फादर्स डे::::::बच्चों में संस्कार की नींव डालते हैं पिता

जागरण संवाददाता, सुपौल: हमारी संस्कृति माता-पिता को एक विशेष दर्जा देती है। इसलिए कहा भी जाता है कि मातृ देवो भव:- पितृ देवो भव:। यानी माता पिता देव तुल्य होते हैं। बच्चों के लालन-पालन से लेकर उनमें अनुशासन और संस्कार निर्माण में भी माता और पिता की भूमिका होती है। कितु बच्चों के भविष्य निर्माण को ले मार्गदर्शक और पथ प्रदर्शक के रूप में पिता की भूमिका बढ़ जाती है। हर पिता की चाह होती है कि उनकी संतान आगे बढ़ें, अच्छा करें, सफलता के सोपान चढ़ें, सुखी जीवन व्यतीत करें और कुल का नाम रोशन करें। अपनी चाह को पूरी करने के लिए हर पिता अपने साम‌र्थ्य से बढ़कर बच्चों के लिए करते हैं। कुछ बच्चे अपने पिता की अभिलाषा पर खरे उतरते हैं तो कुछ बच्चे इसमें पिछड़ से जाते हैं। कितु पिता का प्यार पिछड़ जाने वाले बच्चों के प्रति भी कम नहीं दिखता। उनके लिए तो सभी संताने बराबर हैं।

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जहां तक पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी की बात है तो पिता तो आखिर पिता ही हैं। पुरानी पीढ़ी में बच्चे पिता का सम्मान करते थे तो उनसे डरते भी थे। पिता से आंख मिलाकर बातें करना पुरानी पीढ़ी का रिवाज नहीं था। कितु नई पीढ़ी में बच्चे थोड़े अधिक जागरूक और जिज्ञासु हुए हैं। नतीजा है कि वे पिता से किसी तरह की बात करने में हिचकिचाते नहीं। इसका उन बच्चों को फायदा भी मिलता है। नई पीढ़ी और युवा पीढ़ी आज अपने भविष्य को लेकर संजीदा है और पिता के अरमानों को पूरा करने की दिशा में भी आमदा दिख रही है ऐसे में उन संतानों के पिता का गर्व से सीना तो चौड़ा हो ही जाएगा। पिता के मार्गदर्शन व उनकी प्रेरणा को आत्मसात कर कई संतानें आज बुलंदी की शिखर पर हैं। ऐसे ही कुछ सफल व्यक्तियों की बात करते हैं।
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जिले के राघोपुर प्रखंड अंतर्गत गणपतगंज निवासी जयनारायण मल्लिक जो अब इस दुनिया में नहीं है कितु उन्होंने अपनी संतानों को जो मार्गदर्शन दिया और पथ प्रदर्शन किया उसका फलाफल आज उनकी संतानों पर दिख रहा है। उनकी सभी संतानें आज उच्च पद पर आसीन हैं और अपने पिता के अरमानों को पूरा कर रहे हैं। जयनारायण मल्लिक वैष्णव धर्म के उपासक थे और उनकी संतानों ने उनकी इस भावना का आदर करते हुए अपने पारिवारिक ट्रस्ट से गणपतगंज में वरदराज पेरूमल विष्णु मंदिर का निर्माण करवाया है जो आज इस इलाके के लिए आकर्षण का केंद्र बना है। उनकी संतानों का कहना है कि पिता ने उन लोगों के लिए बहुत कुछ किया अब उन लोगों का भी दायित्व है कि अपने पिता के कीर्ति और यश को युग युगांतर तक जीवित रखें।
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फादर्स डे पर एक ऐसे पिता की बात कर रहे हैं, जिन्होंने मध्यम वर्गीय होते हुए अपने बेटे की पढ़ाई में कोई कोताही नहीं बरती और आज उनका बेटा आइएएस बन कर देश की सेवा कर रहा है। जिले के सिमराही बाजार के साइकिल व्यवसायी गोपाल सेन बेटा सुब्रत सेन मध्यम वर्गीय परिवार के अभावों से जूझते हुए सफलता को चूमा और आज आइएएस के रूप में देश सेवा कर रहा है। गोपाल सेन का यह प्रयास और त्याग आज समाज के लिए अनुकरणीय है।
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सुपौल निवासी डॉ. शांति भूषण के पिता खुद प्रोफेसर थे और वे चाहते थे कि उनका बेटा आगे चलकर डॉक्टर बनकर समाज की सेवा करे। शांति भूषण ने अपने पिता के भावनाओं की कद्र की। लगन और मेहनत के बल पर उन्होंने डॉक्टर की डिग्री ली और आज वे एक सफल डॉक्टर के रूप में न केवल अपने पिता के अरमानों को पूरा कर रहे हैं, बल्कि समाज की सेवा भी पूरी ईमानदारी से कर रहे हैं। डॉ. शांति भूषण कहते हैं कि पिता के अरमानों को पूरा करना हर संतान का ध्येय होना चाहिए। ताकि पिता को भी लगे कि उनकी संतान ने उनके सपनों को साकार किया है।
Posted By: Jagran
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