शहरनामा::: सुपौल :::

लॉकडाउन में नहीं दिखा लंबा कुर्ता

बात सोलह आने सच्ची है। कोरोना का भय कहिए या कानून यानी पुलिस वालों की लाठी का भय या फिर सेवा में पॉकेट ढीला होने का जबरदस्त भय, इस लॉकडाउन के दरम्यान लंबा कुर्ता सड़कों पर नहीं दिखाई दे रहा है। पहले भी कई तरह के आफत आए, आपदा के लिए कोसी मशहूर ही है, पर लंबा कुर्ता ऐसे गायब नहीं होता था। इन मौकों पर कभी नहीं चूकने वाले, सरकारी सहायता को भी अपना ही प्रयास बताने वाले लंबा कुर्ता का कहीं नहीं दिखना अब लोगों को खटकने लगा है। बात एक लंबा कुर्ता की नहीं हो रही। कई हैं। ये चौक-चौराहों पर जमावड़ा लगाकर दिल्ली-पटना की राजनीति को पॉकेट में घुमाने वाले लोग हैं। दरबार से भी सीधा प्रसारण फिलहाल बंद ही चल रहा है। इसीलिए किसी ट्रांसफर-पोस्टिग का पता भी लोगों को नहीं चल रहा। आगे विधानसभा चुनाव को देखते यह सब लोगों को खटकने लगा है।
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कैसे बदल गए दरोगाजी
तत्क्षण का न तो कोई मामला हुआ, न ही कोई घटना हुई! टर्म भी तो पूरा नहीं हुआ था। तो..! फिर, बदल कैसे गए दारोगाजी? आश्चर्य लिए हुए सवाल पूरे इलाके में घूम रहा है, पर इसका कोई जवाब मिल नहीं पा रहा। दारोगा जी की छवि साफ-सुथरी मानी जाती थी। परफॉरमेंस ऐसा कुछ नहीं रहा जो देखने-दिखाने वाला हो, लेकिन लेने-देने से कोई खास मतलब नहीं था, इसीलिए लोगों में उनकी एक अच्छी छवि बन गई। वैसे, थानेदारी लेने में भी इन्हें कोई खास मशक्कत नहीं करनी पड़ी थी। पहले वाले की धोपचट में छीनी गई थी कुर्सी, सामने यही पड़े तो ताज मिल गया। वैसे भी ई सब जॉब में तो इस तरह चलता रहता है। जब जिसका जुगाड़ बैठ जाए, कोई बाज थोड़े ही आता है। यहां काम-धाम बहुत मायने नहीं रखता है बस उपर वाले की कृपा बरसनी चाहिए। कृपा रही तो काम बनता रहता है।
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जय-जय..जय-जय
साहब लोग मेहरबान हो जाएं तो गधा भी पहलवान हो जाता हैं। साहब जिसे पहलवान बना दें उसकी तो चांदी ही चांदी। एक नए बनाए गए पहलवान अपना किस्सा बता रहे थे। देखिए न लॉकडाउन में तो सारा व्यापार सब चौपट हो गया। लंबा खिच गया सो सिस्टम खींचने में परेशानी होने लगी। लेकिन, सरकार की व्यवस्था और साहबों की मेहरबानी ने नया जुगाड़ बैठा दिया। जगह-जगह क्वारंटाइन कैंप लगने लगे, प्रवासियों के स्वागत में समारोह सा आयोजन होने लगा। नाश्ता-पानी वगैरह-वगैरह। अब ये तो कहीं से आता ही। यहां साहब की ही मेहरवानी चाहिए थी। इतना ही नहीं प्रखंडों और पंचायतों में भी कृपापात्र ढ़ूंढ़े जाने लगे थे। अब सब सेट है। साहब निश्चित और कृपापात्र खुश। वैसे, सच पूछिए तो अभी फंड-उंड क्लीयर नहीं है, लेकिन साहब की बात है। हमें पूरा भरोसा है। यही मौका तो जीवन में देते हैं ऊपरवाले। तुम्हारी भी जय-जय, हमारी भी जय-जय।
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यश लग गया साहब को
साहब अनुमंडल के बड़े अधिकारी हैं। पिछले दिनों हुआ ऐसा कि एक प्रसूता अनुमंडल अस्पताल पहुंची। उसे प्रसव पीड़ा थी। दूसरे ही दिन वहां के चिकित्सक ने उसे यह कहकर घर जाने को कह दिया कि उसे अभी प्रसव में वक्त लगेगा। उसके स्वजनों ने एंबुलेंस की मांग रखी, लेकिन अस्पताल प्रबंधन के कानों तक जूं नहीं रेंगा। असहाय लोग और लॉकडाउन का चक्कर, कोई सवारी नहीं मिली प्रसूता को उसके स्वजन पैदल ही लेकर रवाना हो गए। कुछ ही दूर चलने के बाद उसकी पीड़ा असह्य हो गई। स्वजन लाचार। किसी सज्जन ने साहब को ही फोन कर दिया। साहब की संवेदना जागी और उन्होंने अपनी गाड़ी ही वहां भेज दी। अखबार वाले ने लपक लिया और साहब की जयकार होने लगी। फिर क्या था काफी यश मिला साहब को। तो, साहब दूसरे ही दिन उसके घर पहुंचे, उसका हाल पूछा और कुछ फल के लिए भी दे आए।
Posted By: Jagran
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