शहरनामा ::: लखीसराय :::

टिक-टॉक, टकाटक, ठक ठका ठक ठक

आखिरकार टिक-टॉक प्यार दारोगा जी पर भारी पड़ गया। बड़े साहब ने पिछला 'शहरनामा' पढ़कर दारोगा जी के इस चाइनिज प्यार को जाना। हालांकि, यह जानने के बाद कि बड़े साहब तक बात पहुंच गई है, दारोगा जी ने तत्काल टिक-टॉक को बाय-बाय कर दिया। वे डर गए कि कहीं बड़े साहब 'ठक ठका ठक ठक' न कर दें। कोराना काल में ऐसा हुआ तो 'टकाटक' माल आना भी बंद हो जाएगा। लेकिन, उनका यह चाइनिज एप बहिष्कार काम नहीं आया। उन्हें कुर्सी गंवानी पड़ी। दरअसल, दारोगा जी का टिक-टॉक प्यार वायरल हो रहा था। वे पुलिस की ड्यूटी कितनी ईमानदारी से कर रहे हैं, इसपर सवाल उठ रहा था। बड़े साहब ने जब दारोगा जी की कुंडली खंगाली तो टिक-टॉक और टकाटक सब सामने आ गया। इसके बाद बड़े साहब एक्शन में आ गए और दारोगा जी को फिलहाल टिक-टॉक बनाने के लिए उनके दायित्वों से मुक्त कर दिया।
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माननीय की बिगड़ती ग्रहदशा
अपने माननीय की ग्रहदशा इन दिनों कुछ अच्छी नहीं चल रही है। चुनावी शंखनाद होने वाला है और उनका दल व गठबंधन दोनों उनकी जमीन दलदली किए जा रहे हैं। बीते हफ्ते एक सरकारी समारोह में उनकी पकड़ की पोल खुल गई। जिस प्रशासन को वे आदेश देने का पावर रखते हैं, उसी ने कौड़ी भर भाव नहीं दिया। हालांकि, उन्होंने समारोह में जाने के लिए बाल-दाढ़ी बनाने वाले को बुलाया था। उसे नहला-धुलाकर फुल सैनिटाइज कराया और फिर चकाचक हुए। वे समारोह में चेहरा चमकाते, लेकिन गठबंधन वाले साथी ने चालाकी से खबर भेजा कि सरकार के साथ बैठना है। फर्राटे भरते हुए चले गए। पर, वहां सरकार से इतनी दूरी पर बैठाए गए कि दर्शन तक नहीं हुआ। यहां गठबंधन के साथी का चेहरा चमक रहा था। न इधर के रहे न उधर के। समारोह में उनके दल के अध्यक्ष को भी दूसरे के रहमोकरम पर कुर्सी मिली।
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वाह रे नेतागिरी
नेताजी जिले के अच्छे ओहदे पर हैं। इससे पहले भी इस ओहदे को संभाल चुके हैं। उनकी राजनीतिक यात्रा बहुत पुरानी नहीं है, लेकिन जितनी भी है वह मजबूत ही मानी जा सकती है। एक खास बड़े नेता के खास माने जाते हैं। इस कारण खास दल से ही जुड़े हैं। महत्वाकांक्षा भी बहुत हैं। मगर बड़े नेताजी से उन्हें अलग कर दिया जाए तो फिर उनकी अपनी विरासत बाढ़ के कटाव जैसी है। बाढ़ आती है तो बहुत कुछ ले-देकर चली जाती है। मतलब बड़े नेताजी की रोशनी से अपनी चमक बनाए रखने वाले ये नेताजी कुछ खास इलाके को छोड़कर जनप्रिय नहीं बन पाए हैं। उधारी और झूठ बोलने का रिकॉर्ड इनके नाम है। एक बार निकाय क्षेत्र के बाहर जाकर भाग्य आजमा चुके, लेकिन जनता ने सिरे से खारिज कर दिया। इस बार पंजा मार नहीं सकते, तीर चलाने हैं। ऐसे में बुकिग सिस्टम में लगे हैं।
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मैडम का जीना मुश्किल
एक करैला आपे तीती दूजे नीम चढ़ी। मैडम पर इन दिनों यह कहावत लागू हो रहा है। पहले वाले कनिष्ठ साहब ने उनके नाक में दम कर रखा था। रोज-रोज जिले के बड़े साहब के दफ्तर में पंचायत लगती थी। डांट-फटकार और स्पष्टीकरण के बाद भी वे अपने अंदाज में ही काम करती रहीं। इस बीच पड़ोसी जिले से एक और कनिष्ठ पदाधिकारी का पदस्थापन हो गया। मैडम को लगा नए वाले की पोस्टिग के बहाने पुराने वाले को सबक सिखाया जा सकता है। इसी मंशा को लेकर विभाग बदलकर नए साहब को पुराने साहब की कुर्सी दे दी। मैडम पूरे इत्मीनान में थी कि अब सबकुछ उनके मनोनुकूल हो रहा है। इस बीच कोरोनो को लेकर लॉकडाउन हो गया। वर्तमान छोटे साहब ने पुराने के सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले। मैडम को इसकी भनक तब लगी जब शिक्षक नेताओं ने कारनामे की पोल खोली। अब मैडम इन्हें नीम बता रहीं।
Posted By: Jagran
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