ईद-उल-फितर का इतिहास: जब पैगम्बर हजरत मोहम्मद ने देखा कि यहां हर.

ईद का त्यौहार दुनियाभर में लोग बड़े उत्साह से मनाते हैं। यह त्यौहार रमजान के पवित्र महीने के बाद आता है। रमजान के पवित्र महीने में लोग रोजा रखते है। ईद मुस्लिमों का सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है। इस दिन सारे मुसलमान मस्जिद में जाकर नमाज अदा करते हैं। लोग एक दूसरे के गले मिलकर ईद की शुभकामनाएं देते है। ईद-उल-फितर का पर्व रमजान का चांद डूबने और ईद का चांद नजर आने पर मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसी महीने में ही कुरान-ए-पाक का अवतरण हुआ था।

ईद उल-फितर के बारे में कहा जाता है कि पैगम्बर हजरत मुहम्मद ने बद्र के युद्ध में जब जीत हासिल की थी, इसी जीत की खुशी को लोगों ने ईद का नाम दिया था। पहली बार ईद का त्यौहार 624 ई. में मनाया गया। उसके बाद से यह रवायत बन गई।
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कुरआन के अनुसार पैगंबरे इस्लाम ने कहा है कि जब अहले ईमान रमजान के पवित्र महीने के एहतेरामों से फारिग हो जाते हैं और रोजों-नमाजों तथा उसके तमाम कामों को पूरा कर लेते हैं तो अल्लाह एक दिन अपने उक्त इबादत करने वाले बंदों को बख्शीश व इनाम से नवाजता है। इसलिए इस दिन को 'ईद' कहते हैं और इसी बख्शीश व इनाम के दिन को ईद-उल-फितर का नाम देते हैं।
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ईद रमज़ान के महीने के दौरान हमेशा मार्गदर्शक होने के लिए अल्लाह का धन्यवाद करने के लिए मनाया जाता है। बहुत सारे लोग मस्जिद जाते हैं, प्रार्थना करते हैं और क्षमा मांगते हैं। इस दिन लोग दान -पुण्य भी करते है। यह बहुत पवित्र दिन मन जाता है। ईद त्याग, आत्म-अनुशासन और दान-पुण्य की अहमियत को बताता है । लोगो का मानना है की उपवास, प्रार्थना और दान के साथ, व्यक्ति एक विनम्र व्यक्ति बन जाता है और आत्म-नियंत्रण प्राप्त करता है।
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ईद के बारे में एक और कहानी प्रचलित है जिसके अनुसार अरब में पैगम्बर हजरत मोहम्मद ने देखा यहां हर व्यक्ति एक दुसरे से दूर हो रहा है। पूरा अरब गरीब और अमीर में बट गया है। मोहम्मद साहब ने सभी को एकजुट करने के लिए विचार किया और सभी को एक नियम का पालन करने को कहा, जिसका नाम रोजा रखा।
उन्होंने कहा कि पुरे दिन हम कुछ भी नही खाएगे और पानी की एक बूंद भी ग्रहण नही करेगे। कोई भी पकवान हो हमें उसका त्याग करना है। उनका कहना था इससे सभी में त्याग और बलिदान की भावना जाग्रत होगी। एक दुसरे के दुःख को महसूस किया जा सकेगा और सभी के मन में सदभावना आएगी।

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