मनोवांछित फलों की प्राप्ति के लिए करनी चाहिए गणेशजी की उपासना

करजाईन बा•ार(सुपौल)। सर्वजगत नियंता पूर्ण परम तत्व ही गणपति तत्व है। 'गणानां पति: गणपति:'। 'गण' शब्द समूहवाचक होता है। समूहों का पालन करनेवाले परमात्मा को ही गणपति कहते हैं। अथवा सर्वविध गणों को सता, स्फूर्ति व शक्ति देनेवाला जो परमात्मा है, वही गणपति है। गणपति शब्द से ही ब्रह्म निर्दिष्ट होता है। एक ही परम तत्व भिन्न-भिन्न उपासकों की

अलग-अलग अभिलाषित फलों की प्राप्ति हेतु अपनी अचिन्त्य लीलाशक्ति से भिन्न-भिन्न गुण संपन्न होकर नाम-रूपवान होकर अभिव्यक्त होता है। प्रधान स्वरूप में विघ्न विनाशक आदि गुणविशिष्ट परमतत्व गणपति रूप में आविर्भूत होता है। इस परम तत्व को शास्त्रों से ही जाना जा सकता है। अर्थात शास्त्र ही जिन-जिन नामरूप, गुणयुक्त तत्वों को ब्रहम बतलाते हैं वे ही ब्रह्म हो सकते हैं। शास्त्रों में गणपति को पूर्णब्रह्म बतलाया गया है। 22 अगस्त से आरम्भ हुए गणपति उत्सव का महत्व व गणेश तत्व का सार समझाते हुए आचार्य पंडित धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने बताया कि गणेश पूजन एवं स्तवन किए बिना किसी प्रकार के यज्ञ आदि अनुष्ठान में निर्विघ्न सफलता नहीं मिल सकता है। चाहे आपका इष्टदेव भगवान विष्णु, शंकर या पराम्बा श्री दुर्गा ही क्यों न हो। इन सभी देवी-देवताओं की उपासना की निर्विघ्र सम्पन्नता के लिए विघ्न विनाशक श्रीगणेश का पूजन व स्तवन अति आवश्यक है। आचार्य ने कहा कि गणेश एकदंत हैं। एक शब्द माया का बोधक है और दंत शब्द मायिक का बोधक है। गणेशजी में माया और मायिक का योग होने के कारण ही वो एकदंत कहलाते हैं। गणेशजी वक्रतुंड भी हैं। वक्र टेढ़े को कहते हैं। आत्मस्वरूप टेढ़ा है, क्योंकि यह संपूर्ण जगत तो मनोवचनों का गोचर है। इतना ही नहीं गणपति को लंबोदर भी कहा जाता है। क्योंकि इनके उदर में ही समस्त प्रपंच प्रतिष्ठित हैं और ये स्वयं किसी के उदर में नहीं हैं। इसलिए समस्त मानवों को मनोवांछित फलों की प्राप्ति के लिए गणेशजी की उपासना व आराधना भक्ति व निष्ठा पूर्वक करनी चाहिए।
सादगी के साथ हुई गणेश महोत्सव की शुरुआत यह भी पढ़ें
Posted By: Jagran
डाउनलोड करें जागरण एप और न्यूज़ जगत की सभी खबरों के साथ पायें जॉब अलर्ट, जोक्स, शायरी, रेडियो और अन्य सर्विस

अन्य समाचार