प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के पूर्व ही सारण ने भर दी थी जंग की हुंकार

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के पूर्व ही सारण ने भर दी थी जंग की हुंकार

आजादी के जंग में सारण
सिपाही विद्रोह से लेकर अगस्त क्रांति तक सारण के सपूतों ने स्वतंत्रता के लिए बहाये लहू
छपरा। हिन्दुस्तान संवाददाता
स्वतंत्रता आंदोलन के उदारवादी, उग्रवादी और क्रांतिकारी विचार धाराओं का सारण साक्षी रहा है। विचार धाराएं भले अलग-अलग थीं लेकिन लक्ष्य एक ही था- देश की आजादी। इस आजादी के लिए सारण के लोगों ने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के पूर्व ही ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ जंग छेड़ दी थी। 1775 से 1785 तक की सारण के इस स्वतंत्रता संग्राम की कमान हुस्सेपुर के युवराज फतेशाही के हाथों में थी। करीब 10 वर्षों तक बगावत चली। फिर फतेशाही भूमिगत हो गये और यह हिंसक क्रांति कुंद पड़ गया। लेकिन यहां के लोगों में जल रही आजदी पाने की आग कभी ठंडी नहीं हुई। अंग्रेजों से सारणवासियों का गुरिल्ला युद्ध लगातार चलता रहा। सारण के सपूत देश की आजादी के लिए लहू बहाते रहे।
सिपाही विद्रोह में धधकी क्रांति की ज्वाला
सारण के लोगों के दिलों में सुलग रही क्रांति की ज्वाला 1857 के सिपाही विद्रोह में धधक उठी। क्रांति वीरों ने सारण की धरती पर इतनी तनावपूर्ण स्थिति बना डाली कि अंग्रेज अफसर घबड़ा उठे। यहां की क्रांति का कुचलने के लिए अंग्रेजी हुक्मरानों को गोरखा रेजिमेंट व यूरोपियन फौज बुलानी पड़ी। बाबू कुंवर सिंह का यहां के लोगों ने भरपूर साथ दिया। छपरा का खंजाची महल आज भी उस क्रांति की याद दिलाता है।
असहयोग आंदोलन में छपरा पहुंचे बापू
1920-21 के आंदोलन के दौरान राष्ट्रपतिा गांधी मौलाना शौकत अली के साथ छपरा आये। शहर के विश्वेश्वर सेमिनरी परिसर में आयोजित सभा में उन्होंने ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ शंखनाद किया। सारण के वुद्धिजीवी, वकील, मोख्तार, अध्यापक, व्यापारी, छात्र व नौजवान आंदोलन में कूद पड़े। कितने जेल गये और कईयों को सजा हुई। लेकिन आजादी के परवानों का हिम्मत नहीं डोला।
सविनय अवज्ञा आंदोलन की धार
1921 के अंत में माहापंडित राहुल सांस्कृत्यायन ने सारण में सविनय अवज्ञा आंदोलन की नींव रखी। प्रभुनाथ सिंह व पं. गिरीश तिवारी उनके दाहिने-बांये हाथ थे। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के अग्रज महेन्द्र प्रसाद सरकारी के राय साहब की दी गयी खिताब को वापस कर आंदोलन की अगुआई में लग गये। पूरे सारण जिले में घूम-घूम कर किसानों व मजदूरों को आंदोलन के लिए खड़ा किया गया। सारण का विशाल समूह आजादी के तराने गाने लगा।

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