लॉकडाउन में घर लौटने तक खाली हो गई जेब, अब सता रही आगे की चिता

गोपालगंज : कोरोना महामारी ने मजे से चल रही जिदगी को पटरी से उतार कर रख दिया है। काम धंधा बंद हो जाने से लॉकडाउन के बीच काफी कष्ट झेलते हुए अपने घर लौटे लोगों को इस बात का सुकून तो है कि वे लोग अब अपनों के बीच आ गए हैं। लेकिन घर आने के बाद उन्हें यह बुरा वक्त अपने पराए की पहचान भी करा रहा है। लॉकडाउन में घर लौटने तक जेब खाली हो चुकी है। अब घर लौटे लोगों को आगे की चिता सता रही है। बाहर से लौटे लोगों के सामने बेरोजगारी मुंह बाए खड़ी है। सामने दिख रही इस विकट स्थिति से निकलने के लिए बाहर से घर लौटे लोग आपस में बैठकर काम धंधा शुरू करने के लिए चर्चा कर रहे हैं। इस चर्चाओं से उन्हें कुछ उम्मीद की किरण तो देख रही है। लेकिन क्या करें, जिससे जिदगी फिर से पटरी पर लौट सके यह उन्हें सूझ नहीं रहा है।


सुबह के आठ बजे हैं। कुचायकोट प्रखंड के तिवारी मटिहिनया गांव में बाहर से लौटे कुछ लोग एक पेड़ की छांव में बैठकर अपना सुख-दुख बांटने रहे हैं। लॉकडाउन के बीच घर लौटते समय झेली गई दुश्वारियां इनके चेहरे पर साफ झलक रही है। लेकिन इन लोगों की मुख्य चिता काम धंधा शुरू करने को लेकर है। हालांकि इस गांव में बाहर से लौटे अधिकांश लोग बाहर मेहनत मजदूरी का ही काम करते थे। ऐसे में इन्हें मनरेगा से कुछ उम्मीद भी है। बात चली तो मुंबई से घर लौटे राजू कुमार ने बताया कि वे वहां राजमिस्त्री का काम करते थे। घर आने के बाद से ही खाली बैठे हैं। इन्होंने बताया कि मनरेगा से सरकार काम देने की बात कह रही है। लेकिन यहां तो पहले से ही जाब कार्ड बनवाने वाले लोगों को काम नहीं मिल पा रहा है। वे कहते हैं कि अगर काम मिला होता तो वे घर छोड़ कर बाहर काम करने ही क्यों जाते।
मुंबई से घर लौटे मोहम्मद हबीब तथा पंजाब से घर लौटे उमेश राम के सामने भी यही समस्या सामने खड़ी है। ये दोनों राजमिस्त्री का काम करते थे। हरियाणा से घर लौटे नरेश मुसहर मजदूरी करते थे। घर लौटने के बाद इन्हें मनरेगा से अभी तक काम नहीं मिला है। ये बताते हैं कि बाहर से घर लौटे अधिकांश लोग राजमिस्त्री, मजदूरी तथा छोटा मोटा काम करते हैं। सरकार से उम्मीद तो है कि उन्हें काम मिलेगा। लेकिन इनकी चिता यह देखकर बढ़ जा रही है कि पहले से जॉब कार्ड जितने मजदूरों के पास है, उन्हें भी काम नहीं मिल पाया है। वे कहते हैं कि जेब खाली है, काम मिल नहीं रहा है। अभी तो भाई-पट्टीदार के सहारे पेट भर जा रहा है। लेकिन ऐसे कब तक चल सकेगा। आगे घर का चूल्हा कैसे जलेगा यह समझ में नहीं आ रहा है।
Posted By: Jagran
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