धार्मिक, सांस्कृतिक व ऐतिहासिकता का प्रमाण है मूर्तियां

नवादा : जिले के विभिन्न हिस्सों में इन दिनों पोखर-तालाबों की खोदाई के दौरान देवी देवताओं की प्रतिमाएं मिल रही है। जो जिले के पौराणिकता व धार्मिक महत्व को प्रमाणित करता है। प्राय: मूर्तियां भगवाव विष्णु व शिव पार्वती की मिल रही है। इसके अलावा भगवान श्रीराम की भी एक प्रतिमा अबतक मिली है। जिले के वारिसलीगंज प्रखंड के अपसढ़, चैनपुरा, जमुआवां, हिसुआ प्रखंड के भदसेनी से भगवान विष्णु की प्रतिमा मिली है। जबकि नवादा सदर प्रखंड के समाय गांव के तालाब से कुल चार मूर्तियां निकली है, जिसमें भगवान विष्णु के अलावा शंकर-पार्वती की मूर्तियां है। नरहट प्रखंड के बदलपुर गांव के तालाब से भगवान श्रीराम की मूर्ती मिली है।

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आम जनमानस के लिए कौतूहल
- इन दिनों जिले में 100 से ज्यादा आहर, पोखर, तालाब आदि जलश्रोतों की खोदाई जल-जीवन-हरियाली योजना के तहत की जा रही है। इस दौरान जहां कहीं मूर्तियां मिल रही है, ग्रामीणों के लिए कौतूहल का विषय बन जा रहा है। प्राय: मूर्तियों को लोग मंदिरों में स्थापित कर श्रद्धपूर्वक पूजा-अर्चना कर रहे हैं। कोरोना संक्रमण शुरू होने के बाद से ही जिले के अलग-अलग पांच स्थानों से दर्जन भर मूर्तियां मिल चुकी है। ऐसे में लोग कई तरह की चर्चाएं करते हैं।
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मगध साम्राज्य का हिस्सा रहा है नवादा
नवादा जिला मगध साम्राज्य का हिस्सा रहा है। 1973 में गया जिला से अलग होकर नवादा जिला के रूप में अस्तित्व में आया। इसके बाद जिले के कुछ हिस्से में विरासत संरक्षण के तहत दुर्लभ मूर्तियों का संरक्षण का प्रयास हुआ था। पहले जिलाधिकारी नरेंद्र पाल सिंह द्वारा यत्र-तत्र विखरी पड़ी प्रतिमाओं का संरक्षण किया गया था। तब नवादा शहर में नारद: संग्रहालय का निर्माण कराया गया था। जहां कई दुर्लभ मूर्तियां आज भी विद्यमान है।
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पुरातत्वविद की राय में मूर्तियों का महत्व
- म्यूजियम एसोसिएशन ऑफ इंडिया के सचिव डॉ. आनंद व‌र्द्धन जो कि नवादा जिले के रहने वाले हैं, बताते हैं कि गया का इलाका भगवान विष्णु व सूर्य की उपासना का केंद्र रहा है। इस इलाके में छोटे-छोटे जमींदार हुआ करते थे। जिनके इलाके में कई प्राचीण गांव है। पठारी क्षेत्र होने के कारण जमींदार अपने इलाके की समृद्धि और धार्मिक ²ष्टिकोण से तालाब-पोखर की खोदाई कराते थे। तालाब के आसपास पंच देव जिसमें भगवान विष्णु व शिव भी हैं, की मूर्तियां स्थापित करते थे। भगवान विष्णु वैसे भी जल के स्वामी हैं। वे जलाधिवास करते हैं। सूर्य को अर्घ देने की परंपरा भी इस इलाके में रही है। ऐसे में तालाबों से मूर्तियां मिलनी स्वभाविक है। नवादा जिले का अपसढ़ गांव व आसपास का इलाका अम्ब खंड क्षेत्र माना जाता है। गुप्त काल व पाल कालीन अवशेष भी यहां मिलते हैं। उस दौर में कला महाविद्यालय भी यहां हुआ करता था। भगवा विष्णु का बराह अवतार की दुर्लभ मूर्ति भी इसी अपसढ़ गांव में स्थित है। इस इलाके पर अपेक्षित काम नहीं हुआ।
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जानकारों की राय
- वरिष्ठ पत्रकार व साहित्यकार राम रतन प्रसाद सिंह रत्नाकर कहते हैं कि नवादा जिले के वारिसलीगंज क्षेत्र में अब तक नौ स्थानों से भगवान विष्णु की विभिन्न रूपों की मूर्तियां मिली है। वे कहते हैं कि जैन प्रशासकीय सूत्र में लिखा है कि गिरीबज्र के पूरब दिशा में बैष्णव लोगों का निवास रहा है। वहां के लोग भगवान विष्णु पूजा अर्चना करते थे।
रत्नाकर के अनुसार तालाब पोखरों से मिली मूर्तियो में अधिकांश कोई चोर आदि द्वारा छिपाया हुआ होता है या फिर मूर्ति खंडित हो जाने के बाद बैष्णव लोग विधान पूर्वक नदी तालाब आदि में विसर्जित करते थे। जबकि अन्य स्थानों पर खुदाई के दौरान प्राप्त मूर्ति के आस पास कुछ पुरातात्विक साक्ष्य मिलता है। जैसे मकनपुर में चौड़ी इंट की दीवार साथ में पुराने मिट्टी के बर्तन आदि मिले थे। चैनपुरा से मिली मूर्ति के पास भी शिला पट्ट और मिट्टी के प्राचीन बर्तन में राख आदि मिला था।
समाय गांव के बुद्धिजीवि डॉ. विनय कुमार कहते हैं कि उनके गांव पौराणिक गांव है। शेर शाह सूरी के काल में यह गांव परगना हुआ करता था। तालाब से मूर्तियां मिल रही है, आसपास के टीले की खोदाई की भी जरूरत है। काफी कुछ इतिहास से पर्दा हट सकता है। उनकी पहल पर आर्टिलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की एक टीम गांव पहुंच जांच का काम शुरू कर दी है।
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मूर्तियों के मिलने का लंबा रहा है इतिहास
- वारिसलीगंज इलाके में खोदाई के दौरान मूर्तियां मिलने का लंबा इतिहास रहा है। वारिसलीगंज रेलवे स्टेशन निर्माण के समय में मिली मूर्ति आज भी स्टेशन परिसर में बनी मंदिर में स्थापित है। जबकि मकनपुर में बारह रूप की गुप्त कालीन मूर्ति मिली है, जिसकी पूजा 6 वी 7 वीं शताब्दी में होती थी। रेलवे स्टेशन वारिसलीगंज के अलावा मकनपुर (1980), ठेरा, शाहपुर(एक पीपल बृक्ष के नीचे), दोसुत, साम्बे, अपसढ़, महरथ व पार्वती (काशीचक) आदि गांवों से मूर्तियां मिलती रही है।
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कोरोना काल में मिली मूर्तियां -30 अप्रैल 20 को वारिसलीगंज प्रखंड के चैनपुरा में खेत से मिली भगवान विष्णु की आदमकद मूर्ति हाथों में शंख चक्र गदा पदम् लिए 3 फीट ऊंची बिष्णु की मूर्ति मिली थी। मूर्ति के दाएं बांएं भू देवी तथा श्री देवी की मूर्तियां बनी है। जबकि बिष्णु की मूर्ति से इर्द गिर्द छोटी बड़ी करीब 16 मूर्तियां बनी हुई है। -28 मई को 20 को वारिसलीगंज प्रखंड के अपसढ़ तालाब की खोदाई में भगवान विष्णु की खंडित प्रतिमा मिली। 360 बीघा में फैला पौराणिक धरोहर में सम्मिलित सरोदह तालाब की खुदाई के समय भगवान विष्णु की एक खंडित मूर्ति प्राप्त हुई। - 4 मई को वारिसलीगंज प्रखंड के जमुआवां गांव के पोखरा तालाब की खुदाई के दौरान निकली भगवान विष्णु मूर्ति मिली। प्रतिमा 4 फीट उंची काले पत्थर की थी। मूर्ति काला चमकीला पत्थर की बनी है। - 7 जून को हिसुआ प्रखंड के भदसेनी गांव में गवान विष्णु सहित दो-तीन देवी देवता की खंडित काले रंग पत्थर की वेशकीमती मूर्तियां मिली। यहां मंदिर के अवशेष भी मिले हैं। - 9 जून को नरहट प्रखंड के बदलपुर गांव में भगवान श्रीराम की मूर्ती मिली।
Posted By: Jagran
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