प्रकृति हुई प्रतिकूल, सरकार भी उदासीन, अपनी किस्मत को कोस रहे किसान

पूर्णिया। लॉकडॉउन व बेमौसम बारिश ने मक्का किसानों की मेहनत पर पानी फेर दिया है। खराब मौसम के कारण उनकी मक्का फसल समय पर तैयार नहीं हो पाई और अब बाजार में उसका वाजिब दाम नहीं मिल रहा है। सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा कर दी है लेकन उसकी खरीद नहीं कर रही है। सो खरीफ फसल लगाने के लिए पूंजी के खातिर ओने-पौने दाम में वे मक्के की फसल बेचने को मजबूर है। बावजूद उन्हें कोई खरीददार नही मिल रहा है। ऐसे में उनका लागत मूल्य भी निकलना मुश्किल हो गया है। किसानों ने पिछले साल 2 हजार से 24 सौ रुपये प्रति क्विंटल की दर से मक्का बेचा था। लेकिन इस साल उन्हें एक हजार से 12 सौ रुपये प्रति क्विटल की दर पर मक्का फसल बेचना पड़ रहा है। मालूम हो कसबा प्रखंड इलाके में पड़े पैमाने पर मक्के की खेती होती है। बारिश और आंधी के बाद भी इस बार प्रखंड क्षेत्र में मक्के की फसल अच्छी हुई है। लेकिन लॉकडॉउन में किसानों की उम्मीदों पर और भी अधिक पानी फेर दिया है। सधुवैली, बनैली, गुरही, घोड़दौड, बरेटा, मल्हरिया, सनझेलि, सबदलपुर के किसान गंगा प्रसाद चौहान, महावीर साह, नाथु साह, शंकर साह आदि ने बताया कि आंधी व बारिश के बावजूद पैदावार अच्छी हुई थी। उन्हें उम्मीद थी कि इस बार मक्के की अच्छी कीमत मिलेगी। लेकिन हुआ उसका उल्टा। किसानों ने बताया कि गांव में ही औने-पौने दाम पर मक्का बेचना पड़ रहा है।केंद्र सरकार ने मक्का के लिए 1765 रुपये प्रति क्विंटल न्यूनतम मूल्य निर्धारण किया है लेकिन सरकार किसानों से मक्का की खरीद नही कर रही है। राज्य सरकार के स्तर से भी पैक्स को मक्का खरीदने के लिए अभी तक आदेश नही दिया गया है। जिससे किसानों की परेशानी बढ़ गई है। इधर विभाग ने प्रखंड के पैक्स अध्यक्ष से पीडीएस की दुकान यह कहकर छीन ली है कि जो पैक्स गेहूं की खरीदारी नही करते हैं उसे पीडीएस दुकानों से वंचित रखा जाएगा। सबसे मजे की बात यह है कि कसबा प्रखंड में गेहूं की खेती न के बराबर होती है आखिर पैक्स कहां से गेहूं खरीद करेगा। जब गेंहू की खेती जमीन पर हुई ही नही है। अगर गेहूं के जगह मक्का की खरीद सरकार करें तो किसान तथा पैक्स दोनों के जान बच सकते है। किसानों का कहना था कि अगर पूर्णिया रेलवे जंक्शन, जलालगढ़ व रानीपतरा रेलवे स्टेशन में रैक प्वाइंट खोल दी जाए तो शायद मक्का की दाम में तेजी आ सकती है। बहरहाल किसान अपनी किस्मत को कोसने को विवश हैं।

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Posted By: Jagran
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