कोरोना को लेकर पहली बार लंगोट अर्पण मेले पर रोक

बिहारशरीफ: धर्म, संस्कृति तथा तमाम परंपराओं से बढ़कर मानव जीवन की सुरक्षा है। कोरोना के कारण आज मानव जीवन खतरे में पड़ा है। इससे बचने का एकमात्र उपाय स्वयं को भीड़ से अलग रखना। यही कारण रहा कि हजारों सालों से चली आ रही धार्मिक परंपराओं पर भी रोक लगा दी गई। हरिद्वार, वैद्यनाथ धाम में होने वाले जलाभिषेक को बंद कर दिया गया। ताकि जीवन सुरक्षित रह सके। वहीं इस संदर्भ में बिहार राज्य धार्मिक न्यास पर्षद ने मेले से संबंधित एडवाइजरी भी जारी किया है। साथ ही सावन पूजा अथवा जलाभिषेक घर पर ही करने की अपील की गई।

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औपचारिक रूप से चढ़ाए जाएंगे बाबा की समाधि पर लंगोट
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कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए 5 जुलाई से लगने वाले लंगोट अर्पण मेले पर भी रोक लगा दी गई। शुक्रवार बिहार राज्य धार्मिक न्यास समिति के निर्देश पर बाबा मणिराम मंदिर न्यास समिति की बैठक की गई। जिसमें मंदिर के पदेन अध्यक्ष एसडीओ जर्नादन अग्रवाल तथा सचिव अमरकांत मौजूद थे। बैठक में गहरे मंथन तथा चर्चा के बाद नए तौर-तरीके के साथ लंगोट अर्पण करने पर सहमति बनी। जिसमें प्रशासन औपचारिक रूप से लंगोट का चढ़ावा करेगी। लंगोट अर्पण का काम मंदिर के पुजारी तथा समिति के सदस्यों द्वारा संपन्न कराया जाएगा। इस दौरान लोग मॉस्क तथा गमछे लगाकर रहेंगे। वहीं श्रद्धालुओं के लिए इस बार मंदिर का कपाट बंद रहेगा। उन्हें घर पर ही जलाभिषेक तथा बाबा मणिराम की पूजा-अर्चना की सलाह दी गई। बैठक में एसडीओ जर्नादन अग्रवाल, बाबा मणिराम मंदिर न्यास समिति के सचिव अमरकांत, सीओ, बिहार थानाध्यक्ष दीपक कुमार, प्रकाश कुमार यादव, सतीश कुमार, मिश्री लाल, डॉ. प्रदीप कुंमार सहित कई लोग मौजूद थे।
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पूरी दुनिया की पहली समाधि जहां चढ़ाए जाते हैं लंगोट
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बाबा मणिराम की सामधि पूरी दुनिया की ऐसी पहली समाधि है, जहां लंगोट अर्पण की परंपरा है। बाबा मणिराम एक आध्यात्मिक संत थे। जिन्होंने स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन निवास करने की शिक्षा दी। मान्यता यह है कि बाबा के दरबार से कोई भी भक्त निराश नहीं जाता। वे ऐसे संत थे जिनमें ईश्वरीय गुण मौजूद थे। सन् 1248 ई में वे बिहारशरीफ के पिसत्ता घाट पहुंचे थे। लेकिन धीरे-धीरे उनकी दिव्य शक्ति का अहसास लोगों को होने लगा। हर दुख में वे अपने भक्तों के साथ होते। बड़े से बड़े रोग उनके स्पर्श मात्र से ठीक होने लगे। बाबा मणिराम ने लोगों को स्वस्थ रहने के लिए कुश्ती का सहारा लेने के लिए भी प्रेरित किया। उनका अखाड़ा आज भी विद्यमान है। कहा जाता है कि सन् 1300 में संत शिरोमणि बाबा मणिराम ने समाधि ले ली थी। बाद में उनके अनुयायियों ने भी समाधि ग्रहण किया।
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60 वर्ष पहले लंगोट चढ़ाने की शुरू हुई परंपरा
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आज से करीब 60 वर्ष पूर्व आबकारी विभाग के एक अधिकारी ने संतान की सारी उम्मीदें छोड़ दी थी। लेकिन उन्हें बाबा के आशीर्वाद से पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। खुश होकर उन्होंने बाबा की समाधि पर लंगोट चढ़ाया तब से ही लंगोट चढ़ाने की पंरपरा आरंभ हो गई। इनकी समाधि पर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सहित देश-दुनिया के कई शीर्ष हस्तियों ने माथा टेक कर आशीष लिया।
Posted By: Jagran
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