1437 हिजरी पूर्व मनाई गई थी पहली ईद

संवाद सूत्र, कोचाधामन (किशनगंज): माहे रमजानुल मुबारक के एक महीने रोजे रखने के बाद ईद मनाई जाती है। ईद को लेकर लोगों में उत्साह का माहौल है और इसे लेकर तैयारियां भी तेज हो गई है। इस बार लोग कोरोना संक्रमण के मद्देनजर ईदगाहों में ईद की नमाज अदा नहीं कर अपने अपने घर आंगन में ही ईद की नमाज अदा करेंगे।

इस संबंध में मौलाना शकील अहमद ने बताया की ईद-उल-फितर का पर्व पहली बार 1437 हिजरी पूर्व सऊदी अरब के मदीना शहर में मनाया गया था। तभी से पूरी दुनिया में इस्लाम धर्म के अनुयायी ईद का पर्व बड़ी खुशी व उमंग के साथ मनाते आ रहे हैं। पैगम्बर हजरत मुहम्मद ने बद्र के युद्ध में विजय प्राप्ती के बाद खूशी में ईद मनाई थी। यह युद्ध रमजान महीने में लड़ी गई थी। ईद-उल-फितर का मतलब है कि एक की खुशी में दूसरे भी शामिल हों। रमजान माह में रोजा रखने और अन्य इबादत करने के बाद अरबी माह सव्वाल की पहली तारीख को ईद-उल-फितर का त्योहार मनाई जाती है। यह त्योहार इसलिए भी खास है कि इस त्योहार में असहाय, लाचार, गरीब व मजलूम को ईद की खुशी में शामिल किया जाता है। पैगम्बर हजरत मुहम्मद ने हुक्म दिया कि ईद की नमाज अदा करने से पहले गरीब, मजबूर व लाचार लोगों में सदका ए फितर का पैसा बांट दिया जाए,जिससे की वह भी ईद की खुशी में शामिल हो सके।
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Posted By: Jagran
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