भौतिक संसाधनों से मिलता क्षणिक सुख : स्वामी जी

जहानाबाद : जीवात्मा अनादि काल से मोह वश अनेक पाप युक्त कर्म करते आया है। जिसका संस्कार जीवात्मा में चिपका रहता है। मानव सुखी बनने के लिए अनेक भौतिकवाद का सहारा ले रहा है। भौतिक साधनों से कभी मानव सुखी नहीं बन सकता। जो कुछ सुख मिलता भी है, तो वह क्षणिक है। उक्त बातें श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर के स्वामी रंगरामानुचार्य ने कही।

उन्होंने कहा कि इंद्रिय और विषय के संयोग से होने वाला सुख अल्प और नश्वर होता है। व्रतों के पालन करने से प्राचीन काल की वासना नष्ट हो जाती है। अर्थात जिन पापों के कारण मानव जगत में दुखी रहता है, उन कारणों को नष्ट करने के लिए व्रतों का अनुष्ठान सुनिश्चित करना चाहिए । एकादशी व्रत सर्वोत्तम है। इसलिए एकादशी व्रत करना चाहिए। आषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी को भगवान विष्णु शयन करते हैं इसलिए उस एकादशी को विष्णु शयनी एकादशी कहा जाता है। और कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी को भगवान निद्रा को त्याग कर सकते हैं इसलिए इसे देवोत्थान एकादशी कहते हैं। इस एकादशी का नाम कामदा था।
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Posted By: Jagran
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