वीरांगना बहुरियाजी ने हिला दी थी ब्रिटिश सरकार की जड़ें

अमृतेश, छपरा : भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अगस्त महीना काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। इसी महीने में 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली। उससे करीब पांच वर्ष पहले अगस्त क्रांति ने अंग्रेजी साम्राज्य की जड़ें हिला दी थीं। 18 अगस्त 1942 का दिन मढ़ौरा के मेहता गाछी की घटना स्वतंत्रता के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से अंकित है।

यहां की वीरांगना बहुरिया रामस्वरूपा देवी की ललकार पर लोगों ने लाठी-डंडे पीट-पीटकर सात अंग्रेज सैनिकों की हत्या कर दी। उनके शवों को भी नदी में फेंक दिया। अंग्रेज अधिकारियों के काफी प्रयासों के बाद भी शव बरामद नहीं हो सका था।
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द्वितीय विश्व युद्ध में समर्थन लेने के बाद जब अंग्रे•ा भारत को स्वतंत्र करने के लिए तैयार नहीं हुए तब गांधीजी ने भारत छोड़ो आंदोलन का बिगुल फूंका। यह आंदोलन देशव्यापी बन गया। मेहता गाछी में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ चल रही सभा को अमनौर की रहने वाली बहुरिया जी संबोधित कर रहीं थी। अंग्रेज सिपाही वहां जालियावाला बाग जैसी घटना को अंजाम देने की फिराक में थे। मढ़ौरा के लेरूआ निवासी रामजीवन सिंह को उसकी भनक लग गई थी कि अंग्रेज सिपाही बड़ी घटना को अंजाम दे सकते है। इसी कारण वे अपने पांच - सात क्रांतिकारी साथियों के साथ सभा स्थल से पहले ही जमे थे। अंग्रेजी सैनिक जैसे ही सभा स्थल की ओर बढ़े रामजीवन सिंह ने साथियों के साथ उनपर हमला कर दिया। लेकिन सैनिकों के पास बंदूक था। लेकिन लाठी -डंडे थामें वीर सपूतों ने उन्हें सभा स्थल पर जाने से रोक दिया। अंग्रेज सैनिकों से लड़ते हुए रामजीवन सिंह के छाती में गोली गली। इसकी जानकारी होने पर बहुरिया जी की ललकार पर भीड़ ने लाठी-डंडे से सात अंग्रेज सिपाहियों को मार गिराया। उसके बाद शव को गंडक नदी में फेंक दिया गया गया। उस दिन खूब जमकर बरिश भी हुई थी। जिसके कारण खून के धब्बे भी मिट गए थे। अंग्रेजों ने काफी खोजबीन किया और शव को नदी में तलाशा परंतु सफलता नही मिली थी। औद्योगिक नगरी मढ़ौरा पुलिस छावनी में तब्दील हो गई। बहुरिया जी ने पेड़ कटवा कर सड़क पर गिरवा दिया। इसका फायदा उठाकर अन्य क्रांतिकारी वहां से निकल गये। स्वतंत्रता संग्राम इतिहास में यह घटना मढ़ौरा गोरा हत्याकांड के नाम से भी जाना जाता है। इनसेट :
अमनौर स्टेट की बहू थीं रामस्वरूपा देवी
छपरा : भागलपुर के तीरमुहान के बड़े जमींदार भूपनारायण सिंह की पुत्री रामस्वरूपा देवी की शादी सारण के अमनौर स्टेट में हुई थी। इनके पति हरिमाधव सिंह छात्र जीवन से ही स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े थे। सविनय अवज्ञा आंदोलन, नमक सत्याग्रह के दौरान हरिमाधव सिंह को ब्रिटिश सरकार ने हाजारीबाग जेल मे बंद कर दिया तब बहुरिया जी आंदोलन को गति देने के लिए हवेली की देहरी लांघ आजादी की लड़ाई में कूद पड़ीं। युवाओं व महिलाओं को संगठित कर अंग्रेजों से लोहा लिया। आजादी के बाद पहले आम चुनाव में वीरांगना बहुरिया रामस्वरूपा देवी बिहार विधान सभा की सदस्य बनी। 29 नवम्बर 1953 को बहुरिया जी का निधन हो गया।
Posted By: Jagran
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