मधेपुरा। प्रखंड में रोजगार मिलने की रफ्तार काफी धीमी है। फलाफल लोगों ने बाहर की ओर रूख करना शुरू कर दिया है। पुरैनी पहुंचे 68 सौ प्रवासियों में से मात्र 1050 को ही रोजगार मिल पाया है। यही नहीं अब तक मात्र 485 लोगों को ही जॉब कार्ड बनाए गए हैं। इस स्थिति में लोगों को रोजगार के लिए फिर से पलायन करना मजबूरी बनती जा रही है। लोगों का कहना है कि बाहर नहीं जाएंगे तो परिवार कैसे चलेगा। यहां काम नहीं मिल रहा है। भूखे मरने की नौबत आ रही है। मजबूरी के लिए बाहर जाना ही होगा। खासकर लोग पंजाब की ओर रूख कर रहे हैं। बता दें कि प्रखंड में मनरेगा के अलावा अन्य कोई रोजगार नहीं मिल पा रहा है।
कोरोना संक्रमण की रोकथाम को लेकर हुए लॉकडाउन के बीच बड़े पैमाने पर मजदूर महानगरों से अपने घर लौट आए थे। लॉकडाउन के दौरान हुई परेशानी को देखते हुए मजदूर महानगरों से तौबा करने की बात करने लगे थे, लेकिन अनलॉक एक होते ही मजदूरों का जत्था फिर से महानगरों की ओर चल दिया है। स्थिति यह है कि मजदूरों को लेकर जाने के लिए पंजाब से स्पेशल बस भेजी जा रही है। दो दिनों के अंदर बस व अन्य माध्यमों से तीन दर्जन के आसपास मजदूरों का जत्था पंजाब के लिए निकल चुका है। मजदूरों ने फिर पकड़ी पंजाब की राह कोरोना के खौफ से वापस लौटे मजदूरों का जत्था एक बार फिर से पंजाब की राह पकड़ लिया है। मजदूरों का कहना है कि रोजगार को लेकर फिर से पंजाब की ओर लौटना उनकी मजबूरी बनी हुई है। लॉकडाउन के कारण एक माह पूर्व ही लुधियाना से घर आए मजदूरों के सामने अब परिवार के भरण-पोषण की चिता सताने लगी थी। ऐसे मजदूर वापस काम पर पंजाब की ओर लौटने को मजबूर हुए।
धान की बुआई के लिए पंजाब में मजदूरों की बढ़ी मांग पंजाब में अभी धान की बुआई का काम जोर शोर से चल रहा है। ऐसे में वहां मजदूरों की काफी मांग है। मजदूरों को वापस बुलाने को लेकर पंजाब से स्पेशल बस तक भेजी जा रही है। जानकारी के अनुसार पुरैनी प्रखंड की सपरदह पंचायत के बड़ी व छोटी मुसहरी के लगभग दो दर्जन मजदूरों ने पंजाब के लुधियाना जिले के बसिया पिड में काम पर वापस चल गए हैं। वहां के किसान नाजिर सरदार ने मजदूरों को ले जाने के लिए पंजाब से एक बस को यहां भेजी थी। वैश्विक महामारी के जारी लॉकडाउन के कारण मजदूरों के घर आ जाने से पंजाब में धान की बुआई व मक्का की फसल की कटाई में समस्या हो रही थी। यहां रोजगार की है कमी लुधियाना जाने से पहले मजदूरों ने बताया कि यहां रोजगार की काफी कमी है। रोजगार के अभाव में घर में बैठकर परिवार का भरण-पोषण कर पाना संभव नही है। इस बाबत मजदूरों के ठेकेदार से पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि पेट की आग के आगे कोरोना जैसी महामारी कुछ नहीं है। हम मजदूरों का क्या है रोजगार के बिना भी मरना है और कोरोना से भी मरना है। अच्छा तो यह होगा कि कम से कम बीवी-बच्चे की परवरिश तो होगा।
Posted By: Jagran
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