चीन को चोट पहुँचाने के लिए है भारत का नया व्यापार नियम?

भारत सरकार ने अपने व्यापार नियमों में गुरुवार को एक अहम बदलाव किया है.

नए नियमों के मुताबिक़ सरकारी ख़रीद में भारत में बोली लगाने वाली कंपनियाँ तभी इसके लिए सक्षम हो पाएँगी, जब वो डिपार्टमेंट फ़ॉर प्रमोशन ऑफ़ इंडस्ट्री एंड इंटर्नल ट्रेड (डीपीआईआईटी) की रजिस्ट्रेशन कमेटी में रजिस्टर्ड हों.
इसके अलावा इन्हें भारत सरकार के विदेश मंत्रालय और गृह मंत्रालय से राजनीतिक और सुरक्षा मंज़ूरी लेना आवश्यक होगा. केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिए हैं कि वो भी अपनी सभी सरकारी ख़रीद में इस नियम को लागू करें. इस नियम के तहत वित्त मंत्रालय ने कुछ छूट भी दी है.
कोविड-19 महामारी के कारण कोविड से जुड़े सामान की ख़रीद को लेकर 31 दिसंबर तक छूट दी गई है. ये बदलाव भारत सरकार ने जनरल फ़ाइनेंशियल नियम, 2017 में किए गए हैं.
ये उन देशों पर लागू होगा, जो देश भारत के साथ सीमा साझा करते हैं और सरकारी ख़रीद में हिस्सा लेते हैं. जानकारों की माने तो इस बदलाव में चीन की बात कहीं नहीं कही गई है, लेकिन इस फ़ैसले का सबसे ज़्यादा असर भारत के पड़ोसी देश चीन के साथ व्यापार पर पड़ेगा.
भारत अपने तमाम पड़ोसी देशों में सबसे ज़्यादा व्यापार चीन के साथ ही करता है.
चीन पर असर
आँकड़ों की बात करें, तो 2019-20 में भारत ने चीन से 65.26 बिलियन डॉलर का आयात किया है. जबकि चीन, भारत से सिर्फ़ 16.6 बिलियन डॉलर का आयात करता है. इसमें सरकारी ख़रीद कितना है, इसके अलग से आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं. ये आँकड़ें भारत के विदेश व्यापार महानिदेशालय ने जारी किए हैं.
इन आँकड़ों से इतना स्पष्ट है कि दोनों देशों के बीच 48.66 बिलियन डॉलर का व्यापार घाटा रहा. यानी हम चीन से ज़्यादा सामान आयात करते हैं और उसके मुक़ाबले में चीन हमसे बहुत ही कम चीज़ें ख़रीदता है. पिछले चार पाँच सालों में ये आँकड़े कमोबेश इसी के आसपास ही रहे हैं.
तो क्या भारत के इस क़दम से चीन की अर्थव्यवस्था की कमर टूट जाएगी? ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन में वाइस प्रेसिडेंट गौतम चिकरमाने की मानें, तो ये क़दम भारत ने अपनी सुरक्षा के लिहाज से उठाया है. इसका असर चीन की अर्थव्यवस्था पर ज़्यादा नहीं पड़ेगा, क्योंकि चीन के लिए व्यापारिक रणनीति के नज़रिए से अमरीका और यूरोपीय यूनियन अधिक महत्वपूर्ण हैं.
गौतम चिकरमाने भारत और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक नीतियों के जानकार माने जाते हैं.
भारत सरकार ने भी अपने आदेश में इस क़दम को रक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से किया गया फ़ैसला ही बताया है. पिछले कुछ दिनों में दुनिया के दूसरे देशों ने भी चीन की कंपनी पर डेटा चुराने और जासूसी जैसे कई गंभीर आरोप लगाए हैं, जिसको हमेशा से चीन ने ख़ारिज़ किया है. 59 ऐप्स को बैन करने के पीछे भी केंद्र सरकार ने यही तर्क दिया था.
गौतम की मानें, तो भारत इससे संदेश दे रहा है कि चीन भारत की सुरक्षा के लिए बड़ा ख़तरा है. ऐसा देश, जो भारत के साथ अपनी दुश्मनी साफ़ ज़ाहिर कर रहा है, पाकिस्तान को सपोर्ट करता है. जिसके साथ सीमा पर तनाव हो, उस देश के लिए भारत दरवाज़े खोल कर उसका स्वागत नहीं कर सकता.
इसी संदर्भ में इस नए व्यापार नियमों के बदलाव को देखने की ज़रूरत है.
तो फिर भारत को हासिल क्या होगा? इस सवाल के जवाब में गौतम कहते हैं कि ये एक रणनीति का हिस्सा है जिसे 'डी-कपलिंग' कहते हैं. पूरी दुनिया में आज चीन के साथ 'डी-कपलिंग' करने की मुहिम सी छिड़ गई है.
अमरीका, ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया भी अब इसमें शामिल हैं. भारत भी उसी का हिस्सा है. लेकिन ये मान लेना कि सिर्फ़ भारत के रोकने से चीन को कोई बड़ा फर्क़ पड़ेगा, ऐसा बिल्कुल ग़लत है. लेकिन भारत के ऐसे क़दम से दुनिया के दूसरे देशों पर एक मोरल प्रेशर बनता है, और वो भी इस दिशा में क़दम उठा सकते हैं.
गौतम अपने इस बयान के लिए तर्क भी देते हैं. हाल ही में भारत ने चीनी ऐप्स पर बैन किया. अब अमरीका में भी टिक-टॉक बैन करने की बात की. भारत की तरफ़ से 5जी और दूसरे सरकारी प्रोजेक्ट से चीनी कंपनियों को बाहर का रास्ता दिखाने की एक क़वायद शुरू हुई, तो ब्रिटेन और अमरीका ने भी ख्वावे को बैन करने की बात की.
एक तीर कई शिकार
जेएनयू में प्रोफ़ेसर स्वर्ण सिंह गौतम की बात को ही दूसरे तरीक़े से सामने रखते हैं. बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा कि ये चीन को सख़्त संदेश देने के लिहाज से उठाया गया क़दम है.
इससे केंद्र सरकार भारत की जनता को संदेश देना चाहती है कि वो स्वदेशी चीज़ों को आगे बढ़ना चाहते हैं. वो कहते हैं कि पिछले दिनों गलवान घाटी में भारत-चीन सीमा पर दोनों देशों के बीच जो तनाव देखने को मिला, उसके बाद भारत ने एक-एक बाद एक कई ऐसे क़दम उठाए.
भारत में भी चीनी सामान के बहिष्कार की एक मुहिम चली. इस नीतिगत बदलाव से सरकार ये बताना चाहती है कि वो जनता की भावनाओं के साथ है और इसको अमल में भी ला रही है.
इसके अलावा भारत विश्व के बाक़ी देशों को एक संदेश भी भेज रहा है कि अमरीका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया जो चीन के साथ कर रहे हैं, भारत भी उसमें उनके साथ है. ये हमारी नई विदेश नीति का हिस्सा है.
वो आगे कहते हैं, "इस क़दम से तीसरा संदेश जाता है चीन को कि भारत की जनता की नाराज़गी किस तरह से सरकार को ऐसे क़दम उठाने के लिए मजबूर कर रही है."
स्वर्ण सिंह भी मानते हैं कि इससे चीन को बहुत आर्थिक नुक़सान नहीं होगा. ये फ़ैसला चीन को आर्थिक रूप से थोड़ा कमज़ोर ज़रूर कर सकता है.
वो व्यापार नियमों में इस बदलाव को प्रतिबंध नहीं मानते. उनकी नज़र में ये ख़रीद प्रक्रिया को और जटिल बनाने की तरफ़ एक क़दम है. इसमें चीनी कंपनियों को सरकारी ख़रीद में बोली लगाने के लिए अब और ज़्यादा दस्तावेज़ जमा करवाने पड़ेंगे.
ग़ौर करने वाली बात ये भी है कि केंद्र सरकार ने सीमा से जुड़े देशों के बारे में ये बदलाव किए हैं. प्रोफेसर स्वर्ण सिंह कहते हैं कि भारत का दक्षिण एशिया में सीमा से जुड़े देशों के व्यापार बहुत कम है.
पाकिस्तान, चीन और बांग्लादेश से ही ऐसे व्यापारिक संबंध हैं, जिनमें से पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ व्यापार चीन के मुक़ाबले बहुत कम है. इसलिए इस नए नियम को चीन से ही जोड़ कर देखा जा रहा है.
भारत पर असर
हाल ही में केंद्र सरकार ने देश में होने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफ़डीआई के नियमों को उन पड़ोसियों के लिए और सख़्त कर दिया, जिनकी सीमाएँ आपस में मिलती हैं.
एफ़डीआई के नए नियम के तहत किसी भी भारतीय कंपनी में हिस्सा लेने से पहले सरकारी अनुमति लेना अब अनिवार्य कर दिया गया है.
उस समय भी दलील सामने आई कि इस फ़ैसले की प्रमुख वजहों में से एक थी चीन के सेंट्रल बैंक 'पीपुल्स बैंक ऑफ़ चाइना' का भारत के सबसे बड़े निजी बैंक 'एचडीएफ़सी' के 1.75 करोड़ शेयरों की ख़रीद. इससे पहले तक चीन भारतीय कंपनियों में 'बेधड़क' निवेश करता रहा है.
ताज़ा व्यापार नियमों में बदलाव का असर भारत पर क्या पड़ेगा, ये जानने से पहले ये देखना होगा कि भारत चीन से किन चीज़ों का आयात करता है.
इस सूची में सबसे ऊपर है - इलेक्ट्रिक मशीन, साउंड सिस्टम, टेलीविज़न और उसके पार्ट, न्यूक्लियर रिएक्टर, बॉयलर, मेकैनिकल एप्लायंस और उसके पार्ट, प्लास्टिक, लोहा और स्टील से बने सामान. इसके अलावा दवाइयाँ, बैंकिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर के सेक्टर में भी दोनों देशों के संबंध हैं.
फॉरेन ट्रेड एक्सपर्ट विजय कुमार गाबा की मानें, तो ये फ़ैसला केवल सरकारी ख़रीद पर लागू होता है. इस बारे में आँकड़े स्पष्ट नहीं हैं कि कुल व्यापार में कितना हिस्सा सरकारी ख़रीद का है.
उन्होंने बताया कि कई बार सरकारी ख़रीद में जो भारतीय कॉन्ट्रैक्टर बोली लगाते हैं, वो आगे अपना काम चीन की कंपनियों को ठेके पर दे देते हैं, जिसे सब-कॉन्ट्रैक्ट कहा जाता है. इतना ही नहीं कई बार देसी कंपनियाँ काम कर रही होती हैं लेकिन वो अपना कच्चा माल चीन से मंगाती हैं. इसलिए भारत पर असर के आँकड़े निकाल पाना थोड़ा मुश्किल है.
लेकिन नए नियम सब-कॉन्ट्रैक्ट वाले काम पर भी लागू होंगे, ये केंद्र सरकार की तरफ़ से कहा गया है.
विजय कहते हैं कि सरकारी कामकाज में चीन के सीसीटीवी से लेकर रेलवे परियोजना, हाइवे, न्यूक्लियर प्लांट, टेक्सटाइल, दवाइयाँ जैसे कई सामान का इस्तेमाल होता है.
भारत चीन सीमा तनाव के बीच भारतीय रेल ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि चीन को दिया 471 करोड़ रुपए का एक बड़ा कॉन्ट्रेक्ट रद्द कर दिया गया है.
ये कॉन्ट्रैक्ट जून 2016 में बीजिंग नेशनल रेलवे रिसर्च एंड डिज़ाइन इंस्टिट्यूट ऑफ़ सिग्नल एंड कम्यूनिकेशन ग्रुप को दिया गया था. इसके तहत 417 किलोमीटर लंबे कानपुर-दीन दयाल उपाध्याय (डीडीयू) सेक्शन में सिग्नलिंग और टेलिकम्यूनिकेशन का काम किया जाना था.
इसी तरह से केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भी कहा कि हाई-वे बनाने के काम में चीनी कंपनियों को हिस्सा नहीं लेने देंगे.
विजय कुमार कहते हैं कि सरकारी फ़ैसले का असर सरकार की बिजली कंपनियाँ जैसे एनटीपीसी, रोड, हाई-वे प्रोजेक्ट, मेट्रो कोच, टेलीकॉम और एग्रीक्लचर सेक्टर पर पड़ सकता है. सस्ती दवाइयों के लिए कच्चा माल भी चीन से ही आता है.
वो कहते हैं कि कुछ चीज़ों के दाम आने वाले दिनों में बढ़ सकते हैं और कुछ चीज़ों के लिए सप्लाई-चेन बदलनी पड़ सकती है. इस सब में थोड़ी कठिनाई होगी.
जाहिर है भारत की जनता को उसके लिए भी तैयार रहने की आवश्यकता होगी. ,
source: bbc.com/hindi

अन्य समाचार