जागरण विशेष::: नेपाल में होती बारिश कोसी में डरते लोग

आपदा--

बाटम--मासूम का आगाज हुआ और कोसी इलाके में लोगों की चिंता बढ़ गई है
--बाढ़ और विस्थापन का झेलना पड़ता है दंश
भरत कुमार झा,सुपौल: मानसून का आगाज हुआ और कोसी के इलाके में लोगों के माथे पर चिता की लकीरें दिखने लगी। उन्हें चिता सताने लगी है कि एक बार फिर से उन्हें बाढ़ और विस्थापन का दंश झेलना पड़ेगा। जब-जब नेपाल के तराई इलाके में बारिश होती है कोसी के लोग सिहर उठते हैं। उन्हें आभास होने लगता है कि अब आफत उनके करीब आने वाली है। कोसी नदी का जलस्तर बढ़ जाता है और तटबंध के अंदर बसे गांवों में तबाही मच जाती है। घर-घर बाढ़ का पानी घुस जाता है, लहलहाती फसलें डूब जाती है और भागम-भाग की स्थिति बन आती है। अमूमन 15 अगस्त के बाद कोसी के इलाके के लोग बाढ़ के खतरे की समय-सीमा समाप्त होने के बाद चैन की नींद लेते हैं। इधर मानसून के आगाज के साथ ही नेपाल में बारिश शुरू हो चली है और कोसी का जलस्तर बढ़ने लगा है। कोसी नदी हिमालय से निकल कर नेपाल भूभाग होते हुए भारत में प्रवेश करती है। इध लगातार हो रही बारिश ने कोसी के जलस्तर में उछाल ला दिया है। नतीजा है कि तटबंध के अंदर बसे गांवों के लोग चितित हो चले हैं। मरौना प्रखंड क्षेत्र के खोखनाहा, अमीन टोला, लक्ष्मीनिया,जोबहा, जोबहा छीट, मना टोला,पिपरपाति, सिसौनी छीट आदि गांव में बाढ़ का पानी प्रवेश कर गया। लोग सुरक्षित स्थान की ओर माल-मवेशी के साथ पलायन करने को मजबूर हो गए। इधर दो दिनों से कोसी के इलाके में हो रही बारिश से लोग परेशान हैं। खासकर सरायगढ़ प्रखंड के ढ़ोली, सियानी, कटैया-भुलिया, भुलिया, झखराही, बनैनियां पलार, बलथरबा पलार, औरही पलार, लौकहा पलार, बाजदारी, चकला आदि गांव बाढ़ प्रभावित गांव हैं और इन गांवों में हर साल कहर बरपता है। फिलहाल तटबंध के बीच बसे लोग खौफजदा हैं।

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उपजाऊ माटी का मोह नहीं छोड़ पाते तटबंध के भीतर बसे लोग
कोसी के पूर्वी व पश्चिमी तटबंध के बीच लाखों की आबादी बसती है। तटबंध के भीतर की जमीन उपजाऊ होने के कारण तटबंध के भीतर बसे लोग जमीन का लोभ नहीं त्याग कर पाते और यहां खेती कर अपना जीवन-यापन करते हैं। किन्तु बरसात के दिनों में इनकी फजीहत होती है। बाढ़ के कहर के बाद इन्हें मजबूर होकर पलायन को विवश होना पड़ता है। तटबंध के बाहर ये लोग स्पर या ऊंचे स्थानों पर आकर कुछ दिनों के लिए शरण लेते हैं और बाढ़ का पानी उतरते ही फिर अपने घर लौट जाते हैं। हर वर्ष यही कहानी दोहराई जाती है और ऐसे ही कटती है तटबंध के बीच बसे लोगों की जिदगी।
Posted By: Jagran
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