स्नेह की चादर में मिट गई थकान, खाते-पीते नाप ली डगर

गोपालगंज : दोपहर की धूप आगे बढ़ने से रोक रही थी। गर्दन पीछे घुमाकर मनोज शर्मा ने अपने पीछे-पीछे चल रहे अब्दुल रहीम की तरफ देखा। नजरें मिली तो अपने साथी के मन के भाव को भांप कर मनोज शर्मा ने एनएच 28 के किनारे पेड़ की छांव में अपना रिक्शा रोक लिया। अब्दुल भी वहीं रिक्शा लगाकर अपने पांच साथियों के साथ सुस्ताने लगे। दिल्ली से अपने-अपने रिक्शा से किशनगंज के लिए निकले ये पांचों साथियों को रास्ते में कई जगह ऐसे ठांव का सहारा लेना पड़ा। अभी आगे का सफर भी लंबा है। लेकिन इन्हें न तो सरकार से कोई शिकायत है और ना ही ये अपने परेशानियों का रोना रो रहे थे। इनके चेहरे पर तो इस बात का सुकून झलक रहा था कि इस मुसीबत की घड़ी में हर कोई घर लौट रहे प्रवासी कामगारों के साथ खड़ा है। रास्ते भर पग-पग लोग प्रवासियों कामगारों के लिए स्नेह की चादर बिछाए सड़क किनारे खड़े मिले। इसी स्नेह की चादर से रिक्शा चालक मनोज शर्मा व अब्दुल रहीम की थकान मिट गई। इन्होंने रास्ते भर खाते पीते 12 सौ किलोमीटर का लंबा डगर तय कर लिया।

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कोरोना के इस संकट काल ने ठीक-ठाक चल रहे जीवन की गाड़ी को बेपटरी कर दिया। दिल्ली सहित विभिन्न प्रांतों में काम करने वाले प्रवासी अपने घर को लौट रहे हैं। कोई प्रवासी पैदल, कोई साइकिल तो कोई रिक्शा से बिहार की सीमा में प्रवेश कर रहे हैं। रास्ते में मालवाहक वाहन सहित जो भी साधन मिल उसका भी अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए सहारा ले रहे हैं। दिल्ली में रिक्शा चला रहे किशनगंज के मनोज शर्मा, अब्दुल रहीम, रमजान अली को भी इस विकट परिस्थिति में अपना पेट पालना मुश्किल हो गया तो ये लोग अपने दो और साथी के साथ अपने अपने रिक्शा से अपने घर के लिए निकल पड़े। दिल्ली से सात दिन में कुचायकोट के बथना कुट्टी के समीप एनएच 28 किनारे एक पेड़ के नीचे सुस्ताने के लिए रुके रिक्शा चालक मनोज शर्मा ने बताया कि वे सभी लोग किशनगंज के एक ही मोहल्ले के रहने वाले हैं। पिछले कई वर्षों से वह दिल्ली में ही रिक्शा चलाते हैं। सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था, तभी करोना महामारी के चलते लॉक डाउन हो गया। जो भी थोड़े बहुत पैसे पास थे, उससे कुछ दिन तक काम चलाते रहे। फिर घर से पत्नी का जेवर गिरवी रखकर कुछ पैसे मंगाए गए। पर, यह पैसा भी जल्द ही समाप्त हो गया। सामने मुश्किल खड़ी देख ये लोग अपने अपने रिक्शा से अपने घर के लिए निकल पड़े। अब्दुल रहीम ने बताया कि दिल्ली से आगे बढ़ने के बाद से खाने पीने की दिक्कत नहीं हुई। घर लौट रहे लोगों को रास्ते में जगह-जगह समाजसेवियों तथा ग्रामीणों खाना पानी उपलब्ध कराते रहे। रास्ता कठिन था, लेकिन लोगों से मिल रहे स्नेह से हौसला नहीं टूटा। स्नेह की चादर में लंबी दूरी तय करने की थकान मिटती गई। खाते पीते यहां तक पहुंच गए। वे बताते हैं कि यहां आने पर पता चला कि यहां से प्रवासियों को बस से उनके जिले पहुंचाया जा रहा है। पास में अपना रिक्शा है, बस में बैठकर नहीं जा सकते। लोगों के स्नेह के चादर के सहारे आगे की दूरी भी इसी तरह से तय कर घर तक पहुंच जाएंगे।
Posted By: Jagran
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