संवाद सूत्र, दिघलबैंक (किशनगंज) : प्रखंड छेत्र में किसानों के द्वारा लगाए गए मक्का कभी पीला सोना कहलाता था। लेकिन इस बार मक्का की बिक्री नहीं हाने से दुर्दशा देख किसान हताश हैं। ऐसे में किसान करें तो क्या करें।
एक तो कड़ी मेहनत व महाजन से कर्ज लेकर खेती की। किसानों को उम्मीद थी कि इस साल फसल अच्छी हुई तो बेहतर कीमत भी मिलेगी। परंतु ऐसा नहीं हुआ, किसानों के सपने चूर चूर हो रहे हैं। अब मजबूरी में किसान अपनी जरूरत के मुताबिक ओने पौने दाम में मक्का बेचकर जीविका चला रहे हैं। अब धान की रोपनी भी करनी है, इसलिए नहीं चाहते हुए भी मक्का बेचना पड़ रहा है। बिन मौसम बरसात के कारण किसान दोहरी मार झेल रहे हैं। जिस कारण किसानों की हालत सुधरने के बजाय दिन व दिन बिगड़ती जा रही है।
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किसान पंचानंद सिंह, राजेश सिंह, रामप्रसाद सिंह, भूपेन कुमार, विनोद कुमार सहित अन्य ने बताया कि मौसम भी मक्का किसानों का साथ नहीं दे रही है। हालत यह है कि बाजार बंद होने से मक्का एक हजार से 11 सौ रुपये प्रति क्विटल बेचने की मजबूरी है। लागत व रात दिन के मेहनत के हिसाब से यह काफी कम है। एक तरफ सरकार किसानों की आमदनी दोगुनी करने की बात करती है। दूसरी तरफ जब किसानों का फसल तैयार हो जाता है तो बेचने का कोई समुचित व्यवस्था नहीं किया जा रहा। ऐसे में किसान क्या करें। लॉकडाउन के बीच सरकार को हम किसानों की चिता करते हुए कोई उचित व्यवस्था करनी चाहिए कि ताकि मक्का फसल का उचित मूल्य मिल सकें और किसानों की तंगी कम हो सके।
Posted By: Jagran
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