रात 12 बजे खुद में संक्रमण का पता चला, रात 1 बजे भागकर एसएमएस हॉस्पिटल पहुंची

मरीजों के लिए चिकित्सक बहुत बड़ी उम्मीद होते हैं. जब आपकी स्वास्थ्य को लेकर गड़बड़ चल रही हो व दिल-दिमाग बस एक ही बात सोचे कि क्या अब क्या होगातब आपको सिर्फ दो ही चीजें याद आती हैं, एक ऊपर वाला व दूसरा डॉक्टर. यह एहसास मुझे भी हुआ व तब हुआ जब मैं कोरोना की चपेट में आ चुकी थी. ऐसे में किसी मरीज पर क्या बीतती होगी व वह क्या महसूस करता होगा यह सिर्फ व सिर्फ वही बता सकता है. यह बोलना है एसएमएस की एनिस्थीसिया विभाग की रेजीटेंड डाक्टर अदिती का. अदिती अब कोरोना को हराकर होम क्वारेंटाइन में है।

अपील : कोरोना संक्रमितों ने कोई पाप तो किया नहीं है, जो लोग बात करना तक छोड़ देते हैंअपनी सोच बदलिए व मरीजों का संबल बढ़ाइए सीनियर्स के साथ मैं भी कोविडवार्ड में एक सप्ताह तक लगातार ड्यूटी पर थी. पीपीई किट व अन्य तमाम सतर्कता बरत रही थी. दिमाग के एक कोने में कोरोना का भय तो था लेकिन ऐसा नहीं लग रहा था कि मैं भी इस बीमारी की चपेट में आ सकती हूं. इसी दौरान मेस का एक कर्मचारी कोरोना संक्रमित हो गया. इसके बाद हमारी भी जाँच कराई गई. 1 मई को यही कोई रात 12 बज रहे थे. आकस्मित मैने अपनी रिपोर्ट देखीरिपोर्ट पॉजिटिव थी. थोड़ी देर के लिए तो हार्ट बीट बढ़ गई कि अब क्या होगा? थोड़ी हौसला जुटाई व भागते-भागते एसएमएस पहुंच गई एडमिट होने के लिए. खैर, मुझे एटमिट कर लिया गया. पूरी रात भय व तनाव के कारण एक झपकी तक नहीं आई. कोई इर्द-गिर्द घर का भी नहीं थी इसलिए बेचैनी व बढ़ गई. जैसे-तैसे रात कट गई. सुबह-सुबह ही मैंने अजमेर में रह रहे मम्मी-पापा को फोन किया व पूरी घटना के बारे में बताया. मम्मी-पाप जयपुर आना चाहते थे लेकिन ऐसा उनके लिए संभव नहीं था. उन्होंने ढ़ाढ़स बंधाया कितू तो खुद मरीजों की सेवा करती रही है, तुझे कुछ नहीं होगा. और हुआ भी यही मैं 15 मई को बिल्कुल अच्छा हुई व अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया. अब मैं अजमेर में होम क्वारेटाइन में हूं व सख्ती से दिशा निर्देश की पालना कर रही हूं.
मैने महसूस किया है कि कोरोना संक्रमितों को लेकर एक गलत धारणा है. लोग ऐसे व्यवहार करते हैं कि जैसे उसने कोई बहुत बड़ा क्राइम कर दिया हो. यहां तक कि दोस्त, सम्बन्धी बात करने से भी घबराते हैं. ऐसा करना छोड़िए.
थैंक्स मेरे सीनियर्स व साथियों का जिन्होंने संकट की इस घड़ी में मेरा साथ दिया. मेरा ख्याल रखा. मेरे इस बीमारी से जीतने के लिए हमेशा प्रेरित करते थे. साथी कहते थे-कोरोना से मरना नहीं है, उसे ही मारना है. अब मुझे उस दिन का इंतजार है जब मैं दोबारा मरीजों की सेवा के लिए एसएमएस जाना प्रारम्भ करूं.

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