15 साल की इस बेटी के हिम्मत और जज्बे को आज हर कोई कर रहा है सलाम

25 May, 2020 02:32 PM | Saroj Kumar 822

अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो..........
आप सभी ने ऊपर लिखी हुई दोहे को किसी किताब में, किसी पत्रिका में या अपने घरवाले - रिश्तेदारों से सुना होगा या फिर टीवी पर इसी नाम से आने वाले टीवी सीरियल में देखा होगा।


अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो - ये दोहा सुनने में जितनी ही सकरात्मत लगती है लेकिन आज भी हमारे समाज में और हमारे घर परिवार में ये दोहा बस एक अपवाद मात्र है, क्योंकि आज के इस इक्कीसवी सदी में भी हम सभी बेटी से ज्यादा बेटो को तरजीह देते है और सब कोई घर में बेटा ही पैदा करना चाहता है। हमारे और हमारे समाज में दिमाग में एक ही बात बैठ गयी है की बेटा ही हमारी सेवा कर सकता है और हमे कमा के खिला सकता है।


लेकिन बेटियां क्या कर सकती है इसका बहुत बड़ा उदाहरण पेश किया है - बिहार के दरभंगा जिले की एक बेटी - नाम है "ज्योति कुमारी", जिसने इस कोरोना काल में लगे लॉकडाउन के दौरान अपने बीमार पिता को एक पुरानी साइकिल पर बैठाकर हरियाणा के गुरुग्राम से बिहार के दरभंगा जिले में अपने गांव सिरहुल्ली (दुरी करीब 1200 किलोमीटर) पहुंची। ज्योति ने यह 1200 किलोमीटर का सफर केवल 7 दिन में तय किया यानि रोज उसने 150 किलोमीटर से ज्यादा की दुरी तय किया।



आज ज्योति ने जो काम किया है, शायद ही कोई बेटा अपने बाप के लिए कर पाए। ज्योति के इस अदम्भ साहस की हर कोई तारीफ कर रहा है, यह तक की आज इस बेटी (ज्योति कुमारी) की तारीफ अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका ट्रंप ने भी की है। आज हार तरफ से मदद के हाथ उठ रहे है, अलग अलग राज्यों की सरकार मदद के लिए आगे आ रहे है, इंडियन साइकिलिंग फेडरेशन ने ज्योति को ट्रेनिंग के लिए दिल्ली बुलाया है।



मगर बात सिर्फ ज्योति की ही नहीं है - आज भी हमारे देश में बहुत से ऐसे ज्योति है जो बहुत ही बहादुर है, अपने परिवार और परिवार के सदस्यों के लिए जान देने के लिए तैयार रहती है, लेकिन हमारा तो समाज ठहरा बुद्धिजीवी और ये बुद्धिजीवी वर्ग हमेशा से ही लड़कियों को कमजोर बताते आये है, हमेशा लड़को को लड़कियों से ऊपर तरजीह दी है।


हमारा कुंठित समाज जहां बेटे की चाहत में बेटियों को जन्म लेने से पहले गर्भ में मार डालते है, बेटी थोड़ी बड़ी क्या हुई कि उसके बदन को पता नहीं कितनी ही नजरें घूरने लगती हैं। छोटी-छोटी बच्चियों से अपनी हवस मिटाकर अपने मर्दानगी का परिचय देनेवाला ये पुरुष प्रधान समाज यहीं नहीं रुकता, चंद पैसे और दहेज़ के लिए बेटियों को जिंदा जलाकर अपनी परंपरा आज भी कायम रखे हुए है। 



आज ऐसे ही कुंठित और छोटी सोच वाले समाज के बिच गरीबी का दर्द झेलती एक बेटी के अदम्भ साहस की कहानी को कोरोना काल ने उजागर किया है, उसने अपने साइकिल पर बैठाकर अपने बीमार जन्मदाता बाप को 1200 किलोमीटर की दुरी तय कर के घर ले आई । उस बेटी ने साबित कर दिया है की एक बेटी अपने पिता का आन-मान- सम्मान होती है। पिता ही उसके पहले हीरो होते हैं। एक बेटी के लिए उसके पिता सिरमौर होते हैं और पिता के लिए भी बेटी उसका आत्मसम्मान होती है। 

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