूह रचना बाबा की ही है। बाबा ने लंबी पारी खेली और जनता ने भी खूब बाबा का साथ निभाया। लेकिन, अबकी बहुत परिवर्तन दिख रहा है। बाबा के दरबार से खूब बखान निकला करता है। खासकर रेलवे को लेकर, अब अमान परिवर्तन की बात हो कि नई रेल लाइन की स्वीकृति और राशि दिलाने की यश बाबा के ही खाते में जुड़ने लगा है।
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धन्य कोरोना जो देखी गाड़ी
कोसी का इलाका आज भी बहुत मामलों में अछूता है। पूरी दुनिया जिस चीज को देख-सुन के पुरानी हो जाती है तब कोसी में उसका फाउंडेशन होता है। रेल के मामले में भी ऐसा ही कुछ है। दुनियां बुलेट ट्रेन पर चढ़ने को है और हमलोग बड़ी रेल लाइन के सपने संजोए हैं। सहरसा से सुपौल तक पैसेंजर गाड़ी की शुरुआत रेल ने कर दी। लॉकडाउन में वह गाड़ी बंद है। मार्च में लोग उम्मीद लगाए बैठे थे कि सहरसा से आगे की गाड़ी भी नसीब हो जाए। अभी धन्य कोरोना जो पटियाला और जयपुर से सीधे चलकर गाड़ी सुपौल तक आई। लोग उस गाड़ी को देखने को इतने जिज्ञासु थे कि सख्ती के बावजूद रात साढ़े नौ बजे स्टेशन के इर्द-गिर्द पहुंच गए। कई अपनी छत से इस लंबी दूरी की गाड़ी को निहार रहे थे। शायद सभी लंबी दूरी की गाड़ी का रूप-रंग ही देखना चाह रहे थे।
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आपदा में भी अवसर
यह कोसी का इलाका है। इस इलाके में प्रतिभावान लोगों की कोई कमी नहीं है। कुछ प्रतिभाशाली तो ऐसे हैं कि राह चलते हुए उनकी प्रतिभा सड़क पर टपकती नजर आती है। अभी प्रधानमंत्री जी आपदा को अवसर में बदलने का आह्वान किया, लेकिन यहां के लोग खासकर सरकारी तंत्र से जुड़े लोगों को यह विधा पहले से आती है। देखिए, अभी चारों ओर बैरियर लगा है। पुलिसवालों की सख्त ड्यूटी लगी है। परिदा भी पर नहीं मार सकता। लेकिन आदमी तो परिदा से ऊपर का चीज है। शराब की फेरी लगाने वाले कोविड-19 का एक स्टीकर चिपकाते हैं और माल इधर से उधर। यह आपदा में कुछ पुलिस वालों के लिए बेहतरीन अवसर देता है। बात यहीं नहीं रुकती। क्वारंटाइन सेंटर में व्यवस्था की बात हो या स्टेशन पर आने वाले प्रवासियों को नाश्ता-पानी देने की बात। यह व्यवस्था में बैठे कुछ भ्रष्ट लोगों के लिए जबरदस्त अवसर है।
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भाई साहब तो चुप्पे हो गए
भाई साहब तो एकदम से चुप्पे हो गए हैं। लगता है कोरोना वाला समय भाई साहब के लिए कुछ ठीक नहीं रहा। अपनी सधी हुई जुबान के लिए ही उन्हें बेहतर मुकाम मिला है। लेकिन, इस दो महीने में तो उनको न तो सरेआम कहीं देखा गया और न ही उनके मुख से कुछ सुना गया। भाई साहब के प्रखर व्यक्तित्व से प्रसन्न रहने वाले उनके चहेतों के बीच तरह-तरह की चर्चाएं चल रही है। बड़े सदन के बड़े नुमाइंदे रह चुके हैं भाई साहब, इसीलिए इतनी चर्चा तो लाजिमी है। उनके चहेते कहते हैं कि अभी तो सदन में फिर से जाने वाला समय था लेकिन ई लॉकडाउन चौपट कर दिया है। लगता है कि इसी सब बात को लेकर शायद भाई साहब एकदम से चुप्पे हो गए हैं। वैसे भाई साहब सधे हुए राजनीतिज्ञ हैं, गंभीर हैं, हो सकता है कि यह नतीजे से पहले वाली गंभीरता हो।
Posted By: Jagran
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