शिव-पार्वती सा अखंड सौभाग्य पाने को महिलाओं ने किया तीज

शिव-पार्वती सा अखंड सौभाग्य पाने को महिलाओं ने किया तीज

पति की खातिर रखा निर्जला व्रत, हुई शिव-पार्वती की पूजा
छपरा। हमारे प्रतिनिधि
अखंड सुहाग की कामना से पुनीत पर्व तीज का निर्जला व्रत जिले भर की महिलाओं ने शुक्रवार को रखा। नेम-धरम व आस्था के साथ उमा भवानी व भगवान आशुतोष की पूजा की गयी। दोपहर के बाद प्राय: सभी घरों में पूजा कर कथा श्रवण किया गया। सुहागन स्त्रियों के लिए यह व्रत अखण्ड सौभाग्य को प्रदान करने वाला है। यह त्योहार शिव-पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। व्रतियों ने आशीर्वाद मांगा कि जिस तरह भगवान शिव व पार्वती का मिलन अखंड है उसी तरह हम गृहस्थों का सौभाग्य भी आपकी कृपा से बना रहे। माता पार्वती और भगवान शिव की आराधना के साथ आरती की गयी। व्रत का पारण शनिवार को होगा।
मिट्टी की बनी प्रतिमा का पूजन
हरतालिका तीज व्रत में मिट्टी से बनी शिव-पार्वती प्रतिमा का विधिवत पूजन किया गया। फिर तीज व्रत कथा सुनी गयी। कहते हैं कि एक बार व्रत रखने के बाद इस व्रत को जीवनभर रखा जाता है। हरतालिका तीज व्रत में कथा का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि कथा के बिना इस व्रत को अधूरा माना जाता है। इसलिए हरतालिका तीज व्रत रखने वाले को कथा जरूर सुननी या पढ़नी पड़ती है।
घर पर ही पूजा को प्राथमिकता
कोरोना संक्रमण काल में इस बार घर पर ही पूजा को प्राथमिकता दी गयी। प्राय: हर घर में महिलाओं ने मिट्टी की प्रतिमा थाली में बनाकर धूप-अगर-फूल आदि से पूजा की। फल, बिल्वपत्र आदि चढ़ाकर भगवान शिव व पार्वती से आशीर्वाद मांगा। मंदिरों में आम तौर पर हर साल मोहल्ले भर की महिलाएं एकत्रित होकर कथा सुनती थीं और पूजन में हिस्सा लेती थीं। धर्मनाथ मंदिर, प्रभुनाथ नगर शिव मंदिर समेत अन्य शिव मंदिर भक्तों से गुलजार रहते थे लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। बा्रह्मणों को घर पर बुलाकर ही तीज की पूजा व कथा महिलाओं ने बन्धु-बांधव के साथ सुनी। देव शिव व पार्वती माता की आरती गाकर उनकी स्तुति का पाठ किया। जीवन में सुख-शांति व कल्याण की कामना की।
मां पार्वती ने शिवजी को पाने को घोर तपस्या की
हरतालिका तीज व्रत कथा निराली है। शास्त्रों के अनुसार, हिमवान की पुत्री माता पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए बाल्यकाल में हिमालय पर्वत पर अन्न त्याग कर घोर तपस्या शुरू कर दी थी। तभी एक दिन नारद जी राजा हिमवान के पास पार्वती जी के लिए भगवान विष्णु की ओर से विवाह का प्रस्ताव लेकर पहुंचे। माता पार्वती ने यह शादी का प्रस्ताव ठुकरा दिया। पार्वती जी ने अपनी एक सखी से कहा कि वह सिर्फ भोलेनाथ को ही पति के रूप में स्वीकार करेंगी। सखी की सलाह पर पार्वती जी ने घने वन में एक गुफा में भगवान शिव की आराधना की। भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र में पार्वती जी ने मिट्टी से शिवलिंग बनकर विधिवत पूजा की और रातभर जागरण किया। पार्वती जी के तप से खुश होकर भगवान शिव ने माता पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। तभी से महिलाएं अखंड सौभाग्य के लिये तीज करती हैं।

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