शरीर में उपजे दोष को करें दूर : स्वामी जी

जहानाबाद : शरीर एक क्षेत्र है। क्षेत्र का अर्थ है खेत। खेत में जैसी अच्छी बुरी चीजें उपजती, हैं वैसे हैं इस शरीर में दोष, गुण उत्पन्न होते रहते हैं। काम, क्रोध ,लोभ,मोह, राग, द्वेष आदि दोष आत्मा में रहते हैं। परंतु ये शरीर के संबंध से ही होते हैं, अत: ये शरीर के ही विकार माने गए हैं। उक्त बातें लक्ष्मी नारायण मंदिर में श्री स्वामी जी महाराज का सोशल मीडिया के माध्यम से प्रवचन में कही

उन्होंने कहा कि शरीर रूप खेत का स्वामी जीवात्मा है। जैसे किसान अपने खेत को और उसके गुण दोषों को जानता है, वैसे ही शरीर रूप खेत को जीवात्मा जानता है। शरीर में होने वाले दोष गुणों की जानकारी जीवात्मा को रहती है। उक्त बातें
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खेत में कांटे कुछ अनावश्यक घास आदि बिना प्रयास के स्वाभाविक रूप से उत्पन्न हो जाते हैं। वैसे ही जन्मांतरीय भोग वासना वश शरीर में राग ,द्वेष आदि दोष उत्पन्न हो जाते हैं। जैसे किसान को अपने खेत में अच्छी चीजों की उपज करने के लिए स्वभाविक रूप से उत्पन्न कांटे ,काश,घास आदि को हटाना पड़ता है, वैसे ही जीवात्मा भी ईश्वर भजन आदि उत्तम कर्म करने के लिए पूर्व वासना वश उत्पन्न शरीर गत राग द्वेष आदि को निकाल देता है ।राग ,द्वेष आदि दोषों को हटाने के लिए अमानित्व अदम्भित्वादि बीस प्रकार के ज्ञान रूप गुण बताए गए हैं।
उन्होंने कहा कि भगवान श्री कृष्ण ने विश्व एवं राष्ट्र हित के ²ष्टिकोण से अर्जुन को निमित्त बनाकर गीता का उपदेश किया है। जैसे शीशा में बाह्य रूप देखा जाता है, वैसे ही गीता में अपने अंदर की जीवात्मा परमात्मा का स्वरूप देखा जाता है। मैं दुखी क्यों हूं ,मेरा दुख दूर कैसे होगा, ऐसे महत्वपूर्ण विषयों का वर्णन गीता में किया गया है।
Posted By: Jagran
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