Kargil Vijay Divas: सुनील की शहादत को भूल गई सरकार, बिसर गए श्रद्धांजलि देना

मुजफ्फरपुर (मड़वन) राजेश रंजन। पूरा देश आज कारगिल विजय की 21 वीं वर्षगांठ पर विजय दिवस मना रहा है। आज के ही दिन देश के सैकड़ों सपूतों ने देश की बलिवेदी पर अपने जान न्योछावर कर कारगिल में दुश्मनों के दांत खट्टे करते हुए उनपर विजय पाई थी। मगर, इन शहीदों की शहादत पर किए गए वादों को सरकारों ने भूला दिया। कारगिल युद्ध के दौरान 23 जुलाई 1999 को मड़वन प्रखंड की महम्मदपुर खाजे पंचायत के फंदा निवासी गणेश प्रसाद सिंह के पुत्र सुनील कुमार सिंह ने दुश्मनों से लोहा लेते हुए कारगिल में देश की बलिवेदी पर अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे तत्कालीन केंद्र व राज्य सरकारों ने ढेर सारे वादे किए।

केंद्र सरकार ने तो अपने वायदे पूरे किए, मगर राज्य सरकार का वादा सफेद हाथी साबित हुआ। कारगिल शहीद सुनील कुमार सिंह की शहादत पर तत्कालीन राबड़ी देवी की सरकार का पूरा कुनबा उनके गांव फंदा आया था। इस दौरान वादों की झड़ी लगा दी गई, मगर 21 साल बाद भी कुछ को छोड़कर कई वादे वादे ही रहे। शहीद सुनील के गांव सहित आसपास के गरीबों का पक्का मकान बनाने की घोषणा पूरी न हो सकी। करजा एनएच 722 से बलिया तक एनएच 28 को जोडऩे वाली सड़क का नाम शहीद सुनील पथ करते हुए इसका पक्कीकरण तो कराया गया, लेकिन यह सड़क आज नाले व गड्ढे में तब्दील हो गई है। सड़क की स्थिति इतनी खराब है की पैदल व दोपहिया वाहन तो छोड़ दें, चारपहिया वाहन भी इस सड़क से गुजरने से परहेज करते हैं।
फंदा में अवस्थित शहीद स्मारक तो शहीद के पिता ने निजी खर्च से बना दिया, मगर अबतक इस मैदान की चाहरदीवारी नहीं हो पाई। इस कारण स्मारक का मैदान चारों तरफ से अतिक्रमण का शिकार हो रहा है। आज उनकी शहादत दिवस पर स्वजनों को छोड़ किसी को भी दो पुष्प अर्पित करने की भी याद न रही। बताते चलें कि 1969 में जन्मे सुनील कुमार सिंह 1988 में सेना में भर्ती होने के बाद पैराशूट रेजीमेंट में शामिल हुए। इनके पराक्रम को देखते हुए 1989 में श्री लंका युद्ध के दौरान जाफना भेजा गया। वही 1994- 95 में ऑपरेशन विजय में भी शामिल हुए थे।
शहीद के पिता गणेश प्रसाद सिंह कहते हैं कि सरकारी घोषणा केवल मौखिक ही होती है जो कभी पूरी नहीं होती। वे कहते हैं कि सड़क की स्थिति तो देख ही रहे हैं।पांच एकड़ जमीन देने ,मध्य विद्यालय फंदा को हाई स्कूल का दर्जा देकर शहीद के नाम पर करने आदि घोषणाएं हवा-हवाई साबित हुईं। भगवान और जवान काम पर ही याद आते हैं। इधर, बीडीओ अरशद रजा खान ने बताया कि मुझे इसकी कोई जानकारी नहीं है। स्थानीय मुखिया को श्रद्धांजलि देनी चाहिए।

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