शहरनामा ::: सुपौल :::

बड़े बेआबरू होकर निकले

साहब फिलहाल एक अनुमंडल के बड़े पद पर आसीन थे। इस जिले से उन्हें बड़ा लगाव सा हो गया था। लंबे समय से उन्होंने जिले के विभिन्न प्रशासनिक ओहदे को संभाला। प्रखंड के अधिकारी के रूप में आए, यहां का वातावरण इतना भाया कि बार-बार यहीं की पोस्टिग कराई। जब तक रहे जिस पद पर रहे उनका बड़ा रसूख रहा। लेकिन उनका यहां से जाना कुछ ठीक नहीं रहा। बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से निकले टाइप से यहां से जाना पड़ा। एक मामला उनपर चल रहा था। बिहार लोक सेवा आयोग एवं अन्य बनाम बलदेव चौधरी एवं अन्य। सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश पारित कर दिया। शिकायतकर्ता ने गलत तरीके से आरक्षित कोटि में चयन करने को लेकर न्यायालय में वाद दायर किया था। विभाग की अधिसूचना के आलोक में डीएम ने पीजीआरओ को प्रभार सौंप देने का आदेश जारी कर दिया।
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मैडम को भी मिली अंगूठी
मैडम जब तक यहां रहीं उनका जलवा रहा। परियोजना में उनका कार्यकाल पूरा होने के बाद बिहार सरकार ने तबादला कर दिया। लॉकडाउन है तो लगा कि सूखी विदाई ही होगी। पर मैडम का जलवा यहां दिखा। मैडम के कार्यकाल का सकारात्मक पहलू रहा कि लॉकडाउन की परवाह किए बगैर उनकी विदाई पर भव्य आयोजन किया गया। यह उनके कामकाज की समीक्षा मानी जा सकती है। मौके पर जुटे अधिकारी अथवा कर्मी को आयोजन के जोश में मास्क अथवा सोशल डिस्टेंसिग का भी कोई ख्याल नहीं रहा। हालांकि उनके लिए इसका कोई खास मतलब होता नहीं है। उनकी तो बस ऐसे कानूनों को लागू करवाने भर की जिम्मेवारी बनती है। विदाई समारोह में बांकी कुछ तो सामान्य ही दिखा जैसा अन्य पदाधिकारियों की विदाई वगैरह में हुआ करता है। हां, विशेष दिखा रिग शिरोमणि टाइप का जो प्रचलन लेटेस्ट फैशन में है। मैडम को भी विदाई में अंगूठी दी गई।
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मोबाइल पर ड्यूटी
पहले ड्यूटी मोबाइल हुआ करती थी, खासकर पुलिस वालों की। लेकिन अब तो मोबाइल पर ड्यूटी होने लगी है। ये कोई किताबी ज्ञान नहीं है। आप रोजमर्रे में चौक चौराहे इसका अनुभव आसानी से कर सकते हैं। इसका चलन तो एंड्रायड फोन आने के साथ ही शुरू हो गया। लॉकडाउन में ड्यूटी का यह तरीका थोड़ा अधिक विकसित हुआ। जब पुलिस की गाड़ी गश्त में चल रही होती है तो भले ड्राइवर सीधा सामने देख रहा होता है और बगल वाली सीट पर बैठे अधिकारी शिकार को लेकिन बांकी का क्या लेना-देना वे तो अपने मोबाइल पर ही लगे होते हैं। कहीं ड्यूटी स्टैटिक है तो फिर काम ही क्या है? समय भी तो काटना है, मोबाइल नहीं रहे तो फिर आदमी बोर टाइप का हो जाता है। यही स्थिति अधिकतर मजिस्ट्रेटों की है। उन्हें टारगेट दिया गया है। टारगेट पूरा करने के बाद मोबाइल पर शुरू हो जाते हैं।
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शराब बरामद, तस्कर फरार
बांकी कुछ चुस्त-दुरुस्त हो या नहीं लेकिन शराब पर साहब लोगों की बड़ी चुस्ती दिखाई देती है। अब देखिए न अभी तो लॉकडाउन चल रहा है, लेकिन शराब पकड़ने में भी इन्होंने अच्छा ही रिकार्ड बनाया है। अपनी उपलब्धियों को बताते हुए वे शान से फोटो भी खिचवा लेते हैं। अधिकतर समय होता है कि शराब इनको बकायदे मिल जाती है लेकिन तस्कर इनके हाथ नहीं लगते। जबकि यह बताने में भी इन्हें कोई गुरेज नहीं होता कि सूचना मिली कि अमूक जगह से शरब की एक बड़ी खेप आने वाली है और इन्होंने इसकी पूरी नाकेबंदी कर रखी है। फिर भी न तो तस्कर उनसे जल्दी पकड़ाता है और न ही इनसे पहले वाले के हाथ आाता है। इतना ही नहीं तमाम बाधाओं को लांघते शराब इनके तक कैसे पहुंच जाती है इसके लिए कोई खास चितित नहीं हुआ करते हैं ये। यही विशेषता लोगों को समझ आती है।
Posted By: Jagran
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