ऑनलाइन सुनवाई से आरोपित किशोर को मिली बेल

नालंदा। जिला किशोर न्यायालय अपने फैसले के लिए हमेशा सुर्खियों में रहा है। जज मानवेन्द्र मिश्रा ने किशोरों में सुधार के लिए कई प्रेरक फैसले किए हैं। सोमवार को एक ऐसा ही मामला सामने आया। जिसमें प्रधानमंत्री पर अभद्र टिप्पणी कर वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल करने के आरोपी को राष्ट्र गान सुनाने को कहा गया। उसने जन-गण अधिनायक जय हो पूरा सुना दिया तो जज ने उसे बेल दे दी। उन्होंने आरोपी किशोर से कहा कि राष्ट्र गान इसलिए गवाया कि तुम्हारे मन में राष्ट्र प्रेम तथा संविधान के प्रति सम्मान जागृत हो।

इसके पहले भी कोर्ट कई किशोरों को स्कूल में जाकर बच्चों को पढ़ाने, समाज में स्वच्छता, पर्यावरण सुरक्षा और सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ संदेश देने का टास्क दे चुकी है। जिसके सकारात्मक परिणाम मिले हैं।
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क्या था पूरा मामला
कुछ माह पहले पूरे शहर में जगह-जगह एनआरसी व सीएए का विरोध चल रहा था। लेकिन किशोर तथा उसके परिवार को इन बातों से कोई मतलब नहीं था। ऐसे में कुछ असामाजिक तत्वों ने किशोर के मन में सरकार की नीतियों के खिलाफ जहर घोलना आरंभ कर दिया। नतीजतन, किशोर ने पीएम पर अभद्र टिप्पणी कर दी। उसे भड़काने वालों ने ही उसका वीडियो शूट कर लिया और सोशल मीडिया पर वायरल भी कर दिया। इसे लेकर किशोर के खिलाफ शीर्ष संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति के बारे में आपत्तिजनक बातें कहने का आरोप लगाकर मामला दर्ज किया गया था। इसी मामले में आरोपी किशोर की ओर से जुवेनाइल कोर्ट में बेल फाइल की गई थी। सुनवाई करते हुए जज ने किशोर के ऐसे कृत्य के पीछे की कहानी जानी। तो सारा मामला स्पष्ट हो गया। जज ने आरोपी किशोर व उसकी पिता की दलील ऑनलाइन सुनी। इस दौरान जज ने किशोर व उसके पिता से कहा कि सीएए के विरोध में 'कागज नहीं दिखाने' की मुहिम समझ के परे है। कोई जज या कलक्टर भी बन जाए तो उसे जरूरत पड़ने पर अपनी पहचान बतानी पड़ती है। आज किशोर की बेल लेने को जमानतदार को भी अपनी पहचान साबित करनी होगी।
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अपराधी के मनोवैज्ञानिक इलाज की दरकार, दंड की नहीं
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विश्व के कई राष्ट्रों ने यह माना है कि अपराध एक मानसिक विकृति है। जिसके इलाज की जरुरत है, न की दंड की। वहीं अमेरिका, इंग्लैंड जैसे कई राष्ट्रों ने गलती पर भी बच्चों से मारपीट पर पूरी तरह पाबंदी लगा रखी है। हाल ही में दक्षिण कोरिया ने अपने दशकों पुराने कानून में सुधार लाते हुए माता-पिता द्वारा बच्चों की पिटाई को भी गैर-कानूनी ठहरा दिया। ऐसे में बच्चों को दंड देने की अब कहीं कोई गुंजाइश नहीं। बच्चों का मन-मस्तिष्क काफी कोमल होता है। इनका मन कोरे कागज की तरह है। छोटी से छोटी बातें भी इनके जीवन पर गहरा असर डालती है। हालांकि कुछ असमाजिक लोग बच्चों के मन में सरकार तथा कानून के प्रति जहर घोलकर बरगला देते हैं। क्योंकि बच्चों को अपनी गलती तथा उसके परिणाम की समझ नहीं होती। ऐसे में बच्चों को दंड देने की बजाए सरकार ने सुधार के कानून बनाए हैं।
Posted By: Jagran
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