शहरनामा ::: अररिया :::

बात-बात में पुरस्कार की अनुशंसा

वर्तमान कोरोना काल में ही जिले में वर्दीवाले साहब की ज्वाइनिग हुई है। वे कुछ तूफानी करने के प्रयास में लगातार लगे रहते हैं। पौ फटते ही होते ही अकेले सिघम टाइप निकल जाते हैं। गाड़ी भी कुछ अलग हटकर रखते हैं ताकि लोग दूर से ही समझ जाय कि नयका वर्दीवाले साहब हैं। उनकी जो गाड़ी है वैसी गाड़ी फिल्मों में ही देखने को ज्यादा मिलती है। वे हमेशा अपने अधीनस्थों को प्रोत्साहित करने की कोशिश करते हैं। अगर किसी ने पॉकेटमार को भी पकड़ लिया तो पकड़ने वाले को वे सीधे पुरस्कृत करने की अनुशंसा करने की बात करने लगते हैं। इस तरह की अनुशंसा अब तक एक दर्जन अपने अधीनस्थों के लिए कर चुके हैं। पर, अंदर की बात है कि अनुशंसा की बात कर वे अपना कुछ जुगाड़ भी कर लेते हैं। खैर, साहब की अनुशंसा का क्या हश्र होता है वो साहब ही जानते होंगे!
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कोरोना ने चमकाया चेहरा
नेताजी पहली बार अनुकंपा पर चुने गए हैं। स्वभाव से भी सरल हैं। विपक्ष में रहने के बाद भी उन्हें कोई ऐसा मुद्दा नहीं मिल रहा था जिससे चेहरा चमकाने का मौका मिलता। अपनी पार्टी के राजकुमार के सामने कुछ दिखा नहीं पा रहे थे। अभी कोराना ने मौका दिया। प्रवासियों को खाने नमक-भात देने की बात एक चेले ने बताई तो बिना मौका गवाएं वहां पहुंचे और अपनी कीमती मोबाइल फोन में वीडियो बनाकर पार्टी के राजकुमार को भेज दिया। इसके साथ ही वे खूब सरकार पर भी खूब बरसे। क्षेत्र में भी लोगों ने खूब वाहवाही दी और राजधानी में बैठे राजकुमार ने भी शाबाशी दी। इसके बाद अब नेताजी काफी खुश हैं कि इसी बहाने चेहरा तो चमका। अब तो उनकी राजधानी तक में पहचान हो गई। आगे टिकट लेने में भी उन्हें आसानी होगी कि वे विपक्ष के रूप में भी क्षेत्र में सक्रिय रहते हैं।
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महंगा पड़ा समाजसेवी बनना
लॉकडाउन जब पहली बार शुरू हुआ तो पूरे जिले में सैकड़ों समाजसेवी दिखने लगे थे। कोई बिस्किट तो कोई मूड़ी-चूड़ा बांटकर खूब वाहवाही बटोर रहा था। लेकिन लॉकडाउन का सिलसिला जब बढ़ने लगा अधिकतर लॉक हो गए। अब गिने-चुने समाजसेवी ही दान करते हुए दिखाई दे रहे हैं। बेचारे जरूरतमंद अब टॉर्च लेकर समाजसेवी को ढूंढ रहे हैं। सब अचरच में हैं कि लॉकडाउन खत्म हुआ नहीं तो समाजसेवा बंद कैसे हो गई! एक-दो ढूढने पर मिल जाते हैं। पर, जरूरतमंद पर नजर पड़ते ही छुपने का नजदीकी केंद्र खोजने लगते हैं। अगर किसी तरह पकड़ में आ भी गए तो यह कहकर बात टालते हैं कि एक-दो दिन के बाद फिर शुरू करेंगे राहत पैकेज बांटना। अब दबी जुबान से कहते हैं अब कितना दिन बांट सकते हैं? लोग घर भी पहुंच जाते हैं। यह थोड़े ही जानता था, इतना लंबा लॉकडाउन चलेगा और समाजसेवी कहलाना महंगा पड़ जाएगा।
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पैसा बर्बाद नहीं गया
वे कपड़ा के बड़े व्यवसायी हैं। दो बार वर्दी वाले से हलाल हो चुके हैं। माथे पर हाथ धर कर बैठे थे। कसम खा रहे थे कि अब वर्दीवाले से न दोस्ती करेंगे और न ही दुश्मनी। इस बीच जिस वर्दी वाले को थोड़ा मोटा माल दिया था उसका फोन आ गया। जल्दी से मिलने को बुलाया। इसके बाद व्यवसायी को समझाया कि थोड़ा और खर्च होगा, लेकिन जितना घाटा हलाल होने पर हुआ है वह सब सूद समेत वसूल हो जाएगा। फिर क्या था उन्होंने हामी भर दी। अब तो कुछ दुकान खोलने का पास मिल गया। उसी पास से उनके वारे-न्यारे हो गये हैं। अब गदगद है कि वर्दी वाले साहब ने तो उन्हें तार दिया है। अब तो दिन दूनी रात चौगनी मुनाफा हो रहा है। बाकी अधिकतर दुकान वाले अभी भी आस लगाए बैठे हैं कि उनके लिए भी कुछ इस तरह का जुगाड़ हो जाए।
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Posted By: Jagran
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