कोरोना को लेकर निजी विद्यालय के कर्मचारियों का हाल-बेहाल

महुआ । कोरोना वायरस को लेकर सरकार के स्तर पर जारी लॉकडाउन मे ग्रामीण क्षेत्र के निजी विद्यालयों में कार्यरत शिक्षक एवं कर्मचारियों की आर्थिक स्थिति चरमराने लगी है। कई विद्यालय कर्मी तो ऐसे हैं जो दूसरे जगह से आकर यहां पर कार्य कर अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं। वहीं विद्यालय के संचालकों की भी आर्थिक स्थिति चरमराने लगी है।

हालात पर विचार करने को लेकर सोमवार को महुआ के हसनपुर ओस्ती स्थित आर्यन सेंट्रल स्कूल के परिसर में कई निजी विद्यालयों के निदेशकों की बैठक हुई। बैठक को संबोधित करते हुए निदेशक दीपक कुमार ने कहा कि लगभग पांच महीने से लॉक डाउन के कारण विद्यालयों के तमाम शिक्षक एवं कर्मियों के समक्ष भुखमरी की समस्या उत्पन्न हो गई है, साथ ही विद्यालय बंद होने का संकट खड़ा हो गया है। विद्यालय एकाएक बंद होने से हजारों शिक्षक, शिक्षकेतर कर्मचारी, चालक तथा सफाई कर्मी भी काम से वंचित हो गये हैं। निदेशक कुमार ने कहा कि एक ओर प्रधानमंत्री ने कहा है कि कोई भी कंपनी या संस्थान अपने कर्मियों को नौकरी से नहीं निकाले। ऐसे में शिक्षकों एवं कर्मचारियों की चिता भी सरकार को करनी चाहिए। ऐसे लॉक डाउन की ऐसी स्थिति में सरकार निजी विद्यालय की क्षतिपूर्ति का वहन करे। जिससे विद्यालयों में कार्यरत शिक्षक, शिक्षकेतर कर्मचारियों, सफाई कर्मियों, चालकों का कम से कम वेतन दिया जा सके।
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वहीं प्राचार्य रितेश कुमार वर्मा ने कहा कि मार्च महीने में ही कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए लॉक डाउन लगा दिया गया था। जिससे अचानक विद्यालय बंद हो गए। ऐसी स्थिति में परीक्षा भी समाप्त नहीं हो पाई। इसी दौरान बच्चों की फीस भी जमा होती, परंतु बच्चों की फीस भी जमा नहीं हो पायी। ऐसी स्थिति में विद्यालय के संचालकों के समक्ष आर्थिक संकट की स्थिति खड़ी हो गई है। निदेशक विद्यापति कर्ण ने कहा कि गुजरात सरकार ने प्राइवेट स्कूलों को तीन माह के फीस को आगे के छह महीनों में एडजस्ट कर लेने को कहा है। वहीं हरियाणा सरकार ने भी फीस लेने की इजाजत दे दी है। निदेशक सुधीर कुमार सिंह ने कहा की बिहार सरकार को भी इसी तरह का विचार करना चाहिए, ताकि निजी विद्यालय शिक्षा की गुणवत्ता को बरकरार रह सके और कम मानदेय में बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दिया जा सके। वहीं  निदेशक पवन कुमार ने कहा है कि निजी स्कूलों को मिलने वाले शिक्षण शुल्क का 85 फीसद खर्च शिक्षकों व शिक्षकेतर कर्मियों के वेतन एवं वाहन खर्च आदि में खर्च हो जाता है। बचे हुए पैसे से किसी तरह अपना भरण-पोषण होता है। लगभग  पांच महीनों से लगातार बंद के कारण आर्थिक संकट उत्पन्न हो गई है। ऐसी स्थिति में यदि सरकार निजी विद्यालयों की आर्थिक मदद नहीं करती है तो विकट स्थिति उत्पन्न हो जायेगी।
Posted By: Jagran
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