आठ सौ सेविका-सहायिकाओं का दो वर्षों से नहीं हो रहा मानदेय का भुगतान

-प्रमाणपत्र सत्यापन के नाम पर पदाधिकारी नहीं दे रहे मानदेय, जबकि साठ दिनों में ही करना है सत्यापन

-सरकार ने डीपीओ और सीडीपीओ को सौंपी है प्रमाणपत्र सत्यापन की जवाबदेही
- कुपोषण के विरुद्ध लड़ रही जंग, खुद हो रही कुपोषित
- भ्रष्टाचारमुक्त जागरुकता अभियान ने दोषी के विरुद्ध कार्रवाई हेतु प्रधानसचिव को लिखा पत्र
जागरण संवाददाता, सुपौल: सरकार ने कर्मियों को वेतन एवं मानदेय के भुगतान में भ्रष्टाचार खत्म करने एवं महीने के पहली तारीख को भुगतान सुनिश्चित करने के उद्देश्य से डीबीटी के माध्यम से वेतन एवं मानदेय भुगतान करने की व्यवस्था लागू की है, लेकिन जिले के अधिकांश विभाग के पदाधिकारियों ने सरकार के इस उद्देश्य को विफल कर दिया है। जिलाधिकारी के द्वारा आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका के 899 रिक्त पदों पर नियोजन हेतु प्रकाशित विज्ञापन के आलोक में दो वर्ष पूर्व चयनित लगभग 800 सेविका-सहायिका को मानदेय का भुगतान आज तक नहीं किया गया है। आईसीडीएस के पदाधिकारियों की उदासीनता के कारण जिले के सभी 11 प्रखंड के परियोजना के लगभग 400 सेविका एवं 400 सहायिका बिना मानदेय के प्रत्येक दिन केंद्र पर जाकर सरकार की योजनाओं को भलीभांति बच्चों को स्कूल पूर्व शिक्षा एवं लाभुक महिलाओं का लाभ एवं जागरूकता का पाठ पढ़ा रही हैं तथा वर्तमान समय में कोरोना कर्मी की भी भूमिका निभा रही हैं। भ्रष्टाचार मुक्त जागरूकता अभियान के अनिल कुमार सिंह ने समाज कल्याण विभाग के प्रधान सचिव, आईसीडीएस के निदेशक एवं जिलाधिकारी को पत्र लिख कर जिले के सभी आंगनबाड़ी केंद्रों पर कार्यरत सेविका-सहायिका के मानदेय का भुगतान की व्यवस्था सुनिश्चित करने का अनुरोध किया है। प्रमाणपत्र सत्यापन के नाम पर सेविका-सहायिका का मानदेय भुगतान नहीं किया जा रहा है जबकि कई सेविका-सहायिका का प्रमाणपत्र सत्यापित होकर आ भी गया है। सरकार ने प्रमाणपत्र के सत्यापन की अधिकतम तिथि 60 दिन ही निर्धारित की है।
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जिलाधिकारी ने वर्ष 2018 में प्रकाशित किया था विज्ञापन
प्रधान सचिव समाज कल्याण विभाग बिहार पटना के पत्रांक 990 दिनांक 5 अप्रैल 2016 द्वारा सेविका-सहायिका चयन संबंधी मार्गदर्शिका 2016 के आलोक में सुपौल जिला के आईसीडीएस अंतर्गत संचालित बाल विकास परियोजना के अधीन 468 सेविका एवं 431 सहायिका का पद रिक्त था। जिलाधिकारी ने विज्ञापन संख्या 01 वर्ष 2018 प्रकाशित कर 5 मार्च से 14 मार्च 2018 तक विहित प्रपत्र में आवेदन की मांग की थी तथा अंतिम मेधा सूची का 11 अप्रैल 2018 तक प्रकाशित करते हुए आमसभा की कार्रवाई पूर्ण की जवाबदेही डीपीओ एवं सीडीपीओ को दी गई थी। वर्ष 2018 में अधिकांश केंद्रों पर चयन करने के बाद शेष केंद्रों पर वर्ष 2019 में चयन किया गया। जिले में लगभग 800 सेविका-सहायिका का चयन किया गया है। वर्तमान समय में राज्य सरकार के द्वारा 2434 आंगनबाड़ी केंद्र स्वीकृत है जिसमें 2318 केंद्र क्रियाशील है जबकि लगभग 1900 केंद्र के ही सेविका-सहायिका का मानदेय का भुगतान हो रहा है। मानदेय भुगतान की क्या है प्रक्रिया
सरकार के द्वारा सेविका-सहायिका के चयन हेतु प्रकाशित मार्गदशिका में स्पष्ट निर्देश है कि मूल प्रमाण पत्रों के आधार पर आमसभा द्वारा चयनित आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका के प्रमाण पत्रों की जांच चयन तिथि से 60 दिनों के अंदर सीडीपीओ के द्वारा कराया जाएगा। यदि 45 दिनों के अंदर संबंधित निर्गत प्राधिकार से प्रमाण्-पत्र सत्यापित नहीं होता है तो सीडीपीओ स्वयं जाकर एवं अपने अधीनस्थ नियमित कर्मी को भेज कर सत्यापित कराएगी। डीपीओ यह सुनिश्चित करेंगे कि ऐसे मामलों का सत्यापन निर्धारित समय-सीमा के अंदर अनिवार्य रूप से की जाए। बिना प्रमाण पत्र सत्यापन के आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका को मानदेय का भुगतान नहीं किया जाए।
भ्रष्टाचार मुक्त जागरूकता का क्या है आरोप
आरटीआइ कार्यकर्ता अनिल कुमार सिंह का मानना है कि आईसीडीएस विभाग भ्रष्टाचार के रंग में पूर्णत: डूब चुका है। विभाग का एक गिरोह के रूप में काम हो रहा है। सेविका को प्रति माह 5650 रुपये तथा सहायिका को 2825 रुपये का मानदेय विभाग देती है, जिसमें भी विभाग के पदाधिकारियों का नजर रहता है। विभाग में किसी भी प्रकार की गलती के लिए सिर्फ सेविका को ही दोषी मानकर चयनमुक्त करने में अपनी भलाई समझते हैं।
Posted By: Jagran
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