एस्पिरिन की सेफ्टी प्रोफाइल पता थी, क्लीनिकल ट्रायल में भी सरलता होगी

हिंदुस्तान सरकार के इंस्टीट्यूट ऑफ नैनो साइंस एंड टेक्नोलॉजी, मोहाली के वैज्ञानिकों की टीम ने दर्द या बुखार कम करने के लिए दी जाने वाली दवा एस्पिरिन से नैनोरोड्स (अत्यंत महीन कण) डेवलप किए हैं, जो अंधेपन की बड़ी वजह मोतियाबिंद को रोकने के प्रयोगशाला टेस्ट में पास साबित हुए हैं.

फिलहाल, मोतियाबिंद का उपचार सर्जरी ही है. देश में एस्पिरिन से नैनोरोड्स डेवलप करने का यह पहला मुद्दा है. अगर आगे सारे टेस्ट सफल रहे तो 2023 तक इसकी दवा आईड्राॅप के रूप में मार्केट में आ जाएगी. मोतियाबिंद में आंखों को धुंधला करने वाले मटेरियल को निकाल दिया जाता है व आवश्यकता पड़ने पर आंखों के प्राकृतिक लेंस को बदलकर नए कृत्रिम लेंस लगा दिए जाते हैं.
देश में 1.2 करोड़ लोग दृष्टिहीन हैं
देश में करीब 1.2 करोड़ लोग दृष्टिहीन हैं. इनमें से 66.2% दृष्टिहीनता मोतियाबिंद के कारण ही है. देश में हर वर्ष इसके 20 लाख नए केस आते हैं. इस शोध टीम की प्रमुख डाक्टर जीबन ज्योति पांडा ने बताया कि आयु बढ़ने से, म्यूटेशन से या अल्ट्रावॉयलेट रेज के आंखों पर सीधे पड़ने के कारण आंखों में लैंस बनाने वाले क्रिस्टलीय प्रोटीन की संरचना बिगड़ जाती है.
इसके कारण अव्यवस्थित प्रोटीन जमा होकर एक नीली या भूरी परत बनाते हैं, जिससे लेंस की पारदर्शिता समाप्त होती जाती है. इसे ही मोतियाबिंद कहते हैं. मोतियाबिंद होने पर दिखाई देना बंद हो जाता है. एस्पिरिन के नैनोरोड्स आंखों के क्रिस्टलीय प्रोटीन और उसके विखंडन से बनने वाले पेप्टाइड्स को जमा होने से रोकता है, जो मोतियाबिंद की अहम वजह है.
लैब में आंखों का लैंस बनाने वाले मॉडल प्रोटीन और मॉडल पेप्टाइड तैयार किए गए व एस्पिरिन के नैनोरोड्स के प्रयोग से पाया गया कि पेप्टाइड से बनने वाली जाला नुमा संरचना को बनने से रोकता है. इस्तेमाल में दो किस्म के नतीजे सामने आए. पहला- यह इकट्ठा हुए प्रोटीन को तोड़ देता है. दूसरा- यह नया प्रोटीन बनने नहीं देता. यानी साधारण भाषा में कहें तो मोतियाबिंद बन चुका है तो वह घुल जाएगा व नया मोतियाबिंद होने की आसार को समाप्त करेगा.
डाक्टर पांडा ने बताया कि प्रयोगशाला परीक्षण एस्पिरिन का रिपर्पजिंग का इस्तेमाल था, जो पास रहा है. किसी नए मॉलिक्यूल को चुनने पर बहुत लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता, लेकिन एस्पिरिन पहले से ही प्रयोग की जा रही है, इसलिए इसका सेफ्टी प्रोफाइल हमें पता है. क्लिनिकल ट्रायल की इजाजत में भी सरलता होगी.

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