अदालत के आदेश पर अपने ही थाने के बड़ा बाबू पर किया मामला दर्ज

- कोर्ट के आदेश को दरकिनार कर डीएसपी स्तर के पुलिस के बदले बौसी के पुअनि करेंगे अनुसंधान।

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संसू, अररिया : अररिया। भले ही बौसी थानाध्यक्ष ने अररिया की अदालत के जारी आदेश की पहले अनदेखी की, लेकिन लंबे अंतराल के बाद बौसी थानाध्यक्ष को अपने ही थाना के बड़ा बाबू सहित कई अज्ञात लोगों के खिलाफ केस दर्ज करने का निर्णय लेना पड़ा। हालांकि दर्ज केस को बौसी थाना से अररिया सिविल कोर्ट आने में एक सप्ताह लग गये। इस पंजीकृत प्राथमिकी को वहां की पुलिस शनिवार को अररिया के सीजेएम की अदालत में दाखिल कर दिया। जिसे अदालत ने एसीजेएम वन की अदालत में हस्तांतरित कर दिया है।
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जानकारी के अनुसार बौसी थानाध्यक्ष मो साबिर आलम ने अपने ही थाने में वहां के बड़ा बाबू सहित अन्य अज्ञात को आरोपित करते प्राथमिकी पंजीकृत किया है। उक्त दर्ज प्राथमिकी दर्ज की तिथि दिनांक 26 जून का उल्लेख है, जिसका प्राथमिकी कांड संख्या-80/20 तथा भादवि की धारा-341, 323 एवं 34 का उल्लेख है। साथ ही इस मामले का अनुसंधानकर्ता बौसी थाना के पुअनि शंकर पोद्दार को बनाया गया है।
अदालत पहुंचने में इतने दिन क्यूं लग गये:
डीएलएसए के पैनल अधिवक्ता वीणा झा कहती हैं कि बौसी पुलिस ने अपने पुलिस फाइल में इस मामले की घटना तिथि 26 जून का उल्लेख करते उसी दिन प्राथमिकी दर्ज करने का उल्लेख किया है। उन्होंने कहा कि भले ही बौसी पुलिस अदालत की गंभीरता को
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देखते प्राथमिकी कहने को हल्के धाराओं में दर्ज कर ली। लेकिन आश्चर्य की बात तो यही है कि बौसी थानाध्यक्ष को उक्त प्राथमिकी को अदालत के संज्ञान में लाने को लेकर एक करीब सप्ताह आखिर क्यों लग गया। आखिर बौसी पुलिस की क्या मंशा है कि पुलिस फाइल को तय समय सीमा को नजरंदाज कर बारंबार अदालती आदेश की अनदेखी कर रही है कि इतने दिनों बाद वहां की पुलिस संवेदनशील हुई। जो एक गंभीर प्रश्न है। जबकि इस मामले को अदालती आदेश प्राप्ति के 24 घंटे के अंदर मामला पंजीकृत करना था।
क्या है मामला:
बौसी थाना पुलिस द्वारा स्थानीय एक नाबालिग दिव्यांग लड़की को पुलिस हिरासत में बेरहमी से पिटाई की गई। इस मामले में पीड़िता ने धारा-164 के बयान में बौसी पुलिस के अमानवीय व्यवहार का खुलासा की थी। अदालत ने डीएलएसए के पैनल अधिवक्ताओं के रिपोर्ट, मेडिकल रिपोर्ट सहित लंबित मामले की संचिका का अवलोकन किया तथा इस मामले को अतिसंवेदनशील पाया। तत्पश्चात अदालत ने बौसी पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा किया और इस अमानवीय कृत्य से जुड़े बौसी थाने में पदस्थापित बड़ा बाबू अथवा वहां के संबंधित पुलिस के विरुद्ध चौबीस घंटे के अंदर प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश देते स्थानीय थानाध्यक्ष को दिया है। साथ ही अररिया पुलिस अधीक्षक को इस मामले का अनुसंधान डीएसपी स्तर के पुलिस पदाधिकारी से कराने का आदेश पारित करते उक्त आदेश की प्रति बिहार के डीजीपी को भी भेजने की बात कही थी। बावजूद जब वहां की पुलिस ने अदालती आदेश के बावजूद प्राथमिकी दर्ज नहीं की बौसी थानाध्यक्ष को कारण बताओ नोटिस जारी करते जबाव दाखिल का आदेश दिया। लेकिन वहां की पुलिस ने निर्धारित समयावधि में उक्त दोनों आदेश का पालन नहीं किया।य
Posted By: Jagran
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