निर्जला एकादशी व्रत की कथा

सनातन धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर २६ हो जाती है। ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहते हैं। इस व्रत मे अन्न के साथ जल भी वर्जित है, इसिलिये इस निर्जला एकादशी कहते है। निर्जला एकादशी को लेकर लोक में दो कथाएं प्रचलित हैं।

पहली कथा
वेदव्यास ने जब पांडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया तो महाबली भीम ने निवेदन करते हुए कहा कि हे पितामह, आपने तो प्रति पक्ष एक दिन के उपवास की बात कही है। मैं तो एक दिन क्या एक समय भी भोजन के बगैर नहीं रह सकता। मेरे पेट में 'वृक' नाम की जो अग्नि है, उसे शांत रखने के लिए मुझे अधिक मात्रा में और कई बार भोजन करना पड़ता है। मैं अपनी भूख के कारण एकादशी जैसे पुण्यव्रत से क्या वंचित रह जाऊँगा?
वेदव्यास ने भीम का मनोबल बढ़ाते हुए कहा कि नहीं कुंतीनंदन, धर्म की यही तो विशेषता है कि वह सबको धारण ही नहीं करता, सबके योग्य साधन व्रत-नियमों की बड़ी सहज और लचीली व्यवस्था भी उपलब्ध करवाता है। अतः आप ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला नाम की एक ही एकादशी का व्रत करो। इससे तुम्हें वर्ष की समस्त एकादशियों का फल प्राप्त होगा। तुम इस लोक में सुख और यश प्राप्त कर मोक्ष लाभ प्राप्त करोगे।
वेदव्यास के समझने पर वृकोदर भीमसेन भी इस निर्जला एकादशी का विधिवत व्रत करने को सहमत हो गए। इसलिए वर्ष भर की एकादशियों का पुण्य लाभ देने वाली इस श्रेष्ठ निर्जला एकादशी को लोक में पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।
दूसरी कथा
एक बार महर्षि व्यास पांडवो के यहां पधारे। भीम ने महर्षि व्यास से कहा कि महर्षि, युधिष्ठर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, माता कुन्ती और द्रौपदी सभी एकादशी का व्रत करते है और मुझसे भी व्रत रख्ने को कहते है। परन्तु मैं बिना भोजन के रह नही सकता। इसलिए चौबीस एकादशियो पर निराहार रहने का कष्ट साधना से बचाकर मुझे कोई ऐसा व्रत बताईये, जिसे करने में मुझे विशेष असुविधा न हो और सबका फल भी मुझे मिल जाये।
महर्षि व्यास जानते थे कि भीम के उदर में बृक नामक अग्नि है, इसलिए अधिक मात्रा में भोजन करने पर भी उनकी भूख शान्त नही होती है। महर्षि ने भीम से कहा तुम ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी का व्रत रखा करो। इस व्रत मे स्नान आचमन में पानी पीने से दोष नही होता है। इस व्रत से अन्य तेईस एकादशियो के पुण्य का लाभ भी मिलेगा। तुम जीवन पर्यन्त इस व्रत का पालन करो। भीम ने बडे साहस के साथ निर्जला एकादशी व्रत किया, जिसके परिणाम स्वरूप प्रातः होते होते वह सज्ञाहीन हो गए, तब पांडवो ने गगाजल, तुलसी चरणामृत प्रसाद, देकर उनकी मुर्छा दुर की। इसलिए इसे भीमसेन एकादशी भी कहते हैं।

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