लॉकडाउन ने कचरे प्रबंधन को लेकर सुनने-गुनने और कुछ कर दिखाने का दिया मौका

खगड़िया। लॉकडाउन के लगभग पांच महीने पूरे हो गए हैं। इस अवधि में प्रकृति ने अपने आप को एक तरह से रिचार्ज कर लिया है। यह कहना है समाजशास्त्री डॉ. अनिल ठाकुर का। वह कहते हैं कि कचरा प्रबंधन की दृष्टि से यदि देखें तो लोगों की आवाजाही कम हुई है। फैक्ट्रियां लगभग बंद रही है, मंडियां बंद रहे। मानव की अन्य गतिविधियां भी थम सी गई है। ऐसी स्थित में स्वभावत: अपशिष्ट पदार्थ की मात्रा कम हुई है। जिससे कचरे की समस्या में कमी आई है। दूसरा पक्ष यह है कि जब अन्य गतिविधि कम हो रही थी, उसी अवधि में लोगों के आंतरिक व आध्यात्मिक गतिविधि में काफी बदलाव आ रहा था। लोगों के सोच में भी बदलाव आने लगा। लोग खुद को पहचानने लगे। अंतर्मन की सुनने को वक्त लोगों को मिला। इससे एक ओर वाह्य गतिविधियों के कम होने से कचरा में कमी आई, तो दूसरी ओर लोगों के अंतर्मुखी होने से वे कचरा को कचरा समझने लगे और उससे दूसरों को होने वाली परेशानी से भी अवगत हुए। फलत: वे खुद को संयमित और अनुशासित कर पाए। अत: प्रकृति के लिए और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए यह आवश्यक है कि वर्ष में कुछ दिन लॉकडाउन के लिए अवश्य तय किए जाएं। ताकि लोगों को खुद को समझने, परिवार को समझने और प्रकृति के बारे में चितन करने का वक्त मिल सके। और दूसरी तरफ प्रकृति को अपने हुई क्षति का भरपाई करने का मौका।


Posted By: Jagran
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