आशियाने की आस में गुजर गए साल, जिदगी अब भी बेहाल

मधुबनी। बीते वर्ष जुलाई की 14 तारीख थी। संध्या से ही नरूआर, ओझौल, गोपलखा के वाशिदों ने जलस्तर बढ़ने से बाढ़ का खतरा भांप लिया था। जल्दी-जल्दी खाना बनाया जा रहा था। ताकि, बच्चों को खिलाकर उचित स्थान पर जाए। जो डर था वही हुआ। बांध टूट गया। आशियाना जमींदोज हो गया। सभी ने बांध पर शरण ली। छह माह तक बांध पर रहे। अब कुछ माह से आशियाना ठीक करने में लगे थे कि कमला बलान में फिर जलस्तर बढ़ने की सूचना हुई। अब ये बाढ़ पीड़ित पुन: बांध पर जगह सुनिश्चित कर रहे हैं। अपनी-अपनी जगह के लिए बांस बल्ला टांग दिया है। ताकि, जरूरत पड़ने पर पन्नी टांगकर शरण लिया जा सके।

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अब देखते हैं नरूआर के बाढ़ विस्थापितों का दर्द। उनकी कहानी थोड़ी अलग है। करीब 60 परिवार एक साल से नरूआर बाढ़ नियंत्रण प्रमंडल संख्या झंझारपुर के आइबी भवन प्रांगण में शरण लिए हुए हैं। बांस की कमची से बना है इनका घर। ऊपर पन्नी वगैरह टांगकर जिदगी घसीट रहे हैं। इनमें से 51 परिवार को प्रशासन ने बसने के लिए बासगीत भूमि का पर्चा दिया है। जमीन कहां है, इन्हें नहीं मालूम। अब ये जाएं तो कहां जाएं। मूल आवास वाली जगह पर जहां से ये विस्थापित हुए थे, आज भी गहरी खाई है। हालांकि जल संसाधन विभाग ने इसे भरने को कहा है। भराई थोड़ी बहुत हुई भी। मगर, पूरी तौर पर नहीं हो सकी है। यहां पानी निकालने में किसी स्तर पर विरोध हुआ था। कार्यकारी एजेंसी ने मिट्टी भराई रोक दी है। सीएम ने हालिया दौरे में प्रशासन को मिट्टी भराई के लिए आदेश दिया है। बाढ़ के समय शुरुआत में प्रशासन ने खाने पीने का इंतजाम किया था। होली-दिवाली-छठ पर भी यहां प्रशासन के लोग पहुंचे थे। पर्व मनाने की सामग्री दी थी। बाढ़ पीड़ित को प्रशासन के इस कदम से संतोष भी हुआ था। मगर, आज भी अपने आशियाना में बच्चों की किलकारी गूंजते देखने के लिए ये लालायित हैं। एक तो बाढ़ का पुन: खतरा। दूसरा लगातार बारिश ने सबों की नाक में दम कर रखा है। प्रशासन बाढ़ विस्थापितों को इस जगह से निकालकर किसी ऊंची और सुरक्षित जगह पर ले जाए। ताकि, रात में इन्हें बच्चों के साथ चैन की नींद आ सके।
Posted By: Jagran
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