कौन हैं केएल गुप्ता, जो विकास दुबे 'एनकाउंटर' की जाँच करेंगे

बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने कानपुर में बिकरू कांड की जाँच के लिए रिटायर्ड जज बीएस चौहान के नेतृत्व में तीन सदस्यीय जाँच आयोग के गठन को स्वीकृति दी.

इस जाँच आयोग में यूपी सरकार की ओर से नियुक्त किए गए जस्टिस शशिकांत अग्रवाल के अलावा यूपी के रिटायर्ड डीजीपी केएल गुप्ता भी बतौर सदस्य शामिल किए गए हैं. यूपी सरकार ने पहले इस जाँच को एक सदस्यीय आयोग से कराने का फ़ैसला किया था, जिसके अध्यक्ष शशिकांत जायसवाल थे.
इससे पहले सोमवार को सर्वोच्च अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता वाली समिति से जाँच कराने के निर्देश दिए थे. उत्तर प्रदेश सरकार जाँच समिति में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश के अलावा एक पूर्व पुलिस महानिदेशक को शामिल करने पर भी सहमत हो गई थी.
जस्टिस बीएस चौहान और रिटायर्ड डीजीपी केएल गुप्ता की सिफ़ारिश राज्य सरकार ने ही की थी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी सहमति दे दी.
हालांकि सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता घनश्याम उपाध्याय ने जाँच आयोग में उनकी ओर से सुझाए गए कुछ सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को शामिल किए जाने की माँग की, जिसे कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया और कहा कि उन्हें जस्टिस चौहान पर सवाल नहीं उठाने चाहिए.
यह आयोग बिकरू गाँव में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या और उसके बाद विकास दुबे और उनके सहयोगियों की कथित एनकाउंटर में हुई मौत के अलावा इनसे जुड़े तमाम अन्य पहलुओं की भी जाँच करेगा.
विकास दुबे मुठभेड़ का किया था बचाव
केएल गुप्ता अप्रैल 1998 से लेकर दिसंबर 1999 तक उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक रहे हैं और पिछले दिनों विकास दुबे की कथित एनकाउंटर में हुई मौत पर उनकी प्रतिक्रियाओं की काफ़ी चर्चा हुई थी.
केएल गुप्ता ने एक टीवी चैनल में लाइव बहस के दौरान इस एनकाउंटर का जमकर बचाव किया था और मीडियाकर्मियों पर ही इस मामले को अनावश्यक तूल देने और निगेटिविटी फैलाने का आरोप लगाया था.
विकास दुबे की कथित एनकाउंटर में हुई मौत के बाद एक लाइव बहस के दौरान केएल गुप्ता बतौर रिटायर्ड डीजीपी और एक्सपर्ट हिस्सा ले रहे थे. बहस के दौरान उन्होंने कहा कि विकास दुबे के एनकाउंटर को लेकर पुलिस पर सवाल उठाना ठीक नहीं है.
मीडिया पर तंज़
इसी बहस में केएल गुप्ता ने एक सवाल के जवाब में कहा था, "टोल बैरियर पर पुलिस की गाड़ी तो निकल जाती है, बाक़ी की चेकिंग की जाती है. उसमें 5-10 मिनट रुक गए, तो उसी में प्रेस वालों ने हंगामा करना शुरू कर दिया. सबको पता है कि टोल प्लाज़ा पर अन्य गाड़ियों को निकलने में थोड़ा समय लगता है."
केएल गुप्ता ने इस बात पर भी सवाल उठाए थे कि मीडियाकर्मियों ने विकास दुबे को उज्जैन से ला रही पुलिस टीम का पीछा क्यों किया और चुटीले अंदाज़ में कहा कि 'इतनी चिंता तो उनके परिजनों को भी नहीं रही होगी.'
विकास दुबे के एनकाउंटर से ठीक पहले मीडियाकर्मियों की गाड़ी को टोल प्लाज़ा पर रोके जाने को लेकर तमाम सवाल उठे थे और टोल प्लाज़ा पार करने के बाद ही विकास दुबे को ला रही गाड़ी कथित तौर पर पलट गई थी और एनकाउंटर की घटना घटी थी.
बहस के दौरान केएल गुप्ता ने कहा था, "हर चीज़ को आप नेगेटिविटी में मत देखिए. वो बेचारे 8 लोग मारे गए थे, उन लोगों के लिए आपने कुछ किया क्या? उनके घर में देखा कि वे लोग भूखों मर रहे हैं? विकास के पास कार्बाइन कहाँ से आई, उसने घर में आर्डिनेन्स फ़ैक्टरी बना रखी थी?"
इस बहस के दौरान पूर्व डीजीपी ने पुलिस का बचाव करते हुए कहा था, "वो सरेंडर करने के लिए गया था ताकि ज्यूडिशियल रिमांड में आ सके. लेकिन वहाँ की पुलिस ने कोई मुक़दमा नहीं क़ायम किया, इसलिए ट्रांज़िट रिमांड की ज़रूरत नहीं पड़ी. उसने देखा कि पुलिस ने हैंडओवर कर दिया है, उसे लगा कि मारा न जाऊँ, वह गाड़ी के पलटने के बाद भागने का प्रयास कर रहा था. इतने आदमियों को मार चुका है कि वह पूरी तरह से इन सबके लिए ट्रेंड था."
यही नहीं, पूर्व डीजीपी ने एनकाउंटर पर उठ रहे तमाम सवालों का जमकर बचाव किया. यहाँ तक कि विकास दुबे के सीने में गोली मारे जाने संबंधी सवाल पर उनका कहना था, "अगर गोली सामने से चलाएगा तो ऐसे में पुलिस मारेगी तो सामने सीने पर ही गोली लगेगी न, चार पुलिस वाले उसने घायल कर दिए, सामने से ही गोली चलाएगा न."
केएल गुप्ता के नाम को जाँच आयोग में बतौर सदस्य सुप्रीम कोर्ट से स्वीकृति मिलने के बाद हमने इस बारे में उनसे बात करने की कोशिश की लेकिन बात नहीं हो सकी.
हालाँकि अंग्रेज़ी अख़बार 'इंडियन एक्सप्रेस' से बातचीत में उन्होंने कहा, "उस डिबेट में मैंने कुछ बातें पूर्व पुलिस अफ़सर होने के चलते पूछे जाने पर कही होंगी लेकिन अब मुझे कुछ नहीं बोलना चाहिए."
केएल गुप्ता का कार्यकाल बतौर डीजीपी
उत्तर प्रदेश में बतौर डीजीपी केएल गुप्ता का कार्यकाल डेढ़ साल से ज़्यादा रहा, हालाँकि इस कार्यकाल के दौरान उनकी ऐसी कोई ख़ास उपलब्धि नहीं रही जिसे लोग याद करें.
लखनऊ में लंबे समय से पत्रकारिता कर रहे कई वरिष्ठ पत्रकारों के मुताबिक़ उस समय के तमाम आईपीएस अधिकारियों की वरिष्ठता और क़ाबिलियत को दरकिनार करके उन्हें डीजीपी बनाया गया था. केएल गुप्ता के बीजेपी नेताओं के साथ रिश्तों पर भी सवाल उठते रहे हैं.
दिल्ली में रह रहे वरिष्ठ पत्रकार दीपक शर्मा उस वक़्त लखनऊ में रहते थे और क्राइम रिपोर्टिंग करते थे. दीपक शर्मा बताते हैं, "केएल गुप्ता को डीजीपी बनाए जाने पर उस वक़्त सभी को आश्चर्य हुआ था क्योंकि डीजीपी बनने की पंक्ति में कई अन्य ऑफ़िसर भी शामिल थे. बनने के बाद भी कोई ऐसी उपलब्धि नहीं थी जिसकी चर्चा हो, हालाँकि कार्यकाल उनका लंबा रहा."
केएल गुप्ता उत्तर प्रदेश में बीजेपी शासन के दौरान डीजीपी बनाए गए थे और तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का वह दूसरा कार्यकाल था.
अपने पहले कार्यकाल, यानी 1991-1992 के दौरान उन्होंने पुलिस सुधार और अपराधियों के ख़िलाफ़ कई स्तरों पर योजनाबद्ध तरीक़े से कार्रवाई की थी. दीपक शर्मा बताते हैं कि कल्याण सिंह ने अपने पहले कार्यकाल में 'भयमुक्त समाज' का न सिर्फ़ नारा दिया बल्कि उसे क्रियान्वित भी किया लेकिन दूसरे कार्यकाल में वैसा नहीं कर सके.
चयन पर हैरानी
दीपक शर्मा बताते हैं, "कल्याण सिंह का पहला कार्यकाल पुलिसिंग के लिहाज़ से बड़ा अहम था. प्रकाश सिंह डीजीपी थे और उन्होंने भी इस दिशा में काफ़ी प्रयास किया. पहली बार माफ़िया की सूची बनी, गैंगचार्ट तैयार किए गए और संगठित अपराध के ख़ात्मे की तमाम कोशिशें हुईं. इस मॉडल को कई अन्य राज्यों ने भी अपनाया."
"लेकिन दूसरी पारी कल्याण सिंह की बेहद लचर साबित हुई और इसकी वजह यही थी कि तमाम नियुक्तियाँ सिफ़ारिशी और राजनीतिक दख़लंदाज़ी वाली थीं, योग्यता और अफ़सरों के ट्रैक रिकॉर्ड को दरकिनार कर दिया गया."
लखनऊ में एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं, "राज्य सरकार ने तो बिकरू कांड की जाँच के लिए जो एसआईटी बनाई, उसमें उस अधिकारी को शामिल किया जिस पर ख़ुद फ़र्ज़ी एनकाउंटर के आरोप लगे हैं. जाँच आयोग के सदस्यों की पृष्ठभूमि की जानकारी अदालत को लेनी चाहिए थी."
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source: bbc.com/hindi

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