कोराना काल में बूचड़खाना बंद कर खोल दी हरी सब्जी की दुकान

बेतिया। हालात चाहे कितना भी बुरा क्यों न हो, सूझबूझ और दृढ़ इच्छाशक्ति से समाधान निकाला जा सकता है। विपदा कितनी भी बड़ी क्यों न हो, पारिवारिक एकजुटता और साहस की बदौलत उससे उबरने की शक्ति मिलती है। कुछ इसी तरह की सोच के साथ पश्चिम चंपारण जिले के मैनाटांड़ प्रखंड के रमपुरवा गांव निवासी शहाबुद्दीन मियां ने कोरोना काल में नया व्यवसाय खड़ा कर दिखाया है। शहाबुद्दीन बूचड़खाना के व्यवसाय से जुड़े थे। कोरोना काल में लॉकडाउन की वजह से बूचड़खाना बंद हो गया। दस लोगों के परिवार के समक्ष भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गई। ऐसे में उसने सूझबूझ और ²ढ़ इच्छाशक्ति से सब्जी बेचने का व्यवसाय आरंभ कर दिया। स्वजनों ने इस व्यवसाय में साथ दिया। पिछले ढाई महीने में शहाबुद्दीन का नया व्यवसाय निकल पड़ा है। अच्छे से परिवार का भरण-पोषण भी हो रहा है। अनलॉक वन में सरकार की ओर से बूचड़खाना खोलने की अनुमति मिल गई, फिर भी शहाबुद्दीन अपना बूचड़खाना चालू नहीं किए हैं। उनका कहना हैं कि अब सब्जी बेचने का कारोबार हीं करेंगे।

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बूचड़खाना से अच्छा सब्जी का कारोबार
शहाबुद्दीन का कहना हैं कि बूचड़खाना से अच्छा सब्जी का कारोबार है। बूचड़खाना चलाने में वह इज्जत भी नहीं था। दिनभर गांव-गांव में घूमकर बकरी-बकरा खरीदना पड़ता था। फिर शाम को बकरे को हलाल करने का गुनाह और इतने कठिन परिश्रम करने के बाद भी प्रतिदिन पांच सौ रुपये से अधिक की कमाई नहीं होती थी। जबकि सब्जी के व्यापार में मुश्किल से चार- पांच घंटे हीं काम करना पड़ता है। अपना पूंजी भी नहीं लगता है। थोक व्यापारी दुकान पर सब्जी भेज देता है। शाम चार बजे के बाद दुकान खुलती है। सात-आठ बजे तक सब्जी बेचकर व्यापारी की पूंजी वापस कर देते और मजदूरी के तौर पर प्रतिदिन एक हजार रुपये कमा लेते हैं।
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कोट
विपदा के वक्त शहाबुद्दीन ने साहस का परिचय दिया। एक व्यवसाय बंद हुआ तो दूसरा व्यवसाय खड़ा आजीविका चला रहे हैं। अन्य लोगों को भी इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए।
संजय कुमार गुप्ता,
मुखिया, टोला चपरिया मैनाटांड़।
Posted By: Jagran
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