Mughal-E-Azam: बहुत दिक्कतों का सामना करने के बाद के.आसिफ ने किया सपना साकार

हिंदी सिनेमा की आईकॉनिक फिल्म मुगल-ए-आज़म को निर्देशक के. आसिफ के करियर की सबसे बेहतरीन फिल्म माना जाता है. सिनेमा के इतिहास में कामयाबी के झंडे गाड़ती इस फिल्म को 60 साल पहले 150 सिनेमा घरों में रिलीज किया गया था, जिसने अपने पहले ही हफ्ते में 40 लाख रुपये की कमाई की थी. लेकिन इस फिल्म को बनाना के.आसिफ के लिए इतना आसान नहीं था.

फिल्म मुगल-ए-आज़म को बनने में एक दशक से भी ज्यादा का समय लगा और इस दौरान फिल्म की मेकिंग में कई तरह की रुकावटें आई. लेकिन निर्देशक के. आसिफ ने हार नहीं मानी. साल 1944-45 के आस-पास के.आसिफ को, मुग़ल राजकुमार सलीम और अनारकली के बीच प्रेम कहानी के बारे में इम्तियाज़ अली के नाटक 'ताज' से प्रेरणा मिली. इससे पहले इसी कहानी पर 3 और फिल्में बन चुकी थीं लेकिन ऐसा जादू पर्दे पर पहली बार देखा गया था.
इस फिल्म को बनाने के लिए के. आसिफ ने प्रसिद्ध सिने स्टूडियो के मालिक शिराज अली हकीम के साथ मिलकर काम करना शुरू किया, इससे पहले हाकिम ने आसिफ के डायरेक्शन में बनने वाली पहली 'फूल' (1945) में भी उनके साथ काम किया था. इस फिल्म को कमाल अमरोही ने लिखा था. फिल्म फूल को हिंदी सिनेमा की सबसे पुरानी मल्टीस्टारर फिल्मों में से एक माना जाता है, जिसमें पृथ्वीराज कपूर, दुर्गा खोटे, वीना, याकूब, वस्ती, सुरैया, सितार देवी और मज़हर खान जैसे कलाकारों ने मुख्य भूमिका निभाई थी.
लेकिन भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद काफी कुछ बदल गया. जब देश का विभाजन हुआ तो हकीम और एक्टर हिमाल्यवाला को पाकिस्तान जाना पड़ा. स्टूडियो को बेचने और पाकिस्तान जाने से पहले, हकीम ने आसिफ को बिल्डर शापूरजी पल्लोनजी के बारे में बताया, जिनकी कंपनी ने मुंबई में फेमस सिने स्टूडियो का निर्माण भी किया था और वास्तव में, वो पल्लोनजी ही थे जिन्होंने आसिफ को अपने सपने को साकार करने में मदद की - एक कल्पना जिसे 5 अगस्त, 1960 को एक पर्दे पर उतारा गया.

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