कोरोना वायरस और चुनाव के बीच बाढ़ लेगी प्रशासन की अग्निपरीक्षा

सहरसा। कोसी में लाल उतरने लगा है। यह कोई नई बात नहीं है, हर वर्ष इस इलाके में बाढ़ आती है और लोग इसे झेलने के लिए विवश है। हर वर्ष हजारों लोग विस्थापित होकर बाढ़ आश्रय स्थल, तटबंध व अन्य ऊंचे स्थान पर शरण लेते हैं। बचाव और सहाय्य कार्य में प्रशासन अपनी पूरी ताकत झोंकता है। जिससे लोगों की पीड़ा थोड़ी कम हो जाती है। इस वर्ष भी प्रशासन तैयारी में है, परंतु स्थिति कुछ बदली हुई है। पहली बार एकतरफा कोरोना संक्रमण से बचाव में प्रशासन मशगूल है और दूसरी तरफ विधानसभा चुनाव की तैयारी प्रारंभ हो गई। इस बीच में बाढ़ का मुकाबला करने के लिए तैयारी तो की गई है, परंतु इससे सही ढंग से निपट पाना प्रशासन के लिए अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। पहले अधिकारियों और कर्मचारियों की पूरी टीम को बाढ़ में झोंका जाता था, परंतु इसबार इसी टीम को तीनों काम में लगाना होगा।

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15 जून से 15 अक्टूबर तक है बाढ़ पर रखनी पड़ती है पैनी निगाह
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आपदा प्रबंधन विभाग ने बाढ़ की अवधि 15 जून से 15 अक्टूबर माना है। इस दरम्यान से नेपाल से निकलने वाली नदियां कोसी नदी के जरिए इलाके में बाढ़ की तबाही मचाती है। सरकार इस अवधि में ही बाढ़ पीड़ितों को हर सुविधाएं उपलब्ध कराती है। इसी अवधि में डूबने और सर्पदंश से मौत पर मुआवजा का प्रावधान है। जरूरत पड़ने पर सामुदायिक कीचेन चलाए जाते हैं। सूखा राहत बांटा जाता है। मानव व पशु की दवा के साथ पशुचारे की व्यवस्था की जाती है। इस पांच महीने की अवधि में जिला से लेकर प्रखंड स्तर तक नियंत्रण कक्ष 24 घंटे कार्यरत रहता है। और हर सूचनाओं पर त्वरित कार्रवाई होती है। कोरोना संक्रमण और चुनाव के तैयारी के साथ इन सभी कार्यों को सुगमतापूर्वक संपादित करने में नि: संदेह ही प्रशासन को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
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चिकित्सा सेवा को लेकर भी हो सकती है कठिनाई
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बाढ़ के समय सभी आश्रय स्थल के अनुसार मानव व पशु के इलाज के लिए अलग- अलग टीम गठित की जाती है। इस वर्ष चिकित्साकर्मियों की टीम मूल रूप से कोरोना संक्रमण की जांच व इलाज में लगी है। बावजूद इसके जिला प्रशासन ने मानव और पशु की दवा की उपलब्धता के साथ- साथ टीम भी गठित कर रखा है, परंतु विषम परिस्थिति में बाढ़ पीड़ितों को बेहतर चिकित्सा सेवा देने में प्रशासन को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
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शारीरिक दूरी का पालन कराना भी होगा कठिन
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जिले का चार प्रखंड बुरी तरह बाढ़ प्रभावित रहता है। तटबंध के अंदर बसे महिषी, नवहट्टा, सलखुआ और सिमरीबख्तियारपुर प्रखंड का 31 पंचायत बाढ़ प्रभावित है। जहां के लोग प्राय: 15 जून के बाद पलायन करने लगते हैं। इस वर्ष प्रवासियों के लौटने के कारण गांवों में लोगों की भीड़ बढ़ गई है। बाढ़ आश्रय स्थलों पर आमतौर पर लोगों की काफी भीड़ हो जाती है। इस वर्ष बाहर से आए लोगों के कारण भीड़ और बढ़ने की संभावना है। पहले भीड़ से कोई परेशानी नहीं थी, इस वर्ष इन जगहों पर शारीरिक दूरी का पालन कराना संभव नहीं हो पाएगा। सभी जगहों के लिए मेडिकल टीम भी बनाई गई है, परंतु इस वर्ष पूर्व के वर्षों की भांति सर्दी, खांसी, बुखार और डायरिया का आंख मूंदकर इलाज करना संभव नहीं है। इसके लिए स्वास्थ्यकर्मियों को भी फूंक-फूंककर कदम रखना होगा। सही तरीके से इलाज नहीं हो पाने के कारण कहीं जान-माल की अधिक क्षति न इसपर भी विशेष ध्यान देना होगा।
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कोरोना संक्रमण को लेकर व्यस्तता के बावजूद बाढ़ बचाव और सहाय्य कार्य के लिए हर स्तर पर तैयारी की गई है। तैयारी की नियमित समीक्षा भी की जा रही है। अन्य वर्षों की तरह बाढ़ बचाव च सहाय्य कार्य के लिए समितियों का गठन कर लिया गया है। बाढ़ आपदा आने पर भी लोगों को कम- से- कम परेशानी हो, जिला प्रशासन उसके लिए पूरी तैयारी में है।
कौशल कुमार, जिलाधिकारी सहरसा।
Posted By: Jagran
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